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जीवन चलने का नाम ही तो है लेकिन आशी ने तो जीवन को अपने अनुसार बाँधना चाहा था| जब तक भावना के साथ बहता रहे तब तक इंसान की ज़िंदगी में हलचल और रौनक रहती है| यह सब प्रेम व समर्पण से ही तो संभव है लेकिन कहाँ समझ पाई वह! या कह लीजिए उसने समझना नहीं चाहा फिर बाद में क्यों?क्यों छलकने लगा प्रेम उसके मन में, प्राणों में, धड़कन में ?
कलम की गति आशी से न जाने क्या-क्या लिखवा रही थी और वह जैसे किसी के बस में थी| उसे पता चल चुका था कि उसके अपने पिता ने अनन्या को अपने घर-परिवार में बुला लिया था| उसका मन फिर से कुढ़ने लगा, वैसे ही पापा ने कौनसा उससे जस्टिस किया था, अब अनन्या को उसकी जगह दे दी?उसकी जगह कैसे दे सकते हैं वे--?उसके मन में अनगिनत विचारों का कोलाहल उछालें मारने लगा|
उधर परिवार में हलचल देखकर दीना की तबीयत बेहतर होने लगी थी| उन्हें कितने नए रिश्ते मिले थे| काश!उनकी बेटी रिश्तों की कीमत समझ पाती !लेकिन बेटी के पास तो जैसे सूचना पहुँचती, वह और भी बिलबिला जाती, और दो कदम नकारात्मकता की ओर बढ़ती जाती| एक ओर बेटी का अपने पास न होना उन्हें हर समय सालता, दूसरी ओर मनु की स्थिति ! उन्होंने अपने मन को पक्का कर लिया था कि बस, अब मनु की खुशी में ही उनकी खुशी है| एक बार आशी यहाँ आ जाए तब वे उससे तलाक दिलवाकर अनन्या को उसकी वास्तविक जगह दिलवाकर ही चैन पा सकेंगे| प्रश्न यही सबसे अधिक कठिन था, लड़की एक बार आ तो जाए--
अनन्या की मम्मी दीना को जब बार-बार सेठ जी कहतीं, उन्हें अच्छा नहीं लगता, वे असहज हो जाते| हर बार टोकते;
“बहन ! सेठ नहीं, मुझे भाई ही कहिए, सेठ व्यापार तक ही सीमित है और अगर परिवार ही नहीं है तो सेठ हो या राजा-महाराजा सब व्यर्थ है| मेरा इतना प्यारा परिवार है, इतने प्यारे बच्चे अब बहन भी मिल गई है, इससे अधिक क्या चाहिए?रही मेरी बेटी आशी की बात---जो उसके भाग्य में होगा वह उसे और उसके साथ मुझे भी सहन तो करना पड़ेगा ही| ” अनन्या की मम्मी देख रही थीं कि सब कुछ होते हुए भी दीना जी बिलकुल अकेले थे जैसे—लेकिन उनके घर के सहायक उनसे बच्चे और भाई-बहनों जैसा ही सम्मान पाते थे और वे सब उनका ऐसे ध्यान रखते थे जैसे वे सब इस परिवार कर सदस्य ही हों और माधो तो कमाल ही था| उन्हें आश्चर्यजनक संतुष्टि हुई, उन्होंने कहा;
“तो संभालिए भाई साहब आप अपनी अनन्या को, मैं आपसे मिलकर इसकी तरफ़ से संतुष्ट हो गई| अब मैं चलती हूँ---हाँ, आशी बेटी के लिए मन में दुख जरूर है| ” वे सच में रूआँसी थीं|
पहले अनन्या को कैसा लगता था कि उसकी माँ सौतेली होने के कारण उससे कटु व्यवहार करती हैं और वह उन्हें छोड़ गई थी लेकिन अब जब से वह वापिस आ गई थी, उसने महसूस किया था कि वह खराब महिला नहीं थीं बल्कि अपनी बेटी के कारण उनके स्वभाव में वह परिवर्तन था| इंसान भी न कितने कच्चे कान का हो जाता है! यही तो वह अपनी नानी के बाद भी महसूस करके आई थी| अचानक उसने सुना--
“देखिए। दुख करके भी क्या करेंगे हम लोग?एक मछली के मरने से सारा तालाब गंदा करने का तो कोई मतलब नहीं है न!क्या मालूम, वह आती भी है यहाँ या नहीं?उसके पास पैसे और बुद्धि की कोई कमी नहीं है| ”
एक बार दीना जी ने फिर से अनन्या की माँ के सामने मनु के लिए अफसोस प्रगट किया कि उन्होंने आशी से शादी करवाकर मनु बेटे को जैसे हथकड़ी लगवा दी है| उन्होंने कई बार इस बात को उनके सामने दुहरा दिया था कि होनी को आज तक कौन रोक सका है?
“पहले ही मनु पर इतना बड़ा अत्याचार कर चुका हूँ इस आशा में कि मेरी बेटी इतनी समझदार तो है ही जो अपने प्यार को न सही कर्तव्य को तो समझ ही लेगी | लेकिन वह गंभीर नहीं हो पा रही थी इसीलिए मैं इस बच्चे मनु का जीवन और कितने सूनेपन और अँधेरे में धकेल देता?अगर इसे अनन्या नहीं मिलती तब भी मैं इसके लिए कुछ तो करता| यह ईश्वर की कृपा ही है जो आपकी बेटी इसके और हमारे जीवन में आई है| इसके लिए हम आपके और परवरदिगार के बहुत आभारी हैं| ”कहते-कहते उनकी आँखें फिर भीग गईं और दिल की धड़कनें तेज़ रफ़्तार से चलने लगीं|
“डैडी ! आपको आराम की ज़रूरत है, प्लीज़---”मनु ने उन्हें लिटाने की कोशिश की|
“मैं निकलती हूँ भाई साहब, अब आप आराम करिए---”
“इतनी देर हो गई है और किसी ने डिनर भी नहीं किया है--माधो! महाराज से कह डिनर की व्यवस्था करवाओ न !” दीना जी ने माधो से कहा|
“इतना सारा नाश्ता करके कहाँ जरूरत है डिनर की अब?भाई साहब अब निकलने दीजिए मुझे, अब मैं आती रहूँगी आपसे, अनन्या और सबसे मिलने----कोई काम मेरे लायक हो तो कहिएगा, और हाँ—बस अब मेरी बेटी का जीवन आपके हवाले है| ”वे हाथ जोड़कर उठ खड़ी हुईं|
“डैडी! हम भी चलते हैं| बाबा, माँ सोच रहे होंगे हम कहाँ घूमने चले गए?और आप आँटी की चिंता मत करिए। हम इन्हें छोड़ते हुए निकल जाएंगे| ”अनिकेत ने कहा और उनके चरण स्पर्श करके उठ खड़ा हुआ| आशिमा भी दीना अंकल के गले मिली तो उन्होंने पितृवत स्नेह से उसके सिर पर हाथ फिरा दिया| उसने रेशमा को प्यार किया;
”देख! अब तेरी कंपनी आ गई है| ”सबके चेहरों पर एक चमक थी| माधो भी बहुत खुश हुआ, अब उसके मालिक और सभी चैन से सो सकेंगे|
“अनु बेटा, अब तुम्हें संभालना है खुद को भी और भाई साहब को भी जिन्होंने तुम्हें अपनी बेटी बना लिया है| ”वे काफ़ी निश्चिंत लग रही थीं| कुछ देर बाद ये लोग वहाँ से निकल गए| देर काफ़ी हो गई थी|