भाग 4
शमशाद को ये तो पता था कि चकवाल से सलमा खाला जरूर आएंगी। पर कब आयेंगी इसका पता नही था…?
इधर साजिद को चिंता लगी हुई थी कि सलमा इस्माइलपुर तक पहुंच तो जाएगी लेकिन शमशाद के घर तक कैसे पहुंचेगी। फिर उसने इसका उपाय निकाला और तार घर चला गया। शमशाद के नाम टेलीग्राम कर दिया। उसमे खबर दे दी कि सलमा और अमन परसो दोपहर तक पहुंचेंगे। उन्हें स्टेशन से ले ले।
शमशाद खबर पा कर बहुत खुश हुआ कि आखिर खाला आ ही रही हैं। वो भी निकाह से इतना पहले। उससे भी ज्यादा खुश कलमा हुई अपनी छुटकी प्यारी बहन के आने की खबर सुन कर।
शमशाद अपने खास बग्घी से उन्हें लेने स्टेशन आया था। पर ट्रेन आने में वक्त देख उसने सोचा जब तक ट्रेन आती है। एक दो गिलौरिया ही खा ले। उससे वक्त भी कट जायेगा। और दुकान पे मौजूद लोगों से बात करके आज के हालत बारे में भी कुछ जानकारी मिल जाएगी। अफवाहों के दौर में सच का पता लगाने के लिए आम जन मानस से बात करने के लिए ऐसी ही जगहें बिलकुल मुफीद होती है। यही सोच कर जैसे ही वो पान खाने दुकान पर पहुंचा ट्रेन के इंजन का शोर पास आना शुरू हो गया। उसने जल्दी जल्दी आठ दस गिलौरियां बंधवाई और ट्रेन की ओर लपका। पर जल्दी करते करते भी ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आ कर खड़ी हो गई थी और सलमा और अमन सारा सामान उतार कर रख चुके थे। अब इस्माइल पुर जाने का कोई माध्यम ढूंढने की कोशिश कर रहे थे।
कुली की तलाश में इधर उधर निगाह दौड़ाती सलमा ने जैसे ही बाहर की ओर देखा उसे शमशाद आता दिखा। शमशाद को दूर से ही आते देख सलमा ने बिना किसी शुबहा के पहचान लिया कि ये तो शमशाद ही है। पर शमशाद की नजरें अभी उनको नही देख पाई थीं। सलमा ने आगे चलते हुए पुरजोर आवाज दी,
"शमशाद….!"
अपना नाम पुकारने से शमशाद ने आवाज की ओर देखा। सलमा खाला अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ बाहें फैलाए खड़ी थी।
शमशाद लंबे लंबे डग रखता हुआ तेजी से सलमा खाला की ओर लपका।
पास आकर सलमा से मुस्कुराते हुए बोला,
"आदाब .. खाला जान।"
सलमा शिकवा जाहिर करती हुई बोली,
"बहुत बदल गए हो बेटा..! अपनी खाला से जो सिर्फ आदाब का तकल्लुफ कर रहे हो। गले वले लगना तो शायद भूल ही गए हो।"
शमशाद झेंपता हुआ,
"अरे..! नही खाला जान।"
कह कर उनके गले लग गया।
फिर इधर उधर देखते हुए बोला,
"खाला… ! मेरा छुटका भाई अमन कहां है…?"
सलमा थोड़ी दूर खड़े अमन की और इशारा करते हुए बोली,
"वो है तुम्हारा छुटका भाई। सामान के पास खड़ा है।"
शमशाद उसके पास गया और बड़े ही प्यार से मिला।
अब तक शमशाद के साथ आए कलुआ ने सामान उठा लिया। शमशाद सलमा और अमन को साथ ले अपनी बग्घी की ओर चल पड़ा। कलुआ से सामान ले कर घर पहुंचने को बोला।
रास्ते भर शमशाद सलमा और अमन से उनके घर और वहां के माहौल के बारे में पूछता रहा। साथ ही यहां के बारे में बताता रहा। उसे साजिद खालू ने साथ नहीं आने का भी बुरा लग रहा था। तब सलमा समझाते हुए बोली,
"बेटा…. ! शिकवा मत कर। आरिफ के निकाह से पहले ही तेरे खालू आ जायेंगे। उनकी बहुत मजबूरी थी कारोबार की। वरना वो साथ ही आते। अभी आने से बहुत नुकसान ही जाता। वो काम निपटा कर जल्द से जल्द आ जायेंगे।"
इस आश्वासन से शमशाद के मन का गिला दूर हो गया।
एक घंटे के सफर के बाद इस्माइल पुर आ गया। जब सलमा ने देखा तब से अब काफी कुछ बदल गया था। कई छोटी छोटी दुकानें खुल गई थीं। कई जगह पर दो चार के झुंड में लड़किया स्कूल जाती दिखी। मन को सुकून महसूस हुआ कि चलो अब तो लोग अपनी बेटी को पढ़ने के बारे में सोचने लगे हैं। वरना पहले तो पूरी क्लास में सलमा और उसकी एक सहेली ही हुआ करती थी। बाकी सारे लड़के ही होते थे। बड़ा बुरा लगता था स्कूल में। इतने सारे लड़कों के बीच में सिर्फ दो लडकियां थीं। इसी कारण से जब उसकी सहेली ने स्कूल छोड़ा तो अकेले पन की वजह से सलमा ने भी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।
कई सारी सवारियां चलती हुई दिखी रास्ते में। पहले सवारी मिलना असंभव सी बात थी। आने जाने के लिए अपनी ही सवारी की। व्यवस्था करनी पड़ती थी। उसे देख कर अच्छा लगा कि अपना कस्बा तरक्की कर रहा है।
सलमा और अमन के घर पहुंचने पर बड़े ही खुशदिली से उनका वेलकम किया गया। अलमा अपनी प्यारी बहन को इतने समय बाद सामने देख खुशी से भर गई। सलमा को गले लगा कर आंखे नम हो गई। और बोली,
"वाह..! री सलमा .! तू तो सबको भूल ही गई। अगर आरिफ का निकाह ना होता.. और शमशाद इतना इसरार ना करता आने का तो.. । तू तो कभी आती ही न। क्यों मैं ठीक कह रही हूं ना।"
सलमा बोली,
"नही…! आपा…! दिल तो बहुत चाहता है यहां आने का। आप सबसे मिलने का। पर क्या करूं…? एक तो आप सब ने इतनी दूर ब्याह कर दिया मेरा। दूसरी साजिद अकेले हैं घर के। फिर कैसे सब कुछ छोड़ कर आ सकते है..? हमारी मजबूरी है। नही तो भला कौन अपने लोगों के पास आना… और उनसे मिलना नही चाहेगा…?"
सलमा की बात सच थी। वाकई उसकी अपनी मजबूरी थी जिसने उसे अपनों से दूर रहना पड़ता था। खाला जान के आने की खबर लगते ही शमशाद की दुलहन और आरिफ भी उनसे मिलने बाहर के मेहमान खाने में आ गए। आरिफ को देखते ही सलमा बोल उठी,
"कौन कहेगा….? ये वही मरिल्ला सा दिखने वाला आरिफ है…? माशा अल्लाह क्या खूब कद निकल आया है बच्चे का…? अगर इसके माथे वाला चोट का निशान ना दिखता तो मैं तो उसे पहचान भी नही पाती..!"
सलमा आरिफ को दुलारते हुए बोली।
सलमा की बात पर घर के बच्चे हंसने लगे आरिफ के लिए मरिल्ला शब्द सुन कर।
बच्चों के हंसने से आरिफ शरमा गया। सर झुका कर हंसने लगा और बोला,
"खाला जान …! आप भी….! आते ही मेरी खिंचाई करने लगी। अब बच्चे मेरा मजाक बनाएंगे।"
शमशाद ने सलमा खाला का सामान अम्मी के कमरे में रखवा दिया। दोनों बहनें आपस में मिल गिला शिकवा दूर करने लगी।
चाय नाश्ते के बाद आरिफ, अमन को ले कर आस पास घुमाने और गांव दिखाने चला गया।
अमन और आरिफ में उम्र का ज्यादा फासला नही था। इसलिए दोनो खाला जाद भाइयों में दोस्ताना रिश्ता कायम होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। दोनो ही के बीच बड़े छोटे भाई से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता कायम हो गया।
आरिफ बोला,
"अमन …! जिस लड़की से मेरा निकाह हो रहा है, क्या उसे देखना चाहोगे..?"
क्या जवाब दिया अमन ने…? क्या उसने अपनी रजा मंदी दी…? उस लड़की को देखने के लिए। जिससे आरिफ का निकाह हो रहा था। क्या साजिद आ पाए निकाह से पहले…? जानने के लिए पढ़ें अगला भाग।