Tamas Jyoti - 28 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 28

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तमस ज्योति - 28

प्रकरण - २८

मैं अब रईश के घर पहुंच गया था। उसकी शादी के बाद आज हम दोनों भाई पहली बार मिले। आज का दिन और आज की रात मुझे रईश के घर ही रुकना था। फिर दूसरे दिन की सुबह को अभिजीत जोशी मेरे लिए जो गाड़ी भेजनेवाले थे उसी में बैठकर मुझे मुंबई जाना था। मुंबई में एक नया सुनहरा भविष्य मेरा इंतज़ार कर रहा था।

आज रईश के घर आकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। रईश की शादी के बाद हम दोनों भाई पहली बार ऐसे मिले।

मेरे पिता मुझे राजकोट से अहमदाबाद तक छोड़ने मेरे साथ आए थे। वे दोपहर का भोजन करने के बाद घर वापस लौट जाने वाले थे। नीलिमाने बहुत ही अच्छा खाना बनाया था। उसने आलू मटर की सब्जी, रोटी, दाल, चावल, और सूजी का हलवा बनाया था, जिसे हम सभीने बड़े चाव से खाया। लगभग एक घंटे के बाद, मेरे पापा राजकोट वापस जाने के लिए रईश के घर से निकलनेवाले थे। रईश को जाने से पहले पापा के साथ कुछ समय बिताना था और मेरे पापा भी रईश से उसके रिसर्च के बारे में जानना चाहते थे।

वह जानना चाहते थे कि रईशने अब तक अपने रिसर्च में क्या काम किया है, इसलिए उन्होंने रईश से पूछा, "रईश बेटा! तुम्हारा रिसर्च कैसा चल रहा है? तुम अपने रिसर्च में कितना आगे बढ़े हो?"

मैं भी रईश के इस रिसर्च के बारे में जानने को बहुत उत्सुक था। जैसे ही पापा का ये वाक्य मेरे कानों में पड़ा तो मेरे कान भी कुछ चौकन्ने से हो गये। मैं यह जानने के लिए बहुत उत्साहित था और क्यों न होऊ!? आख़िरकार रईश जो भी रिसर्च करनेवाला था उसी पर तो मेरा आगे का भविष्य तय होनेवाला था!

मेरे पापा का यह सवाल सुनकर रईशने कहा, "पापा! आपने यह बहुत अच्छा सवाल पूछा है। मैं काफी समय से आपसे इस बारे में बात करना चाहता था, लेकिन फोन पर इतनी लंबी बात करना संभव नहीं था, इसलिए मैंने आपके यहां आने का इंतजार किया। मेरे पास बहुत सी बातें हैं जो मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूं।"

मेरे पापाने कहा, "तो फिर बताओ बेटा! मैं भी तो सुनूं कि मेरा बेटा किस तरह की रिसर्च कर रहा है!" मेरे पापा भी रईश की बात सुनने के लिए बड़े उत्सुक थे। 

अब रईशने मुझे और पापा को अब तक अपने द्वारा रिसर्च की गई हर चीज़ के बारे में जानकारी दी।

उसने कहा, "जब मैंने और नीलिमा दोनोंने पहले दिन नौकरी जॉइन की तो हमारे सरने हमसे कहा कि अगर तुमने यहां नौकरी जॉइन कर ली है तो मुझे विश्वास है कि तुम दोनों की वाकई इस रिसर्च में रुचि है। यह एक आंखों का अस्पताल है और इसी के साथ जुड़ा हुआ है यह हमारा नेत्रदीप आय रिसर्च सेन्टर। डॉ. प्रकाश तन्ना इस अस्पताल के संस्थापक हैं और वह अस्पताल के साथ-साथ इस रिसर्च सेन्टर को भी चलाते हैं।

यहां आने वाले सभी मरीजों में से ज्यादातर मोतियाबिंद के मरीज ही होते हैं। इसके अलावा विभिन्न नेत्र रोगी भी आते है जिनकी सेवा में यहां डॉक्टर प्रकाश सदैव मौजूद रहते है। वे अपने प्रत्येक मरीज़ के प्रति बहुत ही करूणा का भाव रखते है। और यहां के मरीज भी इन्हें ईश्वर का ही रूप मानते हैं।

यहां उन्होंने जानवरों पर रिसर्च के लिए एक एनिमल हाउस भी बना रखा है। यहां चूहे, गिनीपिग, खरगोश आदि जानवरों की आंखों पर रिसर्च किया जाता है। 

नीलिमा और मैंने सबसे पहले चूहे की आँखों पर रीसर्च करना शुरू किया था। फिल्हाल हम चूहे की आंखों की कॉर्निया के एपीथेलियल सेल का कल्चर करते है।

मेरे पापाने पूछा, "यह सेल कल्चर क्या होता है?" 

इसका जवाब देते हुए रईशने बताया, "आम बोलचाल में कहूं तो आंखो के नेत्रगोलक के आसपास के हिस्से को कॉर्निया कहा जाता है। इस कॉर्निया के अंदर स्टेमसेल होते हैं जिन्हें एपिथेलियल स्टेमसेल कहा जाता है। इसी स्टेमसेल को प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से कल्चर किया जाता है। जिसके लिए उन्हें कल्चर मीडिया की आवश्यकता होती है। इन स्टेमसेल को कल्चर मीडिया के भीतर ही कल्चर किया जाता है। इन कल्चर मीडिया में हमारे शरीर के भीतर मौजूद तत्वों के समान ही तत्व होते हैं। जिससे इन कोशिकाओं को पोषण मिलता है और इनका विकास प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से किया जाता है। धीरे-धीरे इन कोशिकाओं की संख्या बढ़ती जाती है और एक से कई कोशिकाएँ बनने लगती हैं जिसे सेल प्रोलीफरेशन कहते हैं। फिर कृत्रिम रूप से विकसित इन कोशिकाओं को जानवर की आंखों में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस प्रकार हम स्टेम कोशिकाओं को विकसित करने का काम करते हैं और फिर डॉक्टर इस कृत्रिम रूप से विकसित कोशिकाओं को जानवर की आंखों में प्रत्यारोपित करने का काम करते हैं। अब तक हम इन कोशिकाओं को इसी तरह चूहों और खरगोशों की आंखों में प्रत्यारोपित करने में सफल रहे हैं। भविष्य में अगर सब कुछ ठीक रहा तो यह प्रयोग इंसानों पर भी लागू होगा। आम तौर पर अगर कोई डोनर मिल जाए तो ही कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया जा सकता है, लेकिन इस तरह से डोनर मिलने की संभावना बहुत कम होती है और अस्वीकृति की संभावना भी अधिक होती है। जबकि हम जो रिसर्च कर रहे हैं उसमे कृत्रिम रूप से विकसित कोशिकाएं होती है और इसलिए अस्वीकृति की संभावना भी बहुत ही कम हो जाती है और डोनर भी नहीं ढूंढना पड़ता है। अगर हम इसे इंसानो पर भी लागू कर पाए तो फिर तो विज्ञान का ये बहुत ही बड़ा आविष्कार होगा।"

यह सब सुनकर मेरे पापा बोले, "यह तो बहुत ही अच्छा काम है जो आप दोनों कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि आप दोनों इंसानों पर भी यह प्रयोग करने में सफल होंगे और रोशन की आंखों की रोशनी बहुत ही जल्द वापस आ जाएगी। अब मुझे चलना चाहिए रईश बेटा! तुम दोनों की मम्मी मेरा इंतजार कर रही होंगी।"

मैंने भी अपने पापा से कहा, "पापा! मैं भी मुंबई पहुंचकर आपको जरुर फोन कर दूंगा।"

पापाने कहा, "ठीक है तो फिर मैं अब चलता हूं।"

"मेरे पापा फिर घर वापस चले गए और अगली सुबह मैं उस कार से मुंबई चला गया जो अभिजीत जोशीने मेरे लिए भेजी थी। मुंबई में अब मेरी एक नई यात्रा शुरू होनेवाली थी।" स्टूडियो में बैठे रोशन कुमार बोल उठे।

ये सुनकर अमिता बोली, "आपके भाई रईशजीने बहुत ही अच्छा काम किया है। आप बहुत भाग्यशाली है की आपको ऐसा भाई मिला जो आपकी इतनी परवाह करता है!" 

मैंने कहा, "हां, मैं भाग्यशाली तो हूं अमिताजी! उसमे कोई दोराहे नही है।"

अमिता बोली, "आइए अब हम अपनी बात को आगे बढ़ाते है। अब आप हमें ये बताईएं कि मुंबई आने के बाद आपके साथ क्या हुआ? आप किस तरह से इतने बड़े संगीतकार बने? इतना बड़ा मुकाम आपने कैसे हासिल किया?" 

रोशन कहा, "मैं वह सब आपको बताऊंगा, लेकिन पहले एक ब्रेक ले ले क्या?"

अमिता बोली, "हाँ, हाँ, क्यों नहीं? तो चलिए दोस्तों! रोशनकुमार की ये बातें तो मेरे साथ जारी ही रहेंगी, लेकिन उससे पहले लेते है एक छोटा सा ब्रेक, क्यों की ब्रेक तो बनता है! कही मत जाइएगा दोस्तो! हम बहुत ही जल्द वापस लौटेंगे।

(क्रमश:)