Laga Chunari me Daag - 23 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(२३)

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

लागा चुनरी में दाग़--भाग(२३)

इसके बाद प्रत्यन्चा रसोईघर में नाश्ता बनाने चली गई,आज उसने आलू की तरी वाली सब्जी और पूरियाँ बनाई,साथ में थोड़ा सा हलवा भी बना लिया,जब नाश्ता तैयार हो गया तो उसने विलसिया काकी से भागीरथ जी और तेजपाल जी को बुला लाने के लिए कहा,वे दोनों जब तक डाइनिंग टेबल पर पहुँचे तब तक प्रत्यन्चा ने डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा दिया और फिर उन दोनों के आने पर वो उन दोनों की प्लेट में नाश्ता परोसने लगी.....
दोनों नाश्ता करने लगे तो तेजपाल जी बोले....
"आज तो बढ़िया नाश्ता बना है,तरी वाली आलू की सब्जी के साथ पूरी खाने का अलग ही मजा है,उस पर ये गरमागरम हलवा....वाह....मज़ा ही आ गया आज तो"
"हाँ! आज प्रत्यन्चा ने बहुत बढ़िया नाश्ता बनाया है",भागीरथ जी बोले...
"क्या ये नाश्ता इस लड़की ने बनाया है?",तेजपाल जी ने पूछा...
"हाँ! और ये लड़की...लड़की क्या लगा रखा है,इसका नाम प्रत्यन्चा है और इसे तू प्रत्यन्चा ही कहा कर समझा!",भागीरथ जी बोले....
"हाँ...हाँ...ठीक ही है,नाश्ता उतना भी कोई ख़ास नहीं है",
और ऐसा कहकर तेजपाल जी नाश्ता करने लगे तो भागीरथ जी तेजपाल की बात सुनकर मंद मंद मुस्कुराने लगे,उन्हें पता था कि तेजपाल को नाश्ता तो अच्छा लग रहा है लेकिन वो खुले मन से प्रत्यन्चा की तारीफ़ नहीं कर पा रहा है,दोनों अभी नाश्ता कर ही रहे थे कि तभी वहाँ एक धमाका हुआ क्योंकि वहाँ पर शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए धनुष हाजिर हो चुका था और वो भागीरथ जी से बोला....
"पापा तो मेरे दुश्मन पहले से ही हैं लेकिन इस लड़की के आने से आप भी मेरे दुश्मन हो गए,मैंने आपसे कहा था ना कि मैं अब यहीं पर तीनों टाइम खाना खाने आऊँगा,लेकिन शायद आपको मेरी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ा,तभी तो आपने मुझे नाश्ते के लिए नहीं बुलाया और यहाँ दोनो जन बैठकर मज़े से नाश्ता कर रहे हैं"
"ये क्या बतमीजी है धनुष! कोई अपने दादा जी से ऐसे बात करता है",तेजपाल जी बोले...
तभी धनुष हँसते हुए बोला....
"ओहो....बतमीजी....हाँ भई !मैं बतमीज जो ठहरा तो बतमीजी ही करूँगा",
फिर भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से कहा...
"प्रत्यन्चा! इस नालायक को नींबू पानी बनाकर दो,कोई शरम लिहाज़ नहीं है इसे,सुबह से पीकर ऊधम मचा रहा है"
"अच्छा...अच्छा तो मैं ऊधम मचा रहा हूँ,दोनों जन साथ बैठ कर नाश्ता कर रहे हैं और मुझे पूछा तक नहीं,अरे! किसी नौकर को भेजकर ही बुलवा लिया होता मुझे तो मैं आ जाता,लेकिन नहीं ! आप लोगों को तो हरदम ये जाताना होता है कि जैसे मैं इस घर का कुछ लगता ही नहीं हूँ",धनुष बोला...
"बहुत हो गया तेरा नाटक! अब आ हम लोगों के साथ बैठकर नाश्ता कर ले",तेजपाल जी बोले....
"मुझे आपलोगों ने समझ क्या रखा है,सामने आ गया तो आ बैठकर नाश्ता कर ले,यहाँ ना आता तो आप लोग तो मुझे पूछते ही ना!",धनुष बोला....
"प्रत्यन्चा! सुना नहीं क्या तुमने,नींबू पानी दो इसे,नहीं तो ये यूँ ही बड़बड़ाता रहेगा",तेजपाल जी बोले...
फिर प्रत्यन्चा जल्दी से नींबू पानी बनाकर ले आई और उसने जल्दी से नींबू पानी का गिलास धनुष के हाथ में थमा दिया,लेकिन धनुष तो उस समय गुस्से में था,इसलिए उसने वो नींबू पानी का गिलास फर्श पर फेंक दिया,फर्श पर गिरते ही काँच का गिलास चकनाचूर हो गया और धनुष प्रत्यन्चा से बोला....
"तू जब से यहाँ आई है,तब से ऐसा हो रहा है,तूने मुझसे मेरे दादाजी को भी छीन लिया,माँ मुझे छोड़कर चली गई,फिर दादी भी चली गई,पापा को तो मेरी परवाह ही नहीं है और रहे दादाजी तो तूने उन्हें भी मुझसे पराया कर दिया,क्यों आई तू इस घर में"
अब तेजपाल जी के सबर का बाँध टूट चुका था और वे अपनी कुर्सी से उठे और धनुष के गाल पर एक झापड़ रसीदते हुए बोले....
"चुप कर नालायक! खुद को तमीज नहीं है बात करने की और तू चाहता है कि लोग तुझे चाहे,तुझे प्यार करें,पहले अपनी आदतें तो बदल ले,हुलिया देखा है अपना....शराबी कहीं का,अब तूने अपनी जुबान बंद नहीं की तो मुझसे बुरा कोई ना होगा,जा चुपचाप चला जा अपने आउटहाउस में,नहीं मिलेगा तुझे मुफ्त का खाना,पहले मेहनत कर फिर खाने की उम्मीद करना,अब खड़ा क्या है जा! यहाँ से"
अब अपने पिता की कड़वी बातें सुनकर धनुष वहाँ एक पल के लिए भी ना ठहर सका और फौरन ही आउट चला आया,फिर वो बिस्तर पर आकर फफक फफककर रोने लगा और अपनी माँ की फोटो जो उसने अपने सिरहाने रख रखी दी उससे बोला....
"माँ! तुम क्यों चली गईं मुझे छोड़कर,देखो तो पापा मुझसे कैसा बर्ताव करते हैं,कोई मुझसे प्यार नहीं करता, कोई परवाह नहीं करता कि मुझे भी भूख लगी होगी,तुम यहाँ होती तो क्या तुम मुझे भूखा रहने देती"
और फिर वो अपनी माँ की तस्वीर को सीने से लगाकर रोता रहा और उधर भागीरथ जी को तेजपाल का धनुष के प्रति ऐसा रवैया पसंद नहीं आया और वो उनसे बोले...
"तेजपाल! तुझे उस पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था"
"देखा ना आपने वो क्या क्या बक रहा था",तेजपाल जी बोले....
"कुछ भी हो लेकिन हाथ नहीं उठाना चाहिए था तुझे उस पर,जवान लड़का है ,कहीं तैश में आकर कुछ उल्टा सीधा कर ले तो फिर क्या करेगा तू!",भागीरथ जी बोले...
"वो दिन रात नशे में धुत रहता है,वो दिखाई नहीं देता आपको,मैंने उस पर जरा सा हाथ क्या उठा दिया, इतनी तकलीफ़ हो गई आपको,सच तो ये है कि आपने ही बिगाड़ रखा है उसे"
और ऐसा कहकर तेजपाल जी नाश्ता अधूरा छोड़कर डाइनिंग टेबल पर से उठ गए,जब तेजपाल जी उठ गए तो फिर भागीरथ जी भी कहाँ खाने वाले थे और वे भी नाश्ता अधूरा छोड़कर डाइनिंग टेबल पर से उठ गए,घर का माहौल एक पल में ही बिगड़ गया,जब मालिकों ने नहीं खाया तो फिर विलसिया कैंसे खाती और जब विलसिया ने नहीं खाया तो फिर प्रत्यन्चा भी भूखी ही अपने कमरें में आकर धनुष के बारें में सोचने लगी और ये भी सोचने लगी कि वो कैंसे इस घर का माहौल बदल सकती है....
तभी उसे एक उपाय सूझा और फिर कुछ देर के बाद वो अपने कमरे से नीचे आकर रसोईघर में आई और दोपहर के खाने की तैयारी करने लगी,भूख तो उसे भी लगी थी,इसलिए उसने मूली गाजर खाकर अपना पेट भर लिया और फिर से काम पर लग गई,उसने बड़े मन से दोपहर का खाना तैयार किया और सबसे पहली थाली परोसकर वो आउटहाउस चली गई,आउटहाउस का दरवाजा खुला था इसलिए वो बिना झिझक के भीतर घुस गई और उसने देखा कि धनुष किसी की तस्वीर को अपने सीने से लगाए लेटा कुछ सोच रहा था,प्रत्यन्चा उसके पास जाकर बोली....
"मैं आपके लिए खाना लाई हूँ,खा लीजिए"
उसे देखकर धनुष चिढ़ गया और उससे गुस्से में बोला....
"तुम...और यहाँ...तुमसे किसने यहाँ खाना लाने के लिए कहा"
"दादा जी बोले कि बेचारा लड़का भूखा होगा तो खाना दे आओ उसे,हमसे तो गुस्सा होगा वो इसलिए हम नहीं जाऐगें उसके पास, हमारी तरफ से उससे माँफी भी माँग लेना"प्रत्यन्चा बोली...
"ऐसा कहा दादा जी ने",धनुष ने पूछा....
"हाँ! ऐसा ही कहा उन्होंने,आप को झूठ लग रहा हो तो सनातन और पुरातन को बुलवाऊँ,उनके सामने ही कहा था दादाजी ने"प्रत्यन्चा बोली...
"नहीं! उन दोनों को बुलाने की कोई जरूरत नहीं है,मुझे मालूम है कि दादाजी मुझसे प्यार करते हैं",धनुष बोला...
"बहुत दुखी थे दादाजी बोले कि उसे खाना खिलाकर ही वापस आना,बिन माँ का बच्चा बेचारा,उसका बाप उस पर बहुत जुलुम करता है",प्रत्यन्चा झूठ बोलते हुए बोली....
"ऐसा कहा उन्होंने",धनुष ने पूछा....
"हाँ! अब खाना खा लीजिए तो मैं बरतन अपने साथ में ही ले जाऊँगी",प्रत्यन्चा बोली...
"ठीक है!"
और फिर धनुष बिना हाथ धुले ही खाना खाने में जुट गया क्योंकि उसे बहुत जोरो की भूख जो लगी थी....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....