Sathiya - 18 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 18

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साथिया - 18









अक्षत की कार सड़क पर दौड़ रही थी।

" नील अब हम यूनिवर्सिटी से निकलने वाले है अब ये लड़ाई झगड़े बन्द भी कर दे।" अक्षत बोला।

" मैं कब लड़ता हूँ वो अब खुद ही आकर उलझता है तो इतना कॉंट्रोल नही मुझ में कि बदतमीजी पर भी शांत रहूँ।" नील ने कहा।

" ये बेवजह के झगड़े कभी कभी न बेकार की प्रोबलम खड़ी कर देते है।" अक्षत ने नील को समझाया।

" अब मैं नही हूँ तेरे जैसा कि खुद को इतना कॉंट्रोल कर सकूँ। आ जाता है गुस्सा।" नील बोला।

" गुस्से को काबू जो कर पाए वही सही बन्दा है और आपका ये गुस्सा किसी दिन आपका नुक्सान कर देगा सीनियर सर इसलिए खुद को शांत रखना सीखिये। जैसे अक्षत ने कहा।" मनु ना चाहते हुए भी बोल गई।

" कोशिश करूँगा।" नील बोला।

" और प्लीज रिया से दूर रह।" अक्षत आगे बोला।

" कोशिश करूँगा पर विश्वास करो मेरा और रिया का ऐसा कुछ नही है । हम सिर्फ दोस्त है लवर्स नही।" नील बोला।

" पर रिया मैडम तो कहती है कि...?" बोलते बोलते मनु रुक गई।


"उसके कहने से क्या हो जाएगा! वह तो कहने लग जाए कि ताजमहल उसने बनवाया है तो क्या सब तुम लोग सच मान लोग? मैं कह रहा हूं विश्वास रखो मेरा, ऐसा हम दोनों के बीच में कुछ भी नहीं है सब रिया के दिमाग का फितूर है।" नील बोला।

"और हो भी तो हम लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। आपकी लाइफ है आप चाहे जो करो करो।" मनु ने बेरुखी से बोल दिया।


नील ने गहरी सांस ली और विंडो के बाहर देखने लगा।

"मुझे विश्वास है तुम पर नील पर बस मैं यह चाहता हूं कि तुम्हारी लाइफ में कोई प्रॉब्लम न हो । और तुम्हारी लाइफ की यही दो बड़ी प्रॉब्लम है। एक निखिल और दूसरी रिया। तुम हर समय निखिल से उलझ पड़ते हो और दूसरा तुमने रिया से दोस्ती कर रखी है। ना ही निखिल के जैसे दुश्मन ठीक रहते हैं और ना ही रिया जैसे दोस्त, यह दोनों ही तुम्हारे लिए आगे जाकर खतरनाक साबित हो सकते हैं। इसलिए जितना जल्दी हो सकता है इन लोगों से दूरी बना लो और अपनी लाइफ से अपने आउट करो । " अक्षत ने कहा।

नील ने कोई जवाब नहीं दिया बस वह विंडो से बाहर देखने लगा।

" ये मानसी मुझे गलत क्यों समझती है? क्यो इसको विश्वास नही मुझ बल पर? मेरे और रिया के बीच कुछ नही है फिर क्यो इसको ऐसा लगता है।" नील खुद से ही बोला।

" तुम करो न करो विश्वास तुम्हारी मर्जी मुझे कोई फर्क नही पड़ता।" नील ने मन में कहा पर क्या वाकई उसे फर्क नही पड़ता था।

"हर समय वो चिपकु छिपकली बनी तुमसे चिपकी रहती है और तुम हमेशा उसके साथ दिखतो हो फिर कैसे कोई मान ले कि कुछ नही तुम दोनों के बीच। और मुझे कोई फर्क नही तुम जिससे चाहो चिपको।" मनु खुद से बोली पर सच बात तो ये थी कि उसे फर्क पड़ता था।




उधर रिया अपने पूरे फ्रेंड सर्किल के साथ और नील की गैंग के साथ यूनिवर्सिटी के ग्राउंड में खड़ी नील के आने का इंतजार कर रही थी।

"यह नील कहां रह गया? मैंने कहा था कि मेरे साथ चल पर ना जाने क्या उसको हर समय सिर्फ अक्षत दिखता है और मुझे अक्षत बिल्कुल पसंद नही।" रिया खुद से बोली।

"कभी-कभी तो मुझे शक होने लगता है कि इस अक्षत के साथ-साथ उस जूनियर का भी नील से कुछ तो है? पता नहीं क्यों उस जूनियर को लेकर इतना परेशान रहता है। पता नही क्यो मानसी के लिए नील की फीलिंग्स को लेकर मुझे डर लगता है और इनसिक्योरिटी फील होती है। इतनी इनसिक्योरिटी क्यों फील होती है मुझे समझ नही आता।

हालांकि नील का ऐसा कुछ भी नहीं है। वह उसे लाइक नहीं करता इन फैक्ट वह तो मुझे तक प्यार नहीं करता, पर मैं भी रिया हूं जिस बात की जिद आ गई वह करके रहती हूँ फिर वो मुझे प्यार करे ना करे पर नील सिर्फ और सिर्फ मेरा होगा उस जूनियर का कभी भी नहीं। उसे मैं उससे दूर करके ही रहूंगी" रिया मन ही मन सोच रही थी कि तभी अक्षत की गाड़ी वहां आकर पार्किंग में रुकी।

रिया की नजर उस तरफ चली गई।

नील गाड़ी से बाहर आया और पीछे का दरवाजा खोलकर जैसे ही मनु बाहर निकली उसका बैलेंस बिगड़ गया।

इससे पहले कि वह गिरती नील ने उसे थाम लिया।

मनु का हाथ नील के कंधे पर था और नील का हाथ मनु की खुली कमर पर।

अक्षत गाड़ी लेकर आगे निकल गया था पार्क करने।

दोनों की नजरें एक पल को टकराई और अगले ही पल मनु संभल गई और सीधी खड़ी हो गई।।


"तुम ठीक हो?" नील ने कहा।

" थैंक यू...! मैं ठीक हूं।" मनु बोली और अपने दोस्तों की तरफ मुड़ गई तो वहीं खड़ी रिया ने उन दोनों को जलती आंखों से देखा।

उसके चेहरे पर अजीब से भाव आए और वह तुरंत पैर पटकती हुई नील की तरफ बढ़ गई।

"यह सब क्या चल रहा है?" रिया ने गुस्से से कहा।

नील ने आँखे छोटी करके उसकी तरफ देखा



" मुझे बेवकूफ समझने की या बनाने की कोशिश भी मत करना?" रिया बोली।

'और मैं भला तुम्हें बेवकूफ क्यों समझूंगा और क्यों बेवकूफ बनाऊंगा? तुम ये बेतुकी बातें हर समय लेकर क्यों बैठ जाती हो? " नील बोला।

" अभी मैंने देखा क्या किया तुमने? " रिया ने कहा तो नील की भौंहों में बल पड़ गए


'क्या ज़रूरत थी तुम्हें पहली बात अक्षत के साथ आने की। तुम्हारे पास खुद की कार या खुद की बाइक नहीं है और उसे दूसरी बात आए तो आये पर उस मानसी को साथ लाने की क्या जरूरत थी" रिया ने कहा।


"मानसी अक्षत के घर पर रहती है और अक्षत उसे हमेशा लेने और छोड़ने आता है ।" नील ने कहा।



" हां तो ठीक है तुम्हे उसको कमर पकड़कर थामने की क्या जरूरत थी? मुझे यह सब बातें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है। तुम सिर्फ मेरे हो और इसके अलावा तुम किसी की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देख सकते समझे तुम। " रिया ने गुस्से से कहा ।

"एक्सक्यूज मी..!" नील ने भी जोश मे कहा।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव