Kataasraj.. The Silent Witness - 52 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 52

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 52

भाग 52

अब इस समय तक सलमा, उर्मिला, अशोक और साजिद सब का पूरा ध्यान उस मूंगफली वाले की ओर आकृष्ट हो गया था। सब उसके आगे बोलने का इंतजार कर रहे थे।

उसने जो कुछ बताया वो सब के दिल को भीतर तक छू गया।

"साहब मेरा एक ही बेटा था। बड़ी मन्नतों के बाद उसे भगवान की कृपा से पाया था। वो था भी ऐसा बचपन से ही देखने में कि सब का दिल चुरा लेता एक बार मिलने पर ही। इस कारण मन मोहन रक्खा था उसकी अम्मा ने।"

इतना बताते बताते वो जैसे सचमुच ही अपने बेटे के बचपने में चला गया। उसकी स्मृति मन में जीवंत हो उठी थी। होठों पे मुस्कुराहट और चेहरे पर वात्सल्य की मधुर छाया ने अपना डेरा डाल दिया था।

अमन ने उत्सुकता से पूछा,

"चचा… आगे बताओ ना।"

"बेटा… बड़े ही लाड़ प्यार से हम दोनो ने उसे पाला पोसा। हम चाहते थे कि वो थोड़ा पढ़ लिख कर कहीं नौकर हो जाए तो हमारा जीवन भी सफल हो जाए। पर उसे तो जैसे किसी की बात सुननी ही नही थी।

जब भी कोई बड़े या छोटे नेता आता वो अपना स्कूल पढ़ाई सब छोड़ छाड़ कर उसे सुनने चला जाता। हम और उसकी अम्मा कितना मना करते पर एक ना सुनता। कहता मुझे इन अंग्रेजो के स्कूल में नही पढ़ना ना ही इनकी गुलामी करनी है। जब उसकी अम्मा उसे समझाने की कोशिश करती तो वो उसे ही समझाने लगता कहता, ’अम्मा..! अगर तुम्हें कोई अपना गुलाम बना ले और सदियों तक तुम्हारा शोषण करे, तुम्हे सताए, तुम्हारे बच्चो को प्रताड़ित करें… तो क्या मेरा.. मेरे जैसे बच्चों का ये फर्ज नही बनता कि तुम्हें आजाद करवाए। ये भारत माता भी तो कराह रही है इन गोरों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई। तो तुम्ही बताओ अम्मा..! मैं अपने सुख के लिए अपनी भारत माता के गुनहगारों की सेवा करूं। या उनको जंजीरों की जकड़न से आजाद करवाने.. के लिए अपने को समर्पित कर दूं।’ उसकी अम्मा निरुत्तर हो जाती। उसके पास अपने लाडले की बातों का कोई जवाब नही होता था।"

अब अशोक ने पूछा,

"फिर क्या हुआ भाई..? उसने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।"

एक लंबी सांस ले कर वो बोला,

"वो मस्त था आजादी के नशे में। उसे तो बस इन गोरों को यहां से भगाने में देश के काम आना था। जब सोलह बरस का हुआ तो उसे घर गृहस्ती के मोह में बांधने के लिए.. एक रिश्ते की ही सुंदर सी लड़की से उसकी शादी करवा दी। पर ये बंधन भी उसे बहुत दिनों तक बांध नही सका। शादी के दो साल में ही ये बच्ची घर में आ गई। ( बच्ची के सिर पर हाथ फेरते हुए वो बोला ) इस अभागी का मुंह भी नही देख पाया बिचारा। तभी पैसे की कमी के कारण बड़े नेताओं ने गाड़ी में डकैती की योजना बनाई। उसमे मन मोहन ने भी शामिल था। इतनी बड़ी घटना से बौखलाए अंग्रेजो ने ताबड़ तोड़ छापे मारी शुरू की। मन मोहन भागा फिर रहा था। कभी इस रिश्तेदार के घर शरण लेता, कभी उस। कभी किसी दोस्त के यहां दो चार दिन छुपाता.. कभी किसी दोस्त के यहां। ऐसे ही साल भर छुपता रहा। जब गया था तो बहू गर्भवती थी। कहीं से खबर मिली उसे कि बेटी हुई है। इसे देखने का उसे इतना मन हुआ कि सब्र नहीं हो सका उससे। गांव के बाहर गन्ने के खेत में किसी तरह छुप छुपा कर आया और बैठ गया। इस इंतजार में कि रात के अंधेरे में आ कर बच्ची से और हम सब से मिल जुल लेगा। पता नही कैसे.. और किसने खबरी का काम किया अंग्रेजों के लिए। सादे कपड़े में एक आदमी राहगीर बन कर पड़ोस के घर में ठहर गया था। जैसे ही पूरा गांव खा पी कर सो गया। मोहन घर के लिए खेत से निकाला। इधर उस राह गीर ने दो पुलिस वालों को भी खबर कर दी थी। वो दोनो पुलिस वाले पेड़ के पीछे से हमारे घर पर नजर रक्खे हुए थे।"

दो घड़ी रुक कर उस आदमी ने लंबी सांस ली। फिर बोला,

"मोहन आया। उसने सांकल खटखटाई… जैसे ही सांकल की आवाज हुई उसकी अम्मा बेसाख्ता बोली कि मेरा मोहन आया है। इसके साथ ही वो खटिया से उठी साथ मैं भी उठा। अंदर चिमनी जल रही थी। बहू भी बच्ची के साथ जाग गई थी। उसे गोद में ले कर वो भी अम्मा के पीछे पीछे आई। इधर सांकल खटकते ही तेज टार्च की रोशनी उस पर पड़ी। और उस रोशनी के साथ ही ताबड़ तोड़। दो फायर हुए और दोनो गोलियां मेरे मोहन के सीने को चीरते हुए निकल गईं।"

सब के दिल धड़क रहे थे। गोली लगाने की बात सुनते ही सब की आंखे नम हो गईं, चेहरे उतर गए। संजीदगी सभी के चेहरे पर छा गई।

बताते हुए उसके पुराने जख्म ताजा हो गए। उस बच्ची ने अपने दादा के आंखों को अपने नन्हें हाथों से पोछा। और बोली,

"हम है ना… दादा..! रोते काहे हो…?"

फिर उस आदमी ने बोला,

"गोली की आवाज सुनते ही मेरा कलेजा दहल गया। भाग कर दरवाजा खोला। मेरे दरवाजा खोलते ही वो जो सांकल पकड़े था उसे छोड़ कर मुझसे लिपट गया। अब बाबू जी..! मैं कहां संभाल पाता उसे..! वो लंबा चौड़ा गबरू जवान था। किसी तरह सहारा दे कर लिटाया उसे। लज्जा वश बहू वहीं खड़ी घूंघट में सिसक रही थी। मोहन की अम्मा ने भाग कर उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया। और रोते हुए बोली,

"मोहन.. बेटा..! क्या जरूरत थी तुझे आने की…? क्या तू नही जानता था कि ये दलाल घात लगाए बैठे हुए है। क्या जरूरत थी बेटा.. तुझे आने की।

वो उसके चेहरे को दुलारते हुए बोली। अभी जान बाकी थी। जिस काम के लिए आया था उसे किए बिना कैसे शरीर छोड़ता अपना..!

वो लड़खड़ाती आवाज में बोला,

"अम्मा..! मुन्नी..!"

"उसकी अम्मा ने रोते हुए बहू को पास बुलाया बोली,

"बहू..! ला मुन्नी को दिखा दे इसे।"

बहू पास आई उसके मुन्नी को उसके सामने कर दिया।

उसकी अम्मा बोली,

"ले देख मोहन..! अपनी मुन्नी को। जिसे तू अनाथ किए जा रहा है। अरे..! हत्यारों…! कोई इसे अस्पताल ले चलो..। अरे…! गांव वालों क्या सब के सब मर गए हो। मेरे लाल को कोई डाक्टर के पास ले चलो।"