Pardafash – Part – 4 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | पर्दाफाश - भाग - 4

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पर्दाफाश - भाग - 4

आहुति ने अब रौनक पर निगरानी रखना शुरू कर दिया। वह अक्सर उसी महिला के साथ दिखाई देता। यह सब देखकर आहुति ने कमर कस ली कि अब वह कहीं नहीं जाएगी। वह यहीं रहकर अपनी रक्षा भी कर लेगी और अपनी मम्मा का जीवन भी सही कर लेगी। वह सोच रही थी कि वह यदि बड़ी होकर हिम्मत ला सकती है तो अभी क्यों नहीं? वह अभी क्यों उस इंसान का हाथ पकड़ कर उसे यह नहीं कह सकती कि सोचना भी मत वरना मम्मा को सब बता दूंगी। वह क्यों उस स्पर्श से डरती है? वह क्यों उसके चेहरे पर तमाचा लगाकर उसको जवाब नहीं दे सकती? गाल पर लगे इस तमाचे का स्पर्श उसे नानी याद दिला देगा। लेकिन अगर डर कर चुप रही तो ... नहीं-नहीं वह ऐसा नहीं होने देगी।

इसके बाद आहुति ने अपने स्कूल से आने का समय ही बदल दिया। उसके पापा रौनक ऑफिस से पाँच बजे और उसकी मम्मा 6: 30 बजे आती थीं। आहुति स्कूल से पांच बजे घर आ जाती थी। वह डेढ़ घंटा उसके लिए बहुत ही घातक और डरावना होता था। इसलिए उसने अब लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई करना शुरू कर दिया। वह तब घर आती थी जब उसकी मम्मी भी घर पर वापस आ जाएँ। यह बात रौनक को बिल्कुल पसंद नहीं आई और उसे लगा कि आहुति अब इतनी देर से क्यों घर आने लगी है। हर दिन वह मन मसोस कर रह जाता।

अब तो आहुति धीरे-धीरे निडर रहने लगी थी। उसने सोच रखा था कि यदि इस बार रौनक का हाथ उसकी तरफ़ आया तो उस स्पर्श का वह करारा जवाब देगी। क्योंकि ऐसे लोगों के मन में भी तो इस बात का डर समाया रहता है कि कहीं किसी को पता ना चल जाए कि उनका चरित्र ऐसा है। वे अक्सर बच्चों के डर और चुप्पी का ही फायदा उठाते हैं। वे जानते हैं कि बच्चा डरकर यह बात किसी को भी नहीं बताएगा। लेकिन आहुति ने यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह ऐसा फायदा रौनक को नहीं उठाने देगी। अब तो उसे अपनी मम्मा के लिए भी ऐसा लगता था कि उनका ऐसे इंसान के साथ रहने का क्या फायदा जो पीठ में छुरा घोंपता हो। वह सोच रही थी कि जब मम्मा को यह सब पता चलेगा तो उन्हें कितना दुःख होगा। अब चाहे जो भी हो उसे मम्मी को सब बताना ही होगा।

आहुति में आज एक अलग ही जोश दिखाई दे रहा था। उसका डर धीरे-धीरे हिम्मत में बदल रहा था। वह सोच रही थी कि रौनक जानता है कि वह मम्मी को कुछ नहीं बताएगी, हमेशा ही डरती रहेगी और पूरी ज़िन्दगी उसका यह घृणास्पद रूप किसी के सामने नहीं आएगा, वह छुपा ही रहेगा। सब उसे बहुत अच्छा समझते रहेंगे। लेकिन ऐसा होगा नहीं उसका असली चेहरा वह मम्मा को ज़रूर बताएगी क्योंकि वह बहुत बुरा इंसान है।

अब आहुति को अपनी नानी का इंतज़ार था। वह सोच रही थी जब नानी आ जाएंगी तभी वह यह सब मम्मी को बताएगी।

उसने एक दिन फिर से अपनी नानी को फ़ोन किया और पूछा, "नानी, आप कब आओगी?"

"बस बेटा, तुम्हारे नाना की तबीयत थोड़ी ख़राब थी, इसलिए मैं अब तक नहीं आ सकी। पर अब वह पूरी तरह से ठीक हैं और मैं जल्द ही आ रही हूँ। तब तक तुम अपना ख़्याल रखना।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः