भाग 27
उर्मिला की सलमा के साथ नही जाने की वजह सुन कर सलमा बोली,
"पुरवा की क्या बात है…? बिचारी बेटी कहां ब्याह के बाद कहां घूम पाएगी….., जब दूसरे के खूंटे से बंध जायेगी। उसे भी लेती चलो। रही बात जानवर और घर की तो वो चाची के यहां बोल दो। वो देख भाल कर लेंगी।"
सलमा के साथ चलने के लिए हर जुगत बताने के बाद भी उर्मिला का चेहरा उतरा हुआ ही था। जो वास्तविक वजह थी वो ना तो उससे कही जा रही थी, ना ही छुपाते बन रहा था। पर कैसे सलमा से बताए ये मुश्किल थी….? अपने घर की स्थिति बाहर वालों के सामने ना ही खुले तो अच्छा है।
सलमा ने जब देखा कि उर्मिला उसकी बात का कोई माकूल जवाब नहीं दे रही है तो उसकी अनुभवी आंखों ने अपनी सखी की उलझन को ताड़ लिया। सलमा ने उसके घर का कोना कोना देख लिया था। पर घर का कोई भी हिस्सा अपनी संपन्नता की गवाही नहीं दे रहा था। खटिया पर बिछी हुई पुरानी साड़ी की सुजनी ये मुंह खोले बता रही थी कि मेरा मालिक रूई के गद्दे बनवाने की हैसियत नहीं रखता। खाने के पुराने जिसे बरतन अपने बदले जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
सलमा ने दिल की थाह पाने की गर्ज से उर्मिला का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली,
"बोलो ना उर्मिला बहन….! क्या परेशानी है…? मुझसे क्या छिपाना..? मैं कोई गैर थोड़े ना हूं। "
उर्मिला हिचकते हुए बोली,
"वो सलमा बहन….! ऐसा है कि पुरवा के ब्याह तय होने की वजह से खर्चा बहुत बढ़ गया है। अब लड़के वाले कुछ मांग तो नही रहे है पर उनकी हैसियत को ध्यान में रख कर ही हमको लेन देन करना होगा। लड़का पढ़ा लिखा है, और अभी पढ़ ही रहा है। तो उसके लिए भी एक घड़ी और एक सायकी तो देना ही चाहिए। पुरवा भी तो हमारी इकलौती बेटी है। अब इतनी दूर जाने में खर्च भी तो बहुत लगेगा…! इसी वजह से दिल झिझक रहा है। अब की बार नही, अगली बार जब आप आएंगी तो पक्का हम और पुरवा के बाउजी आपके साथ चलेंगे। पुरवा का ब्याह निपटा रहेगा, कोई जिम्मेदारी नही रहेगी।"
सलमा बोली,
"इतने बरस बाद तो आरिफ के निकाह में आ पाई हूं। आखिरी शादी ना होती और शमशाद मियां ने इतना इसरार नही किया होता तो ना ही आ पाती। फिर पता नही कब आ पाऊंगी… और आ भी पाऊंगी कि यही मेरा आखिरी आना हो जायेगा कौन जानता है…?"
उर्मिला बिगड़ कर बोली,
"ये क्या अनाप शनाप बक रही हैं…? शुभ शुभ बोलिए। भला आएंगी क्यों नहीं…!"
सलमा बोली,
"अगर मुझे वापस बुलाना चाहती हो.. तो फिर चलो मेरे साथ। खर्च की चिंता मत करो। ऊपर वाले का दिया बहुत कुछ है मेरे पास। और जो कुछ भी है तुम सब अपनों की दुआओं की बदौलत ही है। अगर नहीं है कुछ तो वो है अपनों का साथ। बस यही एक चीज वहां नही मिलती। इसी के लिए दिल तड़पता, छटपटाता है। फिर तुम मुझसे छोटी हो। मैं तुमसे राह खर्च ले कर ले चलूंगी तुम्हें…? इतना संग दिल समझा है अपनी सलमा को..?"
सरसों के पीले खेत को निहारती सलमा को अब लग रहा था कि अब उर्मिला मना नही करेगी साथ चलने से।
कुछ देर बाद उर्मिला की ओर देखा और मुस्कुरा कर बोली,
"तो…. फिर पक्का हो गया ना…! चल रही हो मेरे साथ, सच.. उर्मिला…! बहुत मजा आयेगा। काश …! नईमा भी चलती। पर मुझे पता है वो बीस चोंचले बताएगी जाने के नाम पर। आखिर में नही ही जायेगी।"
सलमा उर्मिला की पुरानी सहेली थी। ज्यादातर लड़कियां जहां शादी के बाद बदल जाती है। खास कर बड़े रईस घर में शादी हो जाने पर तो उनका भाव ही समझ में नहीं आता है। पर लंबा वक्त भले भले ही बीत गया हो, पर सलमा जैसे लड़कपन में उसका थोड़ी बड़ी होने की वजह से उसका और नईमा का खयाल रखती थी। बिलकुल वैसे ही अब भी वो थी। समय ने उसके मन पर पराए पन की महीन सी लकीर भी नही खिंचने दी थी। बिना कहे उसके जाने से मना करने की वजह समझ ली और फिर उसका निदान भी कर दिया। कोई दिखावा नहीं था उसके अंदर अपने पैसों का।
उर्मिला को हां करना सही लगा। वो बोली,
"अब मेरी तरफ से तो हां है। मै चलूंगी आपके साथ। पर पुरवा के बाऊ जी क्या कहते हैं ये भी तो देखना पड़ेगा। वो हां कह दें .. , पुरवा हां कर दे, फिर मुझे क्या आपत्ति होगी..!"
साथ चलने के लिए उर्मिला की हां सुनते ही सलमा चहकने लगी। वो बोली,
"अशोक जी..! और पुरवा को तो राजी करने की जिम्मेदारी मेरी है। उसकी तुम चिंता मत करो।"
सूरज अपना दूसरा पड़ाव तय कर अब थकान महसूस कर रहा था। उसे भी अब आराम की जरूरत महसूस हो रही थी। बस अब तीसरा पड़ाव तय कर पेड़ों के झुरमुट में छुपते ही उसे भी आराम मिलने वाला था।
वो वापस घर लौटने को हुई। तभी नईमा के घर की तरफ से आने वाले रास्ते पर वो आती दिखाई दी। तेजी तेजी कदम बढ़ाती वो उर्मिला के घर की ओर जा रही थी। पर रास्ते में ही उर्मिला और सलमा दिख गई। वो दोनो हाथ कमर पर रख कर थमक कर खड़ी हो गई और बड़े ही अंदाज में अपने हाथ उठा कर उन दोनो को छेड़ने के अंदाज में बोली,
"तो… बाग की सैर की जा रही है। मजे ही मजे किए जा रहे हैं। मोहतरमाओ…! आप दोनो ही तो असली लुत्फ उठा रही हैं आरिफ और नाज़ के निकाह का माशाअल्लाह..।"
सलमा भी उसी के अंदाज में बोली,
"हां..! वाकई..! मजे तो लिए तो लिए ही जा रहे है। पर ये भी जरा बताओ कि तुमको किसने रोका है मजा लेने से..! तुम भी पहले ही आ जाती थोड़ा। पर तुम्हारे पास तो समय ही नही है।"
उर्मिला ने इस शिकवा शिकायत के सिलसिले पर ब्रेक लगा कर समय का सदुपयोग करते हुए बोली,
"अब इन उलहानों में समय जाया मत करो। अभी फिर नईमा को देर भी होने लगेगी। चलो पहले घर चलें फिर वहीं बैठ कर बात चीत करो या शिकवा शिकायत।"
फिर तीनों घर वापस आ गईं।