भाग 107
बच्चे बड़े ही लाड़ प्यार और सुख सुविधा के बीच बड़े होने लगे। बड़े ही प्यार से महेश ने बेटे का नाम पवन और बेटी का नाम पूर्वी रक्खा।
पैसे की कोई कमी थी नही थी इस लिए जवाहर जी ने अपनी नौकरी छोड़ दी। पटना उन दोनो का आना जाना लगा रहता था।
तभी किसी केस के सिलसिले में महेश का पुराना दोस्त विक्रम खुराना दिल्ली से आया। महेश ने उसे होटल की बजाय जिद्द कर के अपने घर में रोक लिया।
दो दिन रहा विक्रम। उसने दिल्ली की वकालत और वहां के माहौल के बारे में महेश को बताया। वहां के स्कूल वहां का वातावरण सब की बहुत जम कर तारीफ की। तथा साथ ही महेश को भी वहीं प्रैक्टिस करने के लिए राजी कर लिया।
महेश उसके साथ दिल्ली गया। फिर सारा इंतजाम कर के वापस आया और बच्चों और पुरवा को भी दिल्ली ले कर चला आया।
एक बार फिर नई जगह, नए लोगों से सामना हुआ पुरवा का। ये तो देश की राजधानी ही थी। हर जगह लोगों की भीड़ भागम भाग। पर पुरवा ने खुद और बच्चों को यहां के माहौल में ढालने में भी समय नहीं लगाया। गांव में ही पुरवा की जड़ें और खुशी थी। पर महेश की तरक्की की खातिर उसने पहले पटना और फिर दिल्ली जैसे शहर में रहना मंजूर कर लिया। क्योंकि महेश यही चाहते थे।
महेश विक्रम खुराना और उसके पिता जयराज खुराना के साथ प्रैक्टिस करने लगा। जगह कोई भी हो जब व्यक्ति योग्य हो तो कामयाबी उसके कदम चूमती ही चूमती है। यही महेश के साथ भी हुआ।
देखते ही देखते बच्चे बड़े हो कर कॉलेज में पहुंच गए और महेश के नाम की दिल्ली में भी धाक जम गई।
बेटे ने अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए वकालत का पेशा अपनाया।
दोनो बच्चे अपनी अपनी मंजिल तय कर के उस दिशा में बढ़ गए।
खुराना पंजाबी थे। पर बचपन से साथ मिलते जुलते रहने से कब खुराना की बेटी विजया और पवन के बीच प्यार पनप गया किसी को भनक भी नही लगी
जब घर में पवन के शादी की चर्चा शुरू हुई तो उसने साफ साफ कह दिया कि वो खुराना अंकल की बेटी विजया से ही शादी करेगा।
पुरवा और महेश को पता था कि विरोध का मतलब है कि बेटा कोर्ट मैरेज कर के अलग रहने लगेगा। इस लिए भलाई इसी में था कि बेटे की पसंद पर मुहर लगा दी जाए।
पर पूर्वी बेहद भावुक और संवेदन शील थी। उससे किसी का भी दर्द, तकलीफ बर्दाश्त नहीं होता था। इस लिए उसने डॉक्टर बनने का फैसला किया।
पढ़ाई पूरी होने के बाद पूर्वी ने भी अपने साथ पढ़े डॉक्टर विवान से शादी करने की इच्छा जताई।
जिस महेश ने बेटे की पसंद को सिर माथे लगा कर कुबूल किया था। वही महेश बेटी की पसंद जान कर आग बबूला हो गए। चिल्लाते हुए बोले,
"इस घर की बेटी किसी किरिस्तानी को नही दी जाएगी। वो ईसाई गौ मांस खाने वाले.. उसे तुम चाहती हो की अपना दामाद कुबूल कर लूं। मेरे जीते जी ये संभव नहीं है। इंतजार करो.. मैं मर जाऊं फिर चाहे जो करना।"
पुरवा ने बेटी की खुशी के लिए महेश की मनाने की कोशिश की। पर वो उस पर भी खफा हो गए और आरोप लगा दिया कि उसकी ही छूट देने, गलत परवरिश का नतीजा है कि बच्चे अपनी मनमानी करने को उतारू हैं।
मम्मी पापा के विरुद्ध जा कर अपना घर बसाने से ठीक लगा पूर्वी को कि वो अकेली ही रहे।
जब से पवन ने प्रैक्टिस शुरू कर दी थी, महेश ने अपना ध्यान सिर्फ उसे गाइड करने पर लगाना शुरू किया। केस पवन लड़ता, तैयारी महेश करवा देते थे उसकी।
बालों में उतरती चांदी उन्हे आराम करने का इशारा कर रही थी। पर इतने सारे केस थे उनके हाथ में कि उसे बीच में नही छोड़ा जा सकता था।
घर में नौकर चाकर थे। ज्यादा काम नहीं करने के बावजूद इधर कुछ दिनों से पुरवा बहुत जल्दी थक जा रही थी। दो कदम भी चलती तो उसकी सांसे फूलने लगती।
आज महेश सुबह की सैर को निकले। जब वापस लौट कर आए तो देखा पुरवा कुर्सी पर बैठ कर तेजी तेजी सांस ले रही है।
पुरवा चाय की ट्रे लिए बगीचे में आई थी पर इतना चलने पर ही उसकी सांस धौकनी सी चल रही थी।
पूर्वी वही बैठी न्यूज पेपर पढ़ रही थी।
महेश ने शिकायती लहजे में कहा,
"पूर्वी..! तुम दुनिया का इलाज करो। पर अपनी मम्मी की चिंता मत करना। तुम्हें दिखता नही वो कितनी कमजोर हुई जा रही हैं और कुछ दूर चलते ही उनकी सांसे उखड़ने लगती है।"
महेश ने पुरवा की पीठ को सहलाते हुए कहा।
पुरवा ने बेटी को बचाने की कोशिश की और बोली,
"क्यों डांट रहे हो बच्ची को ..! उसने तो कई बार मुझे हॉस्पिटल बुलाया मैं ही नही गई।"
पूर्वी अपनी पापा की बात सुन कर पुरवा के पास आई और बोली,
"देख रही हैं आप मम्मी..! पापा..भी मुझे ही डांटेंगे। आप मेरी नही सुनती तो मैं क्या करूं..! अब कुछ नही सुनूंगी मैं। आप मेरे साथ हॉस्पिटल चल रही हैं बस। दस बजे तैयार रहिएगा।"
बहुत जिद्द के बाद पुरवा हॉस्पिटल जाने को राजी हुई। पूर्वी अपनी कार से उनको ले कर गई।
पुरवा के पूरे शरीर की जांच करवाई।
और सब तो ठीक था पर पुरवा के फेफड़े की हालत बहुत खराब थी। जाने कैसे और कहां से ये राज रोग उसे लग गया था। दोनों फेफड़े उसके पचास प्रतिशत खराब हो गए थे। इसी वजह से उसकी सांस फूलती थी।
महेश के एक अहम केस की सुनवाई थी इस लिए वो नही आए थे।
सारी जांच के बाद पूर्वी तो कुछ नही बोली पुरवा से उसे कि क्या हुआ है, पर उसके हाव भाव देख कर पुरवा को अंदाजा हो गया कि उसे कुछ गंभीर बीमारी हो गई है।
डॉक्टर ने भर्ती हो कर जितनी जल्दी हो सके इलाज शुरू कर देने को कहा।
पूर्वी ने कल तक का समय मांगा और कहा कि घर जा कर परिवार में सब से समझ बूझ कर तब कोई फैसला लेगी वो।
रात को खाने की टेबल पर पूर्वी ने अंग्रेजी में भाई और पिता को मां के मेडिकल कंडीशन के बारे में ये सोच कर बताई कि मम्मी तो समझेगी नही।
पर पुरवा भले ही बोल ना पाती हो अंग्रेजी पर दिल्ली में इतने सालों से रह कर समझ बखूबी लेती थी।
अपने शरीर की हालत के बारे में सुन कर वो अंदर ही अंदर टूटती रही पर ऊपर से ये जाहिर करती रही कि उसे कुछ पता नहीं है। उसे सब से दूर भी रहना था जिससे उसका ये इफेक्शन किसी और को ना हो जाए।
खानें के बाद सभी अपने कमरे में सोने चले गए।
पुरवा भी अपने कमरे में जा कर लेट गई। महेश रोज ही स्टडी में देर तक केस के बारे में पढ़ते थे फिर आ कर सो जाते थे।
पर जब आधी रात में पुरवा की नींद टूटी तो महेश नही थे कमरे में। उसे लगा रात के दो बज गए। महेश उसे कहते हैं, वो अपना भी तो ख्याल नही रखते। यही सोच कर स्टडी की ओर चल दी उनको बुलाने।
वहां पहुंच कर देखा तो महेश वहीं पर पड़े बड़े से सोफे पर सो रहे हैं।
पुरवा ने जगाने के लिए हाथ बढ़ाया फिर अपने हाथों को पीछे कर लिया। तो … क्या महेश पूर्वी ने जो कहा था उसकी वजह से दूर हैं। इस लिए कमरे में ना सो कर यहां सो गए हैं। क्या उससे दूर भाग रहे हैं। कही उनको भी ना हो जाए।
ये सोचते ही दिल में जैसे कुछ छनाक से टूट गया।
क्या एक बीमारी भर होने से प्यार खत्म हो जाता है..? मैने सारी जिंदगी जैसे महेश ने चाहा खुद को ढाल कर उसी के अनुसार जीया। अपने बीमार बाऊ जी, दो छोटे छोटे भाइयों, सब को छोड़ दिया।
वो मनों भारी कदम उठाती हुई अपने कमरे में लौट आई। और निढाल सी बिस्तर पर लेट गई। आत्म मंथन करने लगी.. क्या जिसे वो महेश का बे पनाह प्यार समझ रही थी वो प्यार नही था..! क्या सिर्फ उसकी खूबसूरती का नशा था जिसमे युवा महेश अपनी प्यास बुझाने को पी रहा था। और उसे वो अपने प्रति प्यार समझ रही थी। नही सच यही है कि महेश सिर्फ और सिर्फ उसे अपनी इच्छा पूर्ति का साधन मात्र ही मानता रहा। वरना प्यार में तो दो आत्माएं इस तरह एक होती है कि कोई भी डर चाहे वो मृत्यु का ही क्यों ना हो जुदा नहीं कर सकता।
अब उसे ना अच्छे इलाज की इच्छा थी ना ठीक होने की।
सुबह महेश ने नाश्ते की टेबल पर पूर्वी से कहा,
"पूर्वी… तुम अपनी मम्मी को एडमिट करवा देना। मेरी कुछ जरूरी मीटिंग है।"
पुरवा ने बिना किसी से कुछ कहे अपना सारा सामान पैक कर लिया। पुरवा ने जिस घर को इतने अरमान से सजाया संवारा था उसे छोड़ने में उसे कोई तकलीफ नही हुई। निकलते वक्त डेहरी को माथे लगाया और प्रार्थना की कि अब उसकी लाश भी इस डेहरी पर ना आए।
पूर्वी मम्मी को ले कर गई और हॉस्पिटल के सबसे वीआईपी कमरे में शिफ्ट करवा दिया।