Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 144 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 144

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 144


जीवन सूत्र 416 योगी के लिए आवश्यक है संकल्पों का त्याग


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-


यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव।

न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन।(6/2)।


इसका अर्थ है-हे अर्जुन ! लोग जिसको संन्यास कहते हैं,उसी को तुम योग समझो;क्योंकि किसी भी योग की सफलता के लिए संकल्पों का त्याग आवश्यक है।ऐसा किए बिना मनुष्य किसी भी प्रकार का योगी नहीं हो सकता है।

कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में दिया गया गीता का उपदेश जीवन की विविध समस्याओं में और स्थितियों में मार्गदर्शक है। मेरी दृष्टि में यह यह जीवन प्रबंधन पर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है।संन्यास (सांख्ययोग) और योग (कर्मयोग) ये दोनों ही मानव के लिए उपयोगी हैं।एक संन्यासी में त्याग भावना होती है।उसी तरह योग की भावना और अभ्यास भी तभी पूर्णतः सफल होता है जब मनुष्य में त्याग की भावना हो।


जीवन सूत्र 417 जीवन में हो भक्ति, ज्ञान और कर्म की त्रिवेणी


गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म की त्रिवेणी है। एक ओर अर्जुन को कर्म में प्रवृत्त करने की दृष्टि से भगवान कृष्ण का किया जा रहा आह्वान कर्म के महत्व को प्रतिपादित करने वाला है।वहीं अर्जुन द्वारा किए जा रहे प्रश्नों व उनकी शंकाओं के समाधान के क्रम में भगवान श्री कृष्ण ने ज्ञान और भक्ति के महत्व पर भी विस्तार से प्रकाश डाला है। वास्तव में किसी एक मत का अनुसरण करने का यह अर्थ नहीं है कि दूसरे दार्शनिक मत का प्रभाव ही न हो।वास्तव में मनुष्य का जीवन भी इसी तरह समय-समय पर अनेक अवस्थाओं व स्थितियों से गुजरता है।


जीवन सूत्र 418 संघर्षों का नाम है जीवन



कभी जीवन में कर्म का कठोर संघर्ष पथ होता है,तो कभी आंतरिक ऊर्जा,शांति और प्रेरणा प्राप्त करने के लिए ज्ञान व ध्यान।कभी ह्रदय की प्रसन्नता के लिए हम भक्ति में डूब जाते हैं।इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने यही समझाया है कि जीवन में धुर भौतिकता के प्रति त्यागदृष्टि होना अत्यंत आवश्यक है।योग साधना के लिए विक्षोभकारी संकल्पों का त्याग होना ही चाहिए।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय