A Perfect Murder - 4 in Hindi Crime Stories by astha singhal books and stories PDF | ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 4

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ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 4

अमोल का घर बहुत ही खूबसूरत ढंग से सज़ा हुआ था। फर्नीचर भले ही नया नहीं था पर उसपर बिछे खूबसूरत कवर, तकिए, दीवान पर बिछी खूबसूरत चादर, उस जगह की खूबसूरती को बढ़ा रही थी। शो केस में वेस्ट मैटीरियल से बनी बहुत सी चीज़ें रखीं थीं। सीपियों और शीशों से हर दरवाज़े पर तोरन बनाकर लटका रखी थी।


"अमोल….घर बहुत खूबसूरत सजाया है नीलम ने।" कविता ने तारीफ करते हुए कहा।


"जी, उसे बहुत शौक है इन सब चीज़ों का।" अमोल बोला।


"अमोल, तुम दोपहर को घर आए तब तुमने क्या किया? और किसने बताया तुम्हें नीलम के ना आने के बारे में।" इंस्पेक्टर राठोर ने पूछा।


"दरअसल, हमारी पड़ोसन मोनिका और उसके पति शरद के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं। हमारे बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं। तो इसलिए घर में आना-जाना लगा रहता है। नीलम और मोनिका दोनों एक साथ बच्चों को स्कूल से लेने जाती हैं। उस दिन घर पर ताला देख मोनिका खुद ही चली गई बच्चों को लेने। जब नीलम, और एक घंटे तक नहीं आई तो उसने मुझे फोन करके बुलाया।" अमोल ने सारी जानकारी देते हुए कहा।


"अमोल हम मिल सकते हैं मोनिका और उनके पति शरद से?" इंस्पेक्टर राठोर ने कहा तो अमोल ने तुरंत अपने बेटे को उन दोनों को बुलवाने के लिए भेज दिया।


घर में बहुत सी तस्वीर लगी थीं। कविता उन तस्वीरों को बहुत गौर से देख रही थी। नीलम सच में बहुत ही खूबसूरत महिला थी। हर तस्वीर में उसका चेहरा अलग से हाईलाइट हो रहा था। उसकी खूबसूरत आंँखों के सामने और सब कुछ नगण्य दिख रहा था। सभी तस्वीरों से ऐसा ज़ाहिर हो रहा था कि वो बहुत ही ज़िंदादिल इंसान है।

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। मोनिका और शरद आ गये। उनके बच्चे भी साथ थे।


मोनिका एक सामान्य कद-काठी की महिला थी। सांवला रंग, तीखे नैन नक्श, लम्बे बाल, वज़न कद के हिसाब से थोड़ा ज़्यादा था। उसका पति शरद, ऊंची कद काठी, सुगठित शरीर और साफ रंग का हैंडसम दिखने वाला व्यक्ति था। उसे देख ऐसा लग रहा था कि वह ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था।


“विक्रम ये हैं हमारे पड़ोसी, शरद चौहान और ये उनकी पत्नी मोनिका। और शरद, ये मेरा दोस्त है विक्रम, ओह! सॉरी, इंस्पेक्टर विक्रम राठोर और ये उनकी पत्नी कविता। ये भी विक्रम के साथ काम करती हैं।”


मोनिका और शरद दोनों ने उन्हें हाथ जोड़ नमस्ते किया।


"यदि आप दोनों फ्री हों तो हम आपका कुछ समय लेना चाहेंगे। नीलम के गायब होने के सिलसिले में।" इंस्पेक्टर राठोर ने शरद पर सरसरी नज़र मारते हुए कहा।


"सर, आप पहले इंफॉर्म करते तो मैं आज की मीटिंग कैंसल कर देता। पर अब जाना बहुत जरूरी है। पर फिर भी…आपको जो पूछना है पूछ सकते हैं।" शरद ने अपनी मजबूरी प्रकट करते हुए कहा।


“शरद जी माफी चाहते हैं। अगली बार ध्यान रखेंगे। खैर, जिस दिन नीलम गायब हुई उस दिन आप घर कितने बजे लौटे?" इंस्पेक्टर राठोर ने शरद से पूछा।


"सर…इन लोगों ने मुझे शाम पांच बजे के बाद फोन किया था। तो मैं तुरंत ऑफिस से निकल गया था और साढ़े पांच तक…हाँ .. साढ़े पांच तक पहुंँच गया था।" शरद ने कहा।


"आपने अपने दोस्त की मदद कैसे करी?" इंस्पेक्टर राठोर ने पूछा।


"सर…ये क्या सवाल हुआ? मैं अमोल के साथ पूरी रात नीलम को ढूंढता रहा‌। उसके साथ नीलम की सभी सहेलियों के घर गया। पुलिस स्टेशन भी गया।" शरद ने‌ बताया तो अमोल भी बोला, "इसने मेरी बहुत मदद की है मेरी विक्रम। एक यही तो था जो सारी रात मेरे साथ था।”


"ठीक है मिस्टर शरद आप जा सकते हैं।" इंस्पेक्टर राठोर ने कहा।


"वैसे मोनिका जी, आप तो नीलम की सबसे अच्छी सहेली होंगी ना।" कविता ने मोनिका की तरफ रुख करते हुए पूछा।


"जी मैम, हम दोनों में सगी बहनों जैसा प्यार था। तभी तो हम एक-दूसरे के पति को जीजू कहकर बुलाते हैं। हम हर त्योहार साथ में मनाते हैं। घूमने भी साथ में ही जाते हैं।" मोनिका ने तुरंत उत्तर दिया।


"हम्मम शॉपिंग भी साथ में ही करते हैं! हैं ना!" कविता बोली।


"जी….हाँ, साथ में ही करते हैं।" मोनिका थोड़ा संकोचवश बोली।


"नहीं..वो इसलिए पूछा क्योंकि आपके कानों के झुमके और इस तस्वीर में नीलम के कानों के झुमके एक जैसे हैं।" कविता ने कहा तो मोनिका थोड़ा झेंप गई और मुस्कुराने का प्रयत्न करने लगी।


"अमोल, मुझे नीलम की सारी इनफार्मेशन लिखवा दो। उसके रिश्तेदारों के नम्बर, उसका नम्बर, दोस्तों के पते व नम्बर। वह कहांँ-कहाँ जाती थी सब कुछ। फिर हम अपनी तहकीकात शुरू करेंगे।" इंस्पेक्टर राठोर ने कहा।


"अ…विक्रम…क्या मैं बच्चों को कुछ दिनों के लिए उनकी नानी के यहां भेज दूँ। क्या है कि मैं दिन भर केस में उलझा रहूंँगा, ऑफिस भी है तो ऐसे में इन्हें देखना मुश्किल हो जाएगा।" अमोल ने कहा।


"अरे! जीजू, मैं हूँ ना। आपने तो हमें पराया कर दिया।" मोनिका झट से बोली। वैसे तो वह पढ़ी लिखी लग रही थी पर उसकी आवाज़ में गाँव की औरतों की बोली की खनक सुनाई पड़ रही थी।


"जानता हूँ मोनिका, पर यहांँ रहेंगे तो नीलम को याद करके रोते रहेंगे। इसलिए कह रहा हूँ। बाकी तुम ही तो नीलम के गायब होने के बाद से इन दोनों का ध्यान रख रही हो। पर मैं नहीं चाहता बच्चे बेवजह स्ट्रेस लें।” अमोल ने सफाई देते हुए कहा।


इंस्पेक्टर राठोर ने अमोल को इजाजत दे दी। शरद भी उनकी इजाज़त ले अपने ऑफिस के लिए निकल गया। पर मोनिका वहीं बैठी रही।


“मोनिका जी, नीलम का किसी से हाल फिलहाल में कोई झगड़ा वगैरह हुआ था क्या?” कविता ने पूछा।


“झगड़ा! सवाल ही नहीं उठता मैम। वो तो बहुत शांत स्वभाव की थी। सबके साथ बहुत मिल-जुलकर रहती थी।” मोनिका ने कहा।


“ठीक है मोनिका जी, अभी के लिए इतना ही बहुत है। आशा करते हैं आप इंवेस्टिगेशन में हमारा सहयोग करेंगी।” कविता उठते हुए बोली।


“बिल्कुल मैम, नीलम मेरी बहन समान थी। उसको ढूंढने में मैं पूरी मदद करुंगी।” मोनिका ने कहा।


इंस्पेक्टर राठोर और कविता वहाँ से चले गए।


“हम्मम…क्या लगता है तुम्हें?” इंस्पेक्टर राठोर ने कविता से पूछा।


“फिलहाल तो कुछ कह नहीं सकती। पर अभी भूख लग रही है। कहीं होटल में कुछ खा लें प्लीज़।” कविता ने मुस्कुराते हुए कहा।


इंस्पेक्टर राठोर ने मुस्कुराते हुए जीप एक होटल की तरफ मोड़ दी।


क्रमशः

©® आस्था सिंघल