Kukdukoo - 16 in Hindi Drama by Vijay Sanga books and stories PDF | कुकड़ुकू - भाग 16

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कुकड़ुकू - भाग 16

“अरे रघु, मुझे दिखा तो तेरे हजार रूपये।” शिल्पा ने मजाकिया अंदाज मे रघु से कहा और मुस्कुराने लगी। शिल्पा की बात सुनकर बाकी सब भी हंसने लगे। फिर रघु ने शेखर और जानकी के भी पैर छूकर उनका आशीर्वाद ले लिया।

 “ओए रघु...! मेरे भी पैर छूकर आशीर्वाद ले।” शिल्पा ने रघु ने कहा और मुस्कुराने लगी।

 “अरे हां.. हां.. बिलकुल, अभी तेरे पैर छूता हूं , तू रूक।” कहते हुए रघु , शिल्पा की तरफ बढ़ने लगा, तो शिल्पा इधर उधर भागने लगी।

 “अरे रूक ना, कहां भाग रही है ! पैर तो छूने दे।” रघु ने शरारत भरी मुस्कुराहट के साथ कहा। 

“रहने दे, मुझे अपने पैर नही पड़वाने।” कहते हुए शिल्पा रूकी और दोनो हंसने लगे।

तभी पीछे से किसी ने कहा–“बहुत अच्छे बेटा, तुम बहुत अच्छा खेले।” जब रघु ने पलटकर देखा तो एक अधेड़ उम्र का आदमी उसके पीछे खड़ा था। ये वही आदमी था जो शिल्पा से रघु के बारे मे पूछ रहा था। रघु ने उनकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और अपनी तारीफ करने के लिए शुक्रिया कहा। उसके बाद रघु अपनी टीम के पास वापस आ गया। सभी लोग थोड़ी देर बाद घर के लिए निकल गए।

जैसे ही वो लोग गांव पहुंचे, उन्होंने देखा की गांव के मैदान मे बहुत से लोग ढोल वगेरा लेकर खड़े हैं। जैसे ही लोगों ने टीम के खिलाड़ियों को आता देखा तो वैसे ही वो लोग ढोल बजाने लगे। बहुत से लोग नाचने भी लगे। जैसे ही सारे खिलाड़ी मैदान मे आए, तो सरपंच ने आगे आते हुए दिलीप को फूलों की माला पहनाते हुए कहा–“बेटा आज तुम लोगो ने हमारे गांव का नाम रोशन कर दिया।” ये कहते हुए सरपंच के चेहरे पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी। 

रघु और बाकी खिलाड़ियों ने भी आगे आते हुए सरपंच के पैर छू लिए। सरपंच ने मुस्कुराते हुए सबको आशीर्वाद दिया और कहा–“बच्चो इस टूर्नामेंट को जीतने के लिए तुम सबने बहुत मेहनत की है। मेरी तरफ से तुम सबके लिए छोटा सा तौफा।” कहते हुए सरपंच ने अपने से थोड़ी दूर रखे डब्बों की तरफ इशारा किया।

वो सब समझ नही पा रहे थे की इन डब्बों मे क्या है, पर दिलीप को पता था की इन डब्बों मे क्या होगा। सरपंच को जैसे ही पता चला की टीम जीत गई है, उसने सबके लिए तौफे खरीद कर मंगवा लिए। “अरे जाओ, जाकर ले लो, तुम्हारे लिए ही है।” सरपंच की ये बात सुनकर सारे खिलाड़ी जब डब्बों के पास गए तो एक एक डब्बे पर एक एक खिलाड़ी का नाम लिखा हुआ है। सबने अपने अपने नाम के डब्बे उठाए और खोलकर देखने लगे।

जैसे ही रघु ने अपना डब्बा खोला तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गई। डब्बे मे दो जोड़ी कीट और एक जोड़ जर्सी थी। बाकी सभी खिलाड़ियों ने भी अपने अपने डब्बे खोलकर देखे तो उनके डब्बों मे भी दो दो जोड़ कीट और एक जोड़ जर्सी थी। ये देखकर तो खिलाड़ियों की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। सब ढोल की आवाज पर नाचने लगे।

 दिलीप ने अभी अपना डब्बा नही खोला था, वो अभी भी सरपंच जी के साथ खड़ा होकर अपने खिलाड़ियों की खुशी देख कर मुस्कुरा रहा था। अचानक से सभी खिलाड़ियों का ध्यान दिलीप की तरफ गया। वो सब भागते हुए दिलीप के पास गए और उसको नाचने के लिए अपने साथ ले जाने लगे। दिलीप भी उनके साथ ढोल वाले के पास गया और सब नाचने लगे। कुछ देर तक वो सब नाचते रहे और फिर थक कर बैठ गए। 

जैसे ही वो सब एक जगह बैठे, सरपंच उनके पास आए और मुस्कुराते हुए बोले– “बेटा आज तुम लोगों ने बहुत मेहनत की है, और हमारे गांव का नाम भी रोशन किया है, आज तुम सब आराम करो, कल तुम्हारे जितने की खुशी मे तुम लोगो के लिए और पूरे गांव वालो के लिए दावत रखा गया है।” सरपंच की ये बात सुनकर सब मुस्कुराते हुए एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। 

थोड़ी देर तक वो सब वहीं मैदान मे बैठे रहे, फिर अपने अपने घर चले गए। जैसे ही रघु घर पहुंचा, उसने देखा की उसके मम्मी पापा और शिल्पा और उसके मम्मी पापा आंगन मे बैठे हुए थे। जैसे ही उन्होंने रघु को आता देखा तो वो सब उसको देख कर मुस्कुराने लगे। “देखो चाचाजी, आ गया आपका फुटबॉलर बेटा।” शिल्पा ने मुस्कुराते हुए कहा। 

इतने मे शांतिने रघु की तरफ देखते हुए कहा– “रघु , घर मे जाकर देख, तेरे लिए तोहफे रखे हुए हैं।” जैसे ही रघु ने अपनी मां से ये सुना, उसने घर के अंदर जाकर देखा तो वहां दो मुर्गे बंधे हुए थे। मुर्गों को देखकर रघु समझ गया था की आज खाने मे क्या बनने वाला है।

वो बाहर आया और मुस्कुराते हुए अपनी मां से पूछा– “मां आज खाने मे चिकन बनने वाला है?” 

रघु की ये बात सुनकर शांति ने मुस्कुराते हुए कहा– “हां बेटा, आज तेरे पापा और तेरे शेखर चाचा खास तेरे लिए मुर्गे लाए हैं। तू एक काम कर, मुंह हाथ धो ले और मंगल के वहां चला जा। उनसे कहना, आज उन सबका खाने अपने घर पर है।” 

इतने में शिल्पा बीच मे आते हुए कहती है – “चाची ये मुर्गा खाकर मुर्गे जैसा हो गया है।” ये कहकर शिल्पा हंसने लगी।

 “अरे ये भी ना, रघु की खिंचाई करने का एक भी मौका नहीं छोड़ती।” जानकी ये कहते हुए सबकी तरफ देखते हुए मुस्कुराने लगी। बाकी सब भी उसके साथ मिलकर मुस्कुराने लगे। उन सबको मुस्कुराता देख रघु भी मुस्कुराने लगा। फिर रघु ने मुंह हाथ धोया और मंगल के घर चला गया।

रघु ने मंगल के घर पर जाकर देखा तो, मंगल आंगन मे अपनी कीट लेकर बैठा हुआ था। “अबे मंगल क्या हुआ ! काका काकी ने घर मे घुसने नही दिया क्या?” रघु ने मंगल की खिंचाई करते हुए कहा और मुस्कुराने लगा।

 “अबे यार क्या बोल रहा है, मैं तो बस ऐसे ही बैठा हुआ था।” मंगल ने रघु से कहा। “अच्छा ये बता दिलीप भईया और काका काकी कहां हैं ? रघु ने मंगल से पूछा। 

“अरे भईया तो अपने दोस्तों के पास गए हैं, और मम्मी पापा खेत पर गए हैं, तू बता, तुझे उनसे क्या काम है ?” मंगल ने रघु से पूछा। 

“अरे आज सबका खाना मेरे घर पर है, मम्मी पापा ने सबको खाने पर बुलाया है, तू याद से काका काकी और दिलीप भईया को बोल देना।” रघु ने कहा और अपने घर वापस आ गया। 

Story to be continued.....
Next chapter will be coming soon.....