Pardafash - Part - 8 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | पर्दाफाश - भाग - 8

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

पर्दाफाश - भाग - 8

रात में रौनक ने जैसे ही वंदना को अपनी बाँहों में भरने की कोशिश की वंदना ने उसे अलग करके दुत्कारते हुए कहा, “तुम्हें कोई और काम नहीं है। कुछ और नहीं सूझता है क्या?”

“वंदना, यह कैसा अजीब प्रश्न है? तुम मेरी पत्नी हो, और ये क्षण प्यार करने के लिए ही तो हैं।”

“मैं तुम्हारी पत्नी हूँ … काश मुझसे ही तुम्हारी यह हसरत पूरी हो पाती?”

“क्या मतलब है तुम्हारा? तुम कहना क्या चाहती हो?”

रौनक तो सोच भी नहीं सकता था कि आहुति वाली बात की भनक भी वंदना को लग सकती है। वह तो बिल्कुल बेफिक्र था। तब उसे लगा कि कहीं वंदना ने उसे सरोज के साथ देख तो नहीं लिया?

जब वंदना ने कोई उत्तर नहीं दिया तब रौनक ने जोर से कहा, “वंदना तुम क्या बक रही हो?”

वंदना ने गुस्से में कहा, “रौनक चिल्लाओ मत माँ और आहुति उठ जाएंगे।”

अब तक दोनों की ही आवाज़ तेज हो चुकी थी। अपने कमरे में एक दूसरे से सलाह मशवरा करती आहुति और उसकी नानी पार्वती के कानों में भी झगड़े की आवाज़ आने लगी। वे दोनों घबरा कर उठीं और कमरे की ओर बढ़ीं।

उन्होंने वंदना की आवाज़ सुनी। वह कह रही थी, "अभी तो मैंने कुछ भी बात नहीं की है रौनक, अगर मैं बोलना शुरू कर दूँ तो तुम सुन नहीं पाओगे। वह तो अभी माँ यहाँ हैं, वरना..."

“वरना क्या वंदना बोलो? वरना क्या?”

वंदना ने कहा, "इस वक़्त मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी, मैं ड्राइंग रूम में सोने जा रही हूँ।"

ये शब्द सुनते ही आहुति और पार्वती तुरंत अपने कमरे में वापस चली गईं।

कमरे में पहुंचते ही आहुति ने कहा, "नानी, क्या हो गया होगा? वे दोनों आख़िर क्यों झगड़ रहे हैं? अभी तो मम्मी को इस बारे में कुछ भी पता नहीं है।"

वंदना अब बाहर आ चुकी थी। उसने सोचा कि चलो देख लूं कहीं माँ और आहुति जाग तो नहीं रहे हैं। उन्होंने उसके और रौनक के बीच की बातें तो नहीं सुन लीं।

तभी उसने आहुति के कमरे से आवाज़ सुनी। वह कह रही थी, "नानी, मैं तो घर छोड़कर चली जाती, मेरे कारण मम्मी का जीवन खराब नहीं होने देती।"

वंदना हैरान रह गई। यह क्या …? क्या आहुति ने माँ को बुलाया है?

तब तक फिर आहुति की आवाज़ आई, “नानी यदि मैं उस इंसान को किसी और स्त्री के साथ नहीं देख लेती तो मम्मा के लिए बेफिक्र रहती कि मेरी मम्मा खुश हैं। लेकिन जब मैंने रौनक को दूसरी महिला के साथ देखा …एक बार नहीं नानी कई बार देखा, तब मैंने घर छोड़कर जाने का इरादा ही त्याग दिया। अपनी माँ को किसके सहारे छोड़कर चली जाऊँ? वह तो मम्मा को कभी भी छोड़ सकता है।”

“आहुति, तुम बहुत समझदार हो, बेटा। पर वह पत्र तुमने कहाँ रखा है? कहीं वह वंदना के हाथ न लग जाए। हम उसे कैसे बताएं, यह सोचकर ही जीभ लड़खड़ाने लगती है।”

वंदना की आंखों से आंसू बह रहे थे, उस विश्वास के लिए जो उसने रौनक पर किया था। उस प्यार के लिए जो उसने रौनक से किया था। उन पलों के लिए जब-जब उसने अपनी फूल-सी कोमल नाज़ुक बच्ची को रौनक की गोदी में दिया था, यह सोचकर कि वह उसका पिता है और उसकी बाँहों में आहुति सबसे ज़्यादा सुरक्षित है। यह आंसू उस पल को याद करके भी गिर रहे थे जब उसने रौनक से विवाह करने का निर्णय लिया था।

आहुति ने कहा, "नानी, अब जब आप आ गई हैं, तो मैं मम्मी को सब कुछ बता दूंगी और मेरी जीभ नहीं लड़खड़ाएगी। मैं समझ गई हूं कि हमारी चुप्पी ही इन लोगों को इतनी हिम्मत देती है कि वे बेफिक्र होकर रहते हैं। नानी आप जानती हो ना कि मैंने घर से बाहर रहकर ख़ुद को रौनक की बुरी नज़र और उसके बुरे इरादों से बचाया है। नानी कितनी ही बार मैं लाइब्रेरी में अकेली होती थी कभी-कभी कोई भी सहेली साथ में नहीं होती थी। कभी-कभी मैं स्कूल के पास के बगीचे में घूम कर समय व्यतीत करती थी ताकि मम्मा के घर आने का समय हो जाए। नानी मैं उससे बहुत डरती हूँ।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः