Tilismi Kamal - 23 in Hindi Adventure Stories by Vikrant Kumar books and stories PDF | तिलिस्मी कमल - भाग 23

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

तिलिस्मी कमल - भाग 23

इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से ही प्रकाशित सभी भागों को अवश्य पढ़े ..........


कल्कि राजकुमार को बेहोश करके महायोगिनी के जलमहल में ले आया । इसके बाद कल्कि राजकुमार को होश में लाया और उसको बंधक बनाकर महायोगिनी के सामने लाकर खड़ा कर दिया । और फिर महायोगिनी से बोला - " स्वामिनी यह राजकुमार धरमवीर है जो आप को कुछ बताना चाहता है । इसलिए इसे मैं बंधक बनाकर तुम्हारे पास ले आया हूँ । "


महायोगिनी कल्कि को गुस्से से चिल्लाते हुए बोली -" अरे नालायक , इसे तू बंधक बना कर नही लाया बल्कि तू इसके जाल में फस गया है । जिसने सभी दसों चुड़ैलों को हरा कर अपने वश में कर लिया हो वो तेरे सामने बंधक बनेगा , नही बनेगा उसको मुझ तक पहुंचना था इसलिए वह तेरा बंधक बना । जाओ जितनी जल्दी हो सके उसे कैद खाने में डाल आओ । "

कल्कि महायोगिनी की बात सुनकर , राजकुमार को कैद खाने में डालने के लिए उसकी ओर पलटा , लेकिन राजकुमार अपनी जगह से गायब था । 

राजकुमार को अपनी जगह से नदारद देखकर कल्कि और महायोगिनी घबरा गए । महायोगिनी कल्कि से चिल्लाते हुए बोली - " जाओ उसे ढूंढो जाकर , अगर कही वह मेरे बाग में पहुंच कर मेरे तोते को पकड़ लिया तो मेरी जान उसके हाथ मे आ जायेगी । और मुझे उसका हर कहना मानना होगा ।"

महायोगिनी की बात सुनकर कल्कि राजकुमार की खोज में निकल पड़ा । महायोगिनी अपने बाग में तोते के पास पहुंच गई ।

इधर राजकुमार महल के अन्दर घूमते घूमते एक गुप्त तहखाने में प्रवेश कर गया । तहखाने में काफी अंधेरा था । अंधेरे होने के कारण राजकुमार तहखाने में देख नही पा रहा था ।

राजकुमार ने अपने जादुई शक्ति से अपने हाथ मे प्रकाश प्रकट किया और उसकी रोशनी की सहायता से तहखाने में आगे बढ़ने लगा ।

राजकुमार रोशनी की सहायता से बढ़ा चला जा रहा था तभी अचानक उसे एक औरत दिखाई दी, जो बेड़ियों से जकड़ी हुई थी । वह औरत अपना सर नीचे की ओर झुकाए थी । इसलिए राजकुमार उस औरत का चेहरा नही देख पा रहा था।

राजकुमार उस औरत के पास गया और पूछा - " आप कौन है और यँहा पर आपको किसने कैद किया है ? "

लेकिन उस औरत ने राजकुमार के प्रश्न का कोई जवाब नही दिया । राजकुमार ने फिर से वही प्रश्न दोहराया लेकिन उस औरत ने इस बार भी कोई जवाब नही दिया ।

इस बार राजकुमार औरत के थोड़ा नजदीक गया और उसका कंधा पकड़कर थोड़ा हिलाया । लेकिन उस औरत ने कोई भी प्रकिया नही की । 

राजकुमार समझ गया कि यह औरत बेहोश है । राजकुमार ने  अपनी जादुई शक्ति से उस औरत को होश में ले आया । होश  में आते ही जैसे ही उस औरत ने अपना सर ऊपर उठाया वैसे  राजकुमार उसे देखकर चौंक गया । और औरत भी राजकुमार को देखकर चौंक गई ।

वह औरत और कोई नही बल्कि चित्रलेखा थी । ( चित्रलेखा के बारे में जानने के लिए इस कहानी का भाग - 16 पढ़े ।) चित्रलेखा राजकुमार को देख कर प्रसन्न हो गयी । राजकुमार ने अपने जादुई शक्ति से चित्रलेखा को बेड़ियों से आजाद कर दिया।

चित्रलेखा ने राजकुमार से पूछा - " आप को भी महायोगिनी ने कैद कर लिया है क्या ? "

राजकुमार ने चित्रलेखा को उससे मिलने के बाद जो जो हुया उसकी पूरी कहानी बता दिया । इसके बाद राजकुमार ने चित्रलेखा से पूछा - " तुम्हे इस तहखाने में किसने कैद किया ? "

चित्रलेखा - " जब मैं महायोगिनी को तुम्हारे बारे में और तिलिस्म के तीसरे द्वार के बारे में बताया तो वह मुझसे क्रोधित हो गयी और मुझे यँहा तहखाने में कैद करवा दिया ताकि मैं तुम तक दुबारा न पहुंच सकू । और महायोगिनी ने मेरी जादुई लेखनी भी छीन ली। "

राजकुमार - " जो हुया उसे भूल जाओ अब ये बताओ महायोगिनी के बाग में कैसे पहुंचा जाए ? मुझे जल्द ही अगले तिलिस्म के द्वार में जाना होगा ? "

चित्रलेखा बोली -" मैं तुमको महायोगिनी के बाग में जाने का रास्ता बता देती हूं लेकिन मैं बाग में नही जाऊंगी अगर मैं तुम्हारे साथ गयी तो वह मुझे जान से मार देगी । "

राजकुमार - " ठीक है आप मेरे साथ मत जाइए । आप मुझे बाग तक पहुंचने के लिए रास्ता बता दीजिए । मैं खुद चला जाऊंगा । जब तक मैं महयोगिनी को अपने वश में न कर लूं तब तक तुम यही रहना ।"

चित्रलेखा - " ठीक है , आप इस तहखाने के दाएं ओर मुड़ जाना , कुछ दूर चलने के बाद आपको एक हल्की रोशनी दिखाई देगी । आप उस रोशनी का पीछा करते हुए आगे बढ़ते रहना । थोड़ी देर में आप रोशनी वाले स्थान पर पहुंच जायेंगे। वह स्थान और कोई नही बल्कि बाग की एक मूर्ति होगी जिसके अंदर आप होंगे । आप वँहा से सब देख सकते है कि बाग के अंदर कौन कौन है ? "

राजकुमार चित्रलेखा से बाग तक पहुंचने का रास्ता जानने के बाद वँहा से चल दिया । राजकुमार तहखाने के दाएं ओर चल दिया कुछ दूर चलने पर उसे एक रोशनी नजर आने लगीं । राजकुमार रोशनी देखकर जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगा ।

राजकुमार रोशनी वाली जगह पर पहुंच गया । जिस जगह से रोशनी आ रही थी उस जगह से बाग का दृश्य देखा । बाग के बीच मे एक सोने का पिंजरा था उस पिंजरे में एक तोता था जिसमें महयोगिनी की जान थी ।

बाग के चारो तरफ प्रेत पहरा दे रहे थे । सोने के पिजरे के चारो ओर बौने राक्षस पहरा दे रहे थे। और महायोगिनी सोने के पिंजरे के ऊपर उड़ते हुए पहरा दे रही थी ।

कल्कि कंही भी दिखाई नही पड़ रहा था । राजकुमार सोचने लगा कि पिंजरे तक कैसा पहुंचा जाए । तब तक इधर पिंजरे के पास कल्कि भी पहुंच चुका था । 

कल्कि पहुँचते ही महयोगिनी से बोला - " स्वामिनी , मैंने जल महल का कोना कोना ढूढ़ लिया लेकिन राजकुमार मुझे कही नहीं मिला । "

राजकुमार के विषय मे कोई जानकारी न मिलने पर महयोगिनी गुस्से से तिलमिला गयी । इधर राजकुमार ने पिंजरे तक पहुंचने के लिये उपाय सोच लिया था ।

राजकुमार  ने अपनी जादुई शक्ति से एक तिलिस्मी भौरा बनाया और उसे महायोगिनी के बाग में छोड़ दिया । भौरा बाग में पहुंचते ही अपना आकार बढ़ाने लगा ।

महायोगिनी के बाग में अचानक इस तरह से भौंरे के आ जाने से सब विस्मित थे । आखिर इतने सुरक्षा के बावजूद भी यह भौरा अचानक बाग में कंहा से आ गया ।

बाग में पहरा दे रहे है सभी भूत प्रेत , बौने राक्षस भौंरे के नजदीक आकर उसको चारों तरफ से घेर लिया । महायोगिनी और कल्कि पिंजरे के पास खड़े होकर यह सब क्रिया कलाप देख रहे थे ।

इधर भौरे का शरीर हवा में बढ़ता चला ही जा रहा था । भूत प्रेत , बौने राक्षस उसे रोकने का कुछ उपाय सोच पाते उससे पहले ही अचानक भौरे का शरीर तेज धमाके के साथ फट गया । और भौंरे का खून आस पास इकठ्ठे सभी भूत प्रेत और बौने राक्षसों के ऊपर पड़ गया ।

सभी के ऊपर खून पड़ते ही सभी के शरीरों में तेज जलन होने लगी और देखते ही देखते सभी भूत प्रेतों और बौने राक्षसों के शरीर गल गए । यह सब देख कर कल्कि और महायोगिनी को एक बड़ा सा झटका लगा । 

उसके सभी पहरेदार एक ही झटके में मारे गए थे । और महायोगिनी यह सब समझ नही पा रही थी कि ये सब किसने और कैसे किया ?

अभी महायोगिनी इस घटना को भूल ही नही पाई तभी उसे जमीन हिलती हुई नजर आने लगी । और वह इधर उधर लुढ़कने लगी । और उसे अपने कानों में किसी के आने की आवाज सुनाई देने लगी । महायोगिनी आवाज की दिशा में अपनी नजर दौड़ाई । सामने का दृश्य देखकर महायोगिनी के पैरों तले जमीन खिसक गई।

महायोगिनी के सामने पहाड़ की तरह दिखने वाला एक विशालकाय राक्षस बढ़ रहा था जिसके चलने से जमीन पर भूकंप के झटके लग रहे थे । 


विशालकाय राक्षस महयोगिनी की तरफ धीरे धीरे बढ़ रहा था । इस तरह से अचानक विशालकाय राक्षस को बाग में आते देखकर कल्कि उस पर हमला कर दिया लेकिन विशालकाय राक्षस को उस हमला का कोई असर नही हुआ । 

जवाब में विशालकाय राक्षस ने कल्कि के ऊपर एक जोरदार प्रहार किया । प्रहार लगते ही कल्कि दूर उछलकर गिरा और वही बेहोश हो गया ।

इधर महायोगिनी लड़खड़ाते हुए खड़ी हो गई । विशालकाय राक्षस अब महायोगिनी के काफी नजदीक आ गया । विशालकाय राक्षस को देखकर महायोगिनी अवाक होते हुए उससे बोली - " कुसुम्भा तुम यँहा पर मैंने तो तुम्हे कैद करके जलते हुए  ज्वालामुखी के मुहाने में छोड़ दिया था जिसमे तुम तो जल गए थे मैंने खुद देखा था। लेकिन तुम तो मेरे सामने जीवित खड़े हो । तुम बच कैसे गए ? "

उधर राजकुमार धरमवीर भी झटके खाकर गिर गया था और जब उठकर बाहर का माहौल देखा और उनकी बातें सुनी तो बीच मे न जाना ही उचित समझा । राजकुमार मौके का इंतजार करना ही उचित समझा और मौके का इंतजार करते हुए महायोगिनी और कुसुम्भा कि बात चीत सुनने लगा ।

इधर कुसुम्भा गुस्से से दहाड़ते हुए महायोगिनी से बोला - "  मेरा जलमहल मुझसे छिनने के लिए तुमने मुझसे छल किया है मैं तुम्हे जिंदा नही छोडूंगा । और रही बचने के बात तो जिस ज्वाला मुखी में तुमने मुझे छोड़ा था वह सागर के ऊपर था । जब तुमने मुझे कैद करके ज्वालामुखी में डाल दिया तो मैं आग में जलने लगा और बेहोश हो गया । तुम्हे लगा मैं मर गया लेकिन मैं ज्वालामुखी के गहराई तक पहुंच गया तो मुझे वँहा सागर मिल गया । मैं सागर में चला गया और बच गया लेकिन शरीर जल जाने के कारण मैं कमजोर हो गया था इसलिए मैं तुम्हारे पास नही आ सका और अब मैं पूरी तरह से ठीक हो गया तो तुमसे अपना जलमहल वापस लेने आ गया हूँ । "

कुसुम्भा की बात सुनकर महायोगिनी जोर जोर से हँसने लगी और हँसते हुए बोली - " कुसुम्भा तू कल भी मूर्ख था और आज भी मूर्ख है । आज मैं तुझे यही अपने सामने ही मार दूँगी । जिससे दुबारा तू बच ही न पाए । "

इतना कहने के बाद महायोगिनी ने अपने हाथों से एक जादुई किरण कुसुम्भा की ओर छोड़ दिया । किरण कुसुम्भा के जाकर लग गई । किरण के लगते ही कुसुम्भा एक ओर जा गिरा । 

कुसुम्भा को ज्यादा चोट नही आई । वह फुर्ती से उठ खड़ा हुया और अपने मुंह से तेज हवा चलाने लगा । महायोगिनी कुसुम्भा के हवा के सामने नही टिक पाई और उड़ती हुई एक पेड़ से जा टकराई । महायोगिनी को काफी चोंटे आई।

महायोगिनी  सम्भल पाती उससे पहले ही कुसुम्भा ने महायोगिनी के ऊपर एक किरण से हमला कर दिया । महायोगिनी पहले से ही घायल थी और इस हमले से और ज्यादा घायल हो गई । कुसुम्भा ने इस बार अपने शरीर से एक चक्र प्रकट किया और महायोगिनी की ओर छोड़ दिया। महायोगिनी कुछ समझ पाती उससे पहले ही चक्र घूमता हुआ आया और महायोगिनी की गर्दन काट दी ।

महायोगिनी एक चीख के साथ शांत हो गई । कुसुम्भा महायोगिनी की मौत देखकर पागलों की भांति हँसने लगी ।उधर राजकुमार महायोगिनी की मौत देखकर सोच में पड़ गया कि इसकी जान तो पिंजरे में बंद तोते में है तो यह मर कैसे गई । अगर यह सच मे मर गई तो मैं तिलिस्म के अगले द्वार में कैसे जाऊंगा ? राजकुमार यह सब सोच ही रहा था। तभी उसने देखा महायोगिनी की कटी हुई गर्दन वापस उसके धड़ में जुड़ गई । इधर कुसुम्भा हँसे जा रहा था अचानक कुसुम्भा के पीठ में एक जोरदार वार हुया । 

कुसुम्भा पलट कर पीछे देखा तो आश्चर्यचकित रह गया । महायोगिनी जीवित खड़ी थी और साथ मे कल्कि भी खड़ा था । कुसुम्भा विस्मित होते हुए महायोगिनी से पूछा - " तुमको तो मैंने मार दिया था तुम जीवित कैसे हो गए  ? "

महायोगिनी बोली - " अरे मूर्ख मेरी जान तो मेरे जिस्म में तो है ही नही तो मुझे तू कैसे मार सकता है ?" 

कुसुम्भा -" लेकिन तुम्हारी गर्दन को मैंने अपने चक्र से काटा था । "

महायोगिनी - " वह एक छलावा था तुझे मूर्ख बनाने के लिए ताकि मैं कल्कि को होश में ला सकू और उसके साथ मिलकर तुझे मार सकूँ । "

इतना कहने के बाद महायोगिनी और कल्कि दोनो ने एक साथ अपने हाथों से अग्नि किरण कुसुम्भा की ओर छोड़ दिया । अग्नि किरण लगते ही कुसुम्भा जलने लगा और थोड़ी देर कुसुम्भा राख की ढेर में बदल गया ।

महायोगिनी और कल्कि कुसुम्भा से लड़ते हुए थोड़ा थक गए थे । वे दोनो आराम करने के लिए एक जगह बैठे ही थे । तभी महायोगिनी को अपने गर्दन पर एक दबाव महसूस हुया उसे ऐसा लगा जैसे उसकी कोई गर्दन दबा रहा हो ।

महायोगिनी को समझने में देर नही लगी कि पिंजरे में बंद तोते की कोई गर्दन दबा रहा है । महायोगिनी एक पल की देर किए बिना तुरन्त पिंजरे के पास पहुंची । जँहा पर राजकुमार धरमवीर तोते की गर्दन दबाए हुए पकड़े खड़ा था । राजकुमार महायोगिनी और कुसुम्भा की लड़ाई का फायदा उठाकर तोते को अपने कैद में ले लिया था ।

राजकुमार को देखकर महायोगिनी डर गई । और डरते हुए बोली  - " राजकुमार तुम जो भी कहोगे मैं वह सब करूंगी । बस मेरी जान मुझे वापस कर दो । "

राजकुमार  बोला - " तुम्हारे बातों का कैसे यकीन कर लूं ? मैं तुम्हारा तोता तभी वापस करूँगा जब तुम मुझे तिलिस्म के तीसरे द्वार में जाना का रास्ता बताओगी । और अपने कैद से चित्रलेखा को आजाद कर दोगी । "

महायोगिनी बोली - " मुझे मंजूर है लेकिन तिलिस्म का द्वार खोलने के लिए मुझे लाल मोतियों की माला चाहिए जो मेरे पास नही है। "

राजकुमार बोला - " मेरे पास लाल मोतियों की माला है । लेकिन पहले तुम चित्रलेखा को आजाद करो । "

राजकुमार के इतना कहते ही महायोगिनी ने अपने सेवक कल्कि को चित्रलेखा को आजाद करने के लिए भेज दिया । और खुद राजकुमार को साथ मे लेकर एक दिशा की ओर चल दिया ।

कुछ दूर तक चलने के बाद महायोगिनी एक गुफा के पास पहुंच गई और राजकुमार से बोली - " मुझे लाल मोतियों की माला दो और मेरा तोता मुझे सौंप दो ।"

राजकुमार बोला - " ऐसे नही , पहले तुम मुझे वचन दो की अपने से कम शक्तियों वाली चुड़ैलों को न ही सताओगे और न ही उनसे गुलामो की तरह बर्ताव करोगे । "

महायोगिनी बोली - " मैं बचन देती हूँ आपने जैसा कहा है मैं वैसा ही करूंगी । "

महायोगिनी की बात सुनकर राजकुमार ने तोते को एक कवच में घेर दिया और महायोगिनी से बोला - " मैं जैसे ही अगले द्वार में पहुंच जाऊंगा यह घेरा अपने आप हट जाएगा । अगर तुमने कुछ भी होशयारी की तो तुम्हारा तोता जान से मारा जाएगा और तोते के मरते ही तुम भी मर जाओगे । "

महायोगिनी राजकुमार की बात सुनकर सहम गयी और वैसा ही किया जैसा राजकुमार ने कहा । महायोगिनी लाल मोतियों की माला लेकर गुफा के सामने खड़ी हो गयी और कुछ मंत्र बुदबुदाने लगी । 

मंत्र पूरा होते ही लाल मोतियों की माला एक बड़े से मोती में बदल गया और वह मोती धमाके साथ फुट गया । मोती के फूटते ही एक लाल रंग की ऊर्जा निकली और राजकुमार को लेकर उसी मोती में समा गई और मोती वापस जुड़कर हवा में गायब हो गया । मोती के गायब होते ही तोते के ऊपर से घेरा हट गया । महायोगिनी तोते को लेकर अपने जलमहल में लौट गई ।

इधर लाल रंग की ऊर्जा ने राजकुमार को एक ऐसे कक्ष में छोड़ा जो चारो तरफ से बंद था । उस कक्ष के चारो दीवार में चार जानवर के चित्र बने हुए थे । जिनमें से एक गाय , दूसरा हाथी , तीसरा घोड़ा और चौथा शेर का था ।

राजकुमार समझ गया की वह तिलिस्म के तीसरे द्वार में उपस्थित राजमहल के किसी कक्ष में है । 

          

                      क्रमशः .................... 💐💐💐💐💐💐💐💐

आगे का भाग जैसे ही अपलोड करू , उसका नोटिफिकेशन आप तक पहुंच जाए इसलिए मुझे जरूर फॉलो करें ।और यह भाग आप सबको पढ़कर कैसा लगा यह अपनी सुंदर समीक्षा देकर जरूर बताये । अगले भाग तक सभी को राम राम🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏



विक्रांत कुमार
 फतेहपुर
उत्तर प्रदेश
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️