Shuny se Shuny tak - 74 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 74

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शून्य से शून्य तक - भाग 74

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   अनन्या की मम्मी पशोपेश में थीं जो एक बेटी की माँ की हैसियत से स्वाभाविक ही था| मन में उमड़-घुमड़कर पचासियों सवाल मुँह बाए सामने आकर खड़े हो रहे थे| 

"आप डैडी से मिलिए, घर का वातावरण देखिए, मेरी छोटी बहन रेशमा भी यहीं----बल्कि हम तीनों भाई-बहन ही डैडी-मम्मी के एक्सीडेंट के बाद इनके पास ही रहते हैं| हम लोग आपको छोड़ने आ जाएंगे वरना अगर आप आज वहाँ रहना चाहें तो---"मनु के मुँह से निकला| 

"क्या बात कर रहे हो?मैं बेटी के घर जाकर रहूँगी ?छोटा है या बड़ा लेकिन मेरा अपना घर है जो बहुत है मेरे लिए---"उन्होंने बौखलाकर कहा| 

"अभी तो बेटी का भी ठिकाना नहीं है और तुम----" अनन्या की मम्मी ने दुखी मन से कहा| 

"आँटी! मैं अभी तो आज की बात कर रही हूँ वैसे इसमें आप कोई शक न रखें आँटी---हम सब बहुत लकी हैं जो हमें दीना अंकल का प्रोटेक्शन मिला है| वे हम सबको अपना बेटा और दोस्त सा ही समझते हैं, अनन्या भी उनके लिए बेटी जैसी ही है---"आशिमा ने उनको कैसे मनाया, यह बहुत बड़ी बात थी| वे दीना जी से मिलने के लिए तैयार हो गईं| उन्होंने अनन्या से अपना सामान पैक करने के लिए कह दिया| 

“बिना किसी रिश्ते के----”वे धीरे-धीरे भुनभुनाती भी जा रही थीं| 

“रिश्ते तो मन के होते हैं आँटी, समाज के रिश्ते तो मुहर लगाने के काम आते हैं| अंकल और उनकी बेटी के रिश्ते से यानि बेटी से अधिक करीब और कौनसे रिश्ते हो सकते हैं?फिर भी अंकल अनन्या को न्याय देने के बारे में सोचकर परेशान होते हैं| ”आशिमा ने कहा| 

  उस दिन मनु को घर पहुँचने में काफ़ी देर हो गई थी, उसने फ़ोन कर दिया था कि वह किसी काम में उलझ गया है| दीना को अब मनु की चिंता भी हो आई, कहाँ रह गया ?वह तो उनको बिना बात अकेला नहीं छोड़ता| सब कुछ ठीक चल रहा है ऑफ़िस में तो कहाँ फँस गया होगा बच्चा?उन्हें चिंता होने लगी तो वे फिर से असहज महसूस करने लगे | उन के मन में तो एक ही बात गाँठ मारकर बैठी थी कि किसी प्रकार अनन्या को उसका अधिकार मिल जाए| इसी चिंता में वे अपना स्वास्थ्य खराब कर रहे थे| 

   आशिमा ने यह बात भी अनन्या की मम्मी को बताई थी कि मनु और अनन्या की चिंता में दीना अंकल घुलते जा रहे हैं| अचानक माधो खुशी-खुशी दीना जी के सामने आया;

“क्या हुआ?बहुत खुश है !” उन्होंने पूछा| 

“मनु भैया आ गए---”माधो ने कहा| 

   उनकी समझ में नहीं आया कि मनु के आने से वह इतना खुश क्यों है, उसको तो आना ही था बल्कि आज वह बहुत लेट आया था और उन्हें उसकी चिंता हो रही थी| 

“अंकल !”अचानक आशिमा आकर उनके गले से लिपट गई| 

“अरे! आशिमा बिटिया! अचानक---” वे खुश हो गए| 

पीछे-पीछे अनिकेत भी पहुँच गया, उसने जाकर दीना जी के पैर छूए---

“हमें तो आना ही था, आप किससे पूछकर बीमार हुए?”आशिमा ने उनसे शिकायत की | 

“अच्छा, मनु ने तुम्हें बता दिया, क्या मनु बेटा---आज इस माधो ने मुझे कमरे से बाहर भी नहीं निकलने दिया| उन्होंने शिकायत की | 

“दीदी! डॉक्टर साहब बोलकर गए थे आज मालिक को आराम करना है, बस—”

“जी डैडी, एक /दो दिन कर लीजिए रैस्ट। इसीलिए तो आज आपको ऑफ़िस नहीं लेकर गया| ”मनु ने हँसकर कहा| 

“आज देर भी कितनी कर दी?” 

“देर आपकी फ़रमाइश ने की डैडी---”मनु मुस्कराते हुए बोला तो दीना जी उसकी ओर आश्चर्य से देखने लगे| 

“मेरी फ़रमाइश ?”उन्होंने पूछा| 

मनु कमरे से बाहर गया और क्षण भर में अनन्या और उसकी मम्मी को लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया| दीना जी तो उछल पड़े जैसे| 

“अनन्या बिटिया !”वे खिल गए| 

अनन्या की मम्मी का परिचय कराया गया| 

“हम आपके जितने भी ऋणी रहें कम है बहन—”उन्होंने अपने हाथ अनन्या की मम्मी के सामने जोड़ दिए| 

  वे शर्मिंदगी से भर उठीं, उन्होंने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया लेकिन उनके मुँह से कोई बात नहीं निकली| इतने विनम्र भी होते हैं इतने बड़े लोग? उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था| सब उसी कमरे में पड़े सोफ़ों पर बैठ गए| 

“अनन्या बेटा, बहन जी, आप लोग बिलकुल चिंता न करें| आप लोगों की इज़्ज़त मेरी इज़्ज़त है| मैं अनन्या बेटी को उसकी सही जगह दिलवाऊँगा| अब परिस्थितियों के वश मनु मेरा बेटा है और आशिमा और रेशमा मेरी बेटियाँ हैं| एक तरह से देखें तो ईश्वर ने ही मुझे इन तीनों बच्चों का पिता बना दिया, उसके आदेश का पालन तो हमें करना ही है| 

“आपकी अपनी बेटी है---उसका अधिकार छीनकर आप अनन्या को देंगे?यह भी तो ठीक नहीं है| ”अनन्या की मम्मी ने धीरे से कहकर अपने मन की चिंता व्यक्त की| 

“आशी मेरी बेटी है, इकलौती बेटी---उसके लिए मैंने पिता की हैसियत से बहुत कुछ कर लिया लेकिन बहन, सब हमारे करने से नहीं होता न, ऊपर वाले ने जो सोचकर रखा होगा, वही होगा ! अब मैं थक गया हूँ, मुझसे अपने बेटे मनु का दुख नहीं देखा जाता| जो जिसके भाग्य में होगा, वही उसको मिलेगा| ”दीना जी ने एक लंबी आह भरी और मुस्कान ओढ़ने की चेष्टा की| 

“आपका दुख भी तो दिखाई दे रहा है न सेठ जी----”अनन्या की माँ ने कहा| वह खुद भी पशोपेश में ही थीं| कोई भी माता-पिता अपने बच्चे के दुख से बड़ा दूसरों के बच्चों के दुख को नहीं समझ पाते हैं| यह इंसान इतना बड़ा समर्पण कैसे कर सकता है?