Laga Chunari me Daag - 24 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(२४)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(२४)

फिर खाना खाते हुए धनुष बोला....
"खाना तो बहुत अच्छा बना है,खासकर ये कढ़ी पकौड़ी,वैसे किसने बनाया खाना",
"मैं ने ही बनाया है",प्रत्यन्चा बोली...
"मैंने तुम्हारे साथ इतना बुरा बर्ताव किया और तुम तब भी मुझे खाना खिलाने आ गई",धनुष ने पूछा...
"हाँ! दादाजी के कहने पर आना पड़ा,नहीं तो मैं तो आपके लिए कभी खाना ना लाती",प्रत्यन्चा बोली...
"वैसे तुम्हारा घर कहाँ है?",धनुष ने खाना खाते हुए पूछा...
"मेरा कोई घर नहीं है,मैं इस दुनिया में बिलकुल अकेली हूँ",प्रत्यन्चा बोली...
"मतलब! अनाथ हो",धनुष बोला...
"हाँ! ऐसा ही कुछ समझ लीजिए",प्रत्यन्चा बोली...
"तब तो बड़ी मुश्किल जिन्दगी है तुम्हारी",धनुष बोला...
"और आपके पास आपके दादाजी और पिताजी है तब भी आपको अपनी जिन्दगी इतनी मुश्किल लगती है", प्रत्यन्चा बोली...
"ऐ...लड़की! मैं तुमसे ठीक से बात कर रहा हूँ तो इसका मतलब ये नहीं है कि तुम मेरे निजी मामलों में दखल दो",धनुष बोला...
"ठीक है अब से कुछ ना पूछूँगी,लेकिन वो तस्वीर किसकी है,जो बिस्तर पर पड़ी है",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"वो....वो मेरी माँ की तस्वीर है",धनुष बोला...
"क्या मैं उनकी तस्वीर देख सकती हूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,उठा लो",धनुष बोला...
फिर प्रत्यन्चा धनुष की माँ की तस्वीर अपने हाथों में उठाकर बोली....
"ये तो बहुत ही सुन्दर हैं,आप बिलकुल अपनी माँ पर गए हैं",प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! मैं सुन्दर हूँ तभी तो मुझ पर इतनी लड़कियाँ मरतीं हैं",धनुष बोला...
"ये आपकी गलतफहमी है,लड़कियाँ आपकी सुन्दरता पर नहीं आपकी दौलत पर मरतीं हैं,जिस दिन आपकी ये दौलत आपके पास नहीं रहेगी तो वे आपको पूछेगीं भी नहीं",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम्हें ऐसा नहीं लग रहा कि अब तुम अपनी हद पार कर रही हो,तुम्हारा लाया हुआ खाना क्या खा लिया मैंने,तो तुम तो अब मेरी माँ बनने की कोशिश कर रही हो,जिस तरह से तुम मुझ से बात कर ही हो ना तो इस तरह से घर का कोई भी नौकर मुझसे बात नहीं करता,",धनुष गुस्से से बोला....
"मुझे भी आपसे बात करने का कोई शौक नहीं है, दादाजी ने खाना खिला आने को कहा था,इसलिए आ गई , नहीं तो मैं खुद यहाँ नहीं आना चाहती थी",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"लो! हो गया खाना खत्म,अब ले जाओ थाली,यहाँ खड़े होकर ज्यादा बकवास करने की जरूरत नहीं है" धनुष सिंक में जाकर हाथ धोते हुए बोला...
"मतलब भलाई का तो जैसे जमाना ही नहीं है,भूखे को भोजन खिलाओ तो बदले में गालियाँ मिलतीं हैं" प्रत्यन्चा थाली उठाते हुए बोली....
"ऐ...लड़की कहा ना कि जा यहाँ से,अब क्या यहाँ खड़े खड़े बकवास कर रही है,",धनुष गुस्से से बोला...
"सच्चाई सबको कड़वी लगती है"
ऐसा कहकर प्रत्यन्चा वहाँ से जाने लगी तो धनुष उसके पास जाकर बोला...
"क्या बोली तू! जरा फिर से बोल"
"सच बहुत कड़वा होता है धनुष बाबू! आप सुन नहीं पाऐगें",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"ऐ...सुन ये अपनी अकड़ अपने पास रख,मुझे मत दिखा,समझी तू!",धनुष भी गुस्से से बोला...
"अकड़...... मुझे नहीं....अकड़ आपको है और मेरी बात भी कान खोलकर सुन लीजिए,आप अपने दादा जी और पिताजी के बिना कुछ भी नहीं हैं,दो कौड़ी की औकात भी नहीं है आपकी,ये जो आप खोखली अकड़ लेकर सब पर रौब जमाते फिरते हैं ना !तो जिस दिन सड़क पर धूप में पसीना बहाकर दो रोटी कमानी पड़ेगी ना तो उस दिन आपकी सारी अकड़ निकल जाऐगी",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली....
"ऐ...क्या बोली तू! जरा फिर से बोल!",धनुष ने गुस्से से प्रत्यन्चा का रास्ता रोकते हुए कहा....
"छोड़ दीजिए मेरा रास्ता,मेरा आपसे और बहस करने का मन नहीं है",प्रत्यन्चा बोली....
"नहीं! छोड़ता तेरा रास्ता,बोल क्या कर लेगी?",धनुष बोला....
फिर प्रत्यन्चा धनुष को जोर का धक्का देकर,थाली लेकर आगे बढ़ गई और जाते जाते ये बोल गई...
"ये कर सकती हूँ मैं,अब समझ आया आपको"
फिर धनुष कुछ ना कर सका और वो वहाँ से चली भी गई,फिर वो मन ही मन बुदबुदाया....
"इस लड़की का भी कुछ समझ नहीं आता,पहले खाना खिलाती है,फिर बातें सुनाती हैं,आखिर चाहती क्या है ये"?
इसके बाद वो अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया और उधर जब प्रत्यन्चा हाँल में पहुँची तो भागीरथ जी डाइनिंग टेबल पर बैठे उसका इन्तजार कर रहे थे,जब उन्होंने प्रत्यन्चा को देखा तो उससे पूछा....
"रसोईघर में खाना बनाकर कहाँ चली गई थी बिटिया? विलसिया तुम्हें कब से खोज रही है?"
"आपके राक्षस पोते को खाना खिलाने गई थी",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"ये भी खूब कही तुमने.... खूब पहचाना उसे,वो राक्षस ही तो है", भागीरथ जी हँसते हुए बोले....
"राक्षस नहीं....महाराक्षस! इतना अकड़ू इन्सान मैंने आज तक नहीं देखा दादा जी!",प्रत्यन्चा बोली...
"तो फिर खाया उसने खाना या बिना खाना खाए ही थाली वापस भेज दी",भागीरथ जी ने पूछा...
"सब ठूँस लिया,रात से भूखा इन्सान खाता ना तो क्या करता",प्रत्यन्चा बोली....
"मतलब! तू ने उसे खाना खिला कर ही दम लिया",भागीरथी जी बोले....
"वो रात को आप से बहस करके भूखे चले गए थे और सुबह चाचाजी के थप्पड़ ने उनकी शराब उतार दी और वे यहाँ से बिना खाएँ ही चले गए,तो फिर कोई तो होना चाहिए ना उन्हें खाना खिलाने वाला,इसलिए मैं खिला आई,हम सब खाएँ और घर का एक सदस्य भूखा बैठा रहे तो ये अच्छा नहीं लगता ना!",प्रत्यन्चा बोली....
"तू बड़ी समझदार है बिटिया! हमें तुमसे ऐसी ही उम्मीद थी",भागीरथ जी बोले...
"चलिए! तो फिर आप लोग भी खाना खा लीजिए,चाचाजी कहाँ है उन्हें भी बुला लीजिए,आप लोग खाना खाएँ तो मैं भी खाऊँ,सुबह से भूखी हूँ,अब तो चूहे भी कूदने लगे मेरे पेट में",प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! मैंने सनातन को भेजा है, तेजपाल को बुला लाने के लिए",भागीरथ जी बोले...
इसके बाद तेजपाल जी नीचे हाँल में आएँ और उन्होंने भागीरथ जी के साथ बैठकर दोपहर का खाना खाया,खाना उन्हें बहुत पसंद आया,खासकर कढ़ी पकौड़ी,खाना खाने के बाद जब वो अपने कमरे में जाने लगे तो वे प्रत्यन्चा से बोले...
"उस नालायक को भी खाने के लिए बुलवा लो"
"मैं उन्हें थोड़ी देर पहले खाना खिलाकर ही आ रही हूँ चाचाजी!",प्रत्यन्चा बोली....
प्रत्यन्चा की बात सुनकर तेजपाल जी के माथे की सिकन मिट गई थी और वो मन ही मन मुस्कुराते हुए अपने कमरे की ओर चले गए,अपने बेटे की खुशी देखकर भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले...
"बेटी! ये ऐसा ही है,कभी भी अपने मुँह से किसी की तारीफ नहीं करता,इसकी बातों को दिल से ना लगाया कर",
"जाने दीजिए ना दादाजी! मैं तो भूख से मरी जा रही हूँ,पहले खाना खाऊँगी उसके बाद ही किसी की बात सुनूँगी"
फिर ऐसा कहकर प्रत्यन्चा रसोईघर की ओर खाना लेने चली गई और उसकी ये हरकत देखकर भागीरथ जी ठहाका मारकर हँस पड़े....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...