Tamas Jyoti - 29 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 29

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तमस ज्योति - 29

प्रकरण - २९

अमिता बोली, "नमस्कार! दोस्तो! मैं अमिता आप सभी का एक बार फिर से स्वागत करती हूं आप सभी के चहिते  इस कार्यक्रम रुबरु में। और मेरे साथ है मौजूद जाने-माने संगीतकार श्री रोशनकुमारजी। आइए अब रोशनकुमार के साथ हमारी इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं। ब्रेक में जाने से पहले हमने देखा कि रोशन कुमार अब मुंबई पहुंच चूके है। लेकिन अभी तक उन्होंने हमें यह नहीं बताया है कि उन्हें और फातिमा को एक-दूसरे के लिए अपने प्यार का एहसास कैसे हुआ? तो रोशनजी! अब आप हमें और हमारे दर्शकों को बताएं कि आपके मुंबई आने के बाद फातिमा के साथ क्या हुआ? अब तक की बातचीत से यह तो समझ आता है कि फातिमा के प्रति आपके मन में प्यार की भावनाएँ थीं, लेकिन फातिमा के मन में क्या था, यह हम अभी भी नहीं जानते है। तो थोड़ा इस बारे में भी हम सबको बताए। क्या फातिमा को आपके प्यार का एहसास हुआ? क्या उसे भी एहसास हुआ कि वह भी आपसे प्यार करती है? आपके मन में जो डर था कि फातिमा एक अंधे आदमी से शादी क्यों करना चाहेगी क्या वह डर दूर हुआ या नहीं? क्या है आपकी प्रेम कहानी? थोड़ा विस्तार से अब आप हमें बताए।’’ अमिता अब यह जानने को बहुत उत्सुक लग रही थी कि आगे क्या हुआ।

रोशन बोला, जी अमिताजी! मेरी और फातिमा की प्रेम कहानी भी अब मेरे यहां मुंबई आने के बाद से ही शुरू हुई थी। मैं यहां मुंबई आ गया उससे पहले की बात मैं आपको बताता हूं। मुंबई आने से पहले मेरे विद्यालय के सभी छात्रों, ममतादेवी और फातिमा सभीने मिलकर मेरी विदाई पार्टी और साथ ही साथ मेरे पापा की स्वागत पार्टी दोनों की व्यवस्था की थी।

ममतादेवीने सभी विद्यार्थियों को हमारे विद्यालय के प्रार्थना कक्ष में बुलाया और मेरी विदाई पार्टी का पूरा समारोह भी वहीं मनाया गया। उस वक्त मेरे पापा भी मेरे साथ थे। ममतादेवीने उस दिन उन्हें भी बुलाया था ताकि विद्यालय के सभी छात्र उन्हें जान सकें और मेरे वहां से जाने के बाद छात्रों को भी कोई कठिनाई न हो। विद्यालय के सभी छात्रों की संगीत साधना बिना किसी रुकावट के चला करें उसकी पूरी व्यवस्था ममतादेवीने बहुत ही अच्छे से की थी। चलो अब मैं आपको उस पार्टी के बारे में बताता हूं।

मेरी विदाई के दिन ममतादेवीने मंच पर से हमारे सभी छात्रों से कहा, "मेरे प्रिय छात्र मित्रों! जैसा कि आप सभी जानते हैं, आपके प्रिय गुरु श्री रोशनकुमार आज आपको छोड़कर जा रहे हैं। उनका जाना हम सबके लिए दु:खद तो है ही लेकिन साथ साथ इस बात की खुशी भी है कि वह उन्नति के पथ पर है। उन्हें एक अच्छा अवसर मिला है जिसे पूरा करने के लिए ही वह मुंबई जा रहे है। एक नया भविष्य उनका इंतजार कर रहा है। हम सभी चाहते है कि वह अपने जीवन में बहुत आगे बढ़े और इसी तरह प्रगति करते रहें।"

ममतादेवी की यह बात सुनकर एक छात्रने तुरंत कहा, "मैडम! अगर रोशन सर चले गए तो हमें संगीत कौन सिखाएगा? हमारे भविष्य का क्या होगा? क्या अब हम उनसे संगीत नहीं सिख पाएंगे?"

यह सुनकर ममतादेवीने उत्तर दिया, "उस बारे में आप लोग बिल्कुल भी चिंता मत करो क्योंकि उनकी जगह पर अब रोशन साहब के पापा ही अब आप लोगों को संगीत सिखाएंगे। आप लोगों को शायद पता नहीं है इसलिए मैं आपको बताना चाहूंगी कि रोशन सर के पापा भी आज हमारे बीच मौजूद हैं। और अब मैं रोशनजी के पापा सुधाकरजी से अनुरोध करूंगी की वे हम सबके बीच आए और दो शब्द कहें।"

इतना कहने के बाद ममतादेवीने माइक मेरे पापा को दे दिया। मेरे पापाने मेरे स्कूल के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा, "दोस्तों! अब तक आप केवल मेरे बेटे रोशन को ही जानते थे। अब आप सब मुझे भी जानेंगे। अब से मैं ही आप सबको संगीत का ज्ञान दूँगा और मैं पूरी कोशिश करूँगा की आपको रोशन की कमी कभी भी महसूस ना हो।"

अब तो हम रोज ही मिलनेवाले है इसलिए बिना अधिक समय बर्बाद किए मैं अपनी बात यहीं समाप्त करता हूं और अब रोशन को माइक देता हूं।'' इतना कहते हुए मेरे पापाने माइक मुझे सौंप दिया।

मैंने माइक हाथ में लिया। हालाँकि मैं सबके चेहरे तो नहीं देख सकता था, लेकिन मुझे महसूस हो रहा था कि विद्यालय के वे सभी छात्र मेरे जाने से बहुत ही दु:खी थे।

कभी-कभी हम बिना आँखों के भी बहुत कुछ देख लेते है। हालाँकि मेरे पास अब आँखें तो नहीं थी लेकिन प्रकृतिने मुझे एक विशेष दृष्टि जरूर दे दी थी, जिसके माध्यम से मैं ये महसूस कर सकता था कि मेरे छात्र मुझसे कितना प्यार करते है! और मेरे जाने से वे सब कितने दु:खी थे! इस बात का एहसास तो मुझे बिना आंखो के भी हो ही रहा था।

मेरे इस पूरे विदाई समारोह के दौरान फातिमा बिल्कुल चुप ही थी वह बात ममतादेवी की नजरों से छुपी नहीं रही।

मुझे बहुत अच्छे से विदा किया गया। एक तरफ मैं खुश था और दूसरी तरफ मैं दो कारणों से दु:खी भी था। एक तरफ मुझे इस विद्यालय के छोटे छोटे सूरदास छात्रों को छोड़ने का दु:ख था तो दूसरी ओर मुझे फातिमा से अलग होने का भी दु:ख था। मैं ये सोचकर दु:खी था की फातिमा की आवाज अब मेरे कानो में नहीं गूंजेगी।

शायद इसी को तो लोग प्यार कहते है! जिसे मैं उस वक्त समझ ही नहीं पाया। और मेरी तरह शायद फातिमा भी उस वक्त यह बात नहीं समझ पाई थी की प्यार तो उसे भी है!

लेकिन हम दोनों को एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार का एहसास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका ममतादेवीने निभाई। 

जब मेरा विदाई समारोह चल रहा था तो फातिमा उदास मन से एक कोने में चुपचाप बैठी हुई थी। जब मैं मंच पर अपने साथी छात्रों के साथ बातचीत कर रहा था तब ममतादेवी फातिमा के पास आई और उससे पूछा, "अरे! फातिमा! तुम इतनी उदास क्यों बैठी हो? क्या बात है?"

फातिमा बोली, "कुछ भी तो नहीं है मैडम! रोशनजी अब चले जाएंगे उस बात का दुःख है।" इतना कहते हुए फातिमा की आंखों में आंसू आ गए। 

ममतादेवीने फातिमा की आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा, "एक बात पूछूं फातिमा? क्या तुम्हारे मन में रोशन के लिए प्यार की भावना है? क्या तुम उसे पसंद करती हो?"

कुछ क्षण तक फातिमा बस ममतादेवी को देखती ही रही। यह उसकी कल्पना से परे था कि ममतादेवी अचानक उससे यह बात कहेंगी। ममतादेवी की यह बात सुनकर फातिमा चौंक सी गई थी को। उसने तुरंत कहा, "नहीं! नहीं! मैं उसे केवल एक दोस्त के रूप में पसंद करती हूं। इससे ज्यादा ओर कुछ नहीं।"

ममतादेवीने फातिमा की ये बात सुनकर उससे केवल इतना ही कहा, "फातिमा! मैंने तो तुम्हें वही बताया है जो मुझे नजर आया। मैं तुमसे ज्यादा कुछ तो नही कह सकती क्योंकि तुम खुद अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो। मैं सिर्फ तुम्हें इतना बताना चाहती हूं की अभी भी देर नहीं हुई है। रोशन के जाने से पहले तुम उससे अपने प्यार का इज़हार कर दो।

(क्रमश:)