Brundha-Ek Rudali - 3 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | ब्रुन्धा--एक रुदाली--भाग(३)

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ब्रुन्धा--एक रुदाली--भाग(३)

ठाकुराइन पन्ना देवी के जाते ही ठाकुर साहब किशना से बोले....
"किशना! कसम खाकर कहता हूँ अगर मुझे अपनी दौलत जाने का डर ना होता ना तो मैं आज ही इस औरत का खून कर देता"
"छोड़िए ना ठाकुर साहब! जब आप जानते हैं कि उनकी आदत ही ऐसी है तो क्यों उनकी बातों को अपने दिल से लगाते हैं",किशना ठाकुर साहब से बोला...
"तू ठाकुराइन की ज्यादा तरफदारी मत किया कर,याद रख तू हमारा दिया खाता है",ठाकुर साहब गुस्से से बोले...
"जानता हूँ हुकुम! तभी तो आज तक आपकी देहरी छोड़कर कहीं और नहीं गया,गाँव के कित्ते लोग परदेश कमाने चले गए,कोई कलकत्ता चला गया तो कोई बम्बई,लेकिन मैं आज तक कहीं नहीं गया,क्योंकि मैं आपके नमक का फर्ज अदा कर रहा हूँ",किशना बोला...
"अच्छा! ये सब छोड़,पहले ये बता कि गोदावरी और तेरी छोरी तो ठीक हैं ना!",ठाकुर साहब ने पूछा...
"हाँ! दोनों ही ठीक हैं हुकुम!",किशना ने कहा...
"तो छोरी का नाम क्या सोचा है तूने",ठाकुर साहब ने पूछा...
"अभी तो कुछ ना सोचा हुकुम!",किशना बोला....
"ठीक है,जल्दी से अच्छा सा नाम सोचकर रख दे छोरी का",ठाकुर साहब बोले...
"जी! हुकुम!",किशना बोला...
"और सुन! रुपए पैसा माँगने में संकोच ना करना,जितना भी चाहिए तो मुनीम जी के पास जाकर ले ले", ठाकुर साहब बोले....
"जी! हुकुम!",किशना बोला....
"तो ठीक है अब जा! और जैसे ही लड़की का इन्तजाम हो जाएँ तो मुझे खबर करना",ठाकुर साहब बोले...
"जी! हुकुम!",
और ऐसा कहकर किशना हवेली से बाहर चला आया,तो ये थे ठाकुर नवरतन सिंह,इनके दादा परदादा भी जमींदार थे,इसलिए शान से रहना इनकी आदत में शुमार है,अपने बाप की इकलौती सन्तान थे ये, इसलिए इनके बाप ने बड़े अरमानों के साथ इन्हें विलायत पढ़ने भेजा,विलायत में भी इन्होंने पढ़ाई कम और अय्याशी ज्यादा की,इनके पिता ठाकुर रुपरतन सिंह का बड़ा अरमान था कि जब बेटा विलायत से पढ़ाई करके लौटेगा तो किसी सरकारी दफ्तर में बड़े औहदे पर होगा,लेकिन ऐसा हो ना सका क्योंकि नवरतन सिंह को सरकारी नौकरी करना गुलामी लगता था,इसलिए उन्होंने अपनी जमींदारी सम्भालने का फैसला किया...
और जब ये विलायत से लौटे तो इनके आने की खुशी में इनके पिता रुपरतन सिंह ने बहुत बड़ा जलसा किया,खास लखनऊ से मुजरा करने के लिए वहाँ की मशहूर तवायफ़ नूरनसाहिबा आईं,नूरन ने महफिल में ऐसा समा बाँधा की देखने वालों की आँखें चौंधिया गईं,अभी सबकुछ ठीक चल ही रहा था कि एक दिन ठाकुर रुपरतन सिंह ने अपनी पत्नी ठकुराइन विद्यावती को हवेली के एक बहुत पुराने नौकर जगीरा से बात करते हुए सुन लिया,ठाकुराइन विद्यावती नौकर जगीरा से कह रही थी कि.....
"जगीरा! आज तक मैंने ये राज अपने सीने में दफन कर रखा है कि नवरतन तुम्हारा बेटा है"
"मुझे मालूम है ठकुराइन! लेकिन इसमें आपकी भी तो मजबूरी थी,काश उस रात ठाकुर साहब आपकी बात मानकर रज्जोबाई के कोठे पर ना गए होते तो आप उनसे बदला लेने के लिए मेरे पास ना आतीं",जगीरा बोला....
तब ठाकुराइन विद्यावती जगीरा से बोलीं....
"तो मैं और क्या करती भला,मैं हर रात ठाकुर साहब का इन्तजार करते करते थक चुकी थी,वे हर रात किसी ना किसी तवायफ़ के कोठे पर मुजरा देखने चले जाते थे,लेकिन उस रात तो हद ही हो गई थी,मैं उनके सामने कितना रोई,कितना गिड़गिड़ाई कि आज रात आप मेरे साथ ठहर जाइए,लेकिन उन्होंने मेरी एक ना सुनी और बदले की आग में जलकर मैंने उस रात खुद को तबाह कर डाला,जिस यौवन,जिस सुन्दरता को मैंने इतने साल सम्भालकर रखा था,उस रात मैंने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप दिया,तुमने भी तो इनकार नहीं किया,तुम इनकार करते तो शायद मैं रुक जाती"
तब जगीरा ठाकुराइन विद्यावती से बोला.....
"आज मैं आपसे कुछ नहीं छुपाऊँगा ठकुराइन! जब आप पहली बार इस हवेली में आईं थीं और पालकी से उतर रहीं थीं तो मैंने आपके महावर लगे खूबसूरत पाँव देखें थे,तब से मेरे भीतर आपका सुन्दर मुखड़ा देखने की ललक जाग उठी थी,मैंने कई बार कोशिश की कि मैं आपका चेहरा देख पाऊँ लेकिन देख ना सका, फिर एक बार जब आप सर्दियों में छत पर अपने गीले बाल सुखा रहीं थीं और मैं आपके पास ठाकुर साहब का संदेशा लेकर आया था,तब मैंने आपको पहली बार देखा था और आपको देखते ही आपकी मनमोहनी मूरत मेरे हृदय में समा गई थी",
"मैं जानती थी कि तुम मुझे मन ही मन में चाहते हो,तभी तो उस रात मैं किसी और के नहीं तुम्हारे पास गई थी",ठाकुराइन विद्यावती जगीरा से बोली...
"ठाकुराइन! ये आपको कैंसे पता चला कि मैं आपको पसन्द करता हूँ",जगीरा ने ठाकुराइन विद्यावती से पूछा...
"हम स्त्रियों को पुरुष पहचानने की कला ईश्वर जन्म से ही देकर भेजता है,हम स्त्रियाँ किसी भी पुरुष की नजरें देखकर पहचान सकतीं हैं कि वो हमें किस नजर से देख रहा है",ठाकुराइन विद्यावती बोली....
"मुझे इस बात की खुशी है ठकुराइन कि हम दोनों के प्यार की निशानी यानि की हम दोनों का बेटा हमेशा हम दोनों के इस सम्बन्ध को जिन्दा रखेगा",जगीरा बोला....
जगीरा और ठकुराइन विद्यावती की बातें अभी पूरी भी नहीं हो पाई थीं कि ठाकुर रुपरतन सिंह दोनों के सामने आकर बोले....
"अच्छा! तो सालों से तुम दोनों के बीच ये खिचड़ी पक रही थी और मुझे इस बात की खबर ही नहीं थी",
"ठाकुर साहब ! आप गलत समझ रहे हैं",जगीरा गिड़गिड़ाया
"मैं अब तक गलत समझ रहा था,लेकिन आज मैं तुम दोनों को अच्छी तरह से समझ चुका हूँ,ये है मेरी बदचलन बीवी और तू है मेरा नमकहराम नौकर,दोनों मिलकर सालों से मेरी आँखों में धूल झोंक रहे थे लेकिन अब मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगा",ठाकुर रुपरतन गुस्से से तमतमाते हुए बोले....
"मुझे माँफ कर दीजिए ठाकुर साहब! मैं आपकी अपराधी हूँ,उस रात मैं बहक गई थी,आप मुझे छोड़कर रज्जोबाई के पास चले गए थे तो गुस्से में आकर मुझसे ये अपराध हो गया",ठाकुराइन विद्यावती ठाकुर साहब के चरणों में अपना माथा रखकर बोली...
"नहीं! तुम्हारी गलती माँफ करने लायक नहीं है,इसकी सजा तुम दोनों को जरूर मिलेगी",ठाकुर रुपरतन ने विद्यावती के सिर को ठोकर मारते हुए कहा...
"क्षमा कर दीजिए ना मालिक! गलती हो गई",जगीरा दोबारा गिड़गिड़ाते हुए बोला....
"तेरे जैसे नमकहराम नौकर के तो टुकड़े करवाकर मैं कुत्ते के सामने डलवाऊँगा,तूने मुझे समझ क्या रखा है,ये मत सोच की इतना बड़ा धोखा देकर तू बच जाऐगा",ठाकुर साहब गुस्से से बोले....
"मैं उस रात बहक गई थी ठाकुर साहब! मेरा इरादा आपको धोखा देने का हरगिज़ नहीं था",ठाकुराइन विद्यावती बोलीं....
"नहीं! तुझ जैसी कुलटा की अब मुझे कोई जरूरत नहीं है और ना ही तेरे नाजायज़ बेटे की मुझे जरूरत है,तू और तेरा बेटा दोनों ही अभी इसी वक्त इस हवेली से बाहर जाऐगें"
और ऐसा कहकर ठाकुर साहब ने विद्यावती के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया,थप्पड़ पड़ने से ठकुराइन विद्यावती अपना आपा खो बैठी और गुस्से से तिलमिला उठी,इसलिए उसने ठाकुर साहब को जोर का धक्का दे दिया,ठाकुर साहब सीढ़ियों के पास खड़े थे और वे सीढ़ियों से लुढ़कते हुए नीचे जाकर फर्श पर गिरकर बेहोश हो गए,ये देखकर विद्यावती और जगीरा बहुत डर गए.....

क्रमश...
सरोज वर्मा....