Nishbd ke Shabd - 13 in Hindi Adventure Stories by Sharovan books and stories PDF | नि:शब्द के शब्द - 13

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नि:शब्द के शब्द - 13

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक

तेरहवां भाग

***

मैं मोहित हूँ, लेकिन . . .?

'?'- मोहित बड़ी देर तक मोहिनी की सिसकियों को सुनता रहा. मोहिनी भी उसके बदन से लिपट कर रोटी रही. फिर काफी देर की खामोशी के पश्चात मोहित ने अपने हाथ से मोहिनी का सिर धीरे-से ऊपर उठाया. उसके चेहरे, आंसुओं में डूबी उसकी गहरी-गहरी आँखों को ध्यान-से, बहुत गम्भीरता से देखा, फिर उससे कहा कि,

'मैं आपके दुःख, आपके दर्द को बहुत अच्छी तरह समझ ही नहीं रहा हूँ बल्कि हृदय की गहराई से महसूस भी कर रहा हूँ, मगर बड़े अफ़सोस के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि, . . .'

'?'- मोहिनी की पुतलियाँ तुरंत ही फैलकर चौड़ी हो गईं तो मोहित ने अपनी बात पूरी की. वह बोला कि,

'मैं मोहित तो हूँ, लेकिन वह मोहित नहीं हूँ, जो आपका है.'

'क्या मतलब? मैं समझी नहीं?' मोहिनी मानो चीख-सी पड़ी.

'मैं, कोई दूसरा मोहित हूँ. वह नहीं हूँ जिसके साथ आपकी सगाई हुई थी.'

'इतनी जल्दी भूल गये मुझे? पूरे दो वर्षों तक मैं भटकती फिरी हूँ. मरने के बाद भी मैं अपनी आत्मा के साथ, आसमान के राजा, 'मनुष्य के पुत्र' के सारे नियम और कायदे-कानूनों को तोड़कर तुम्हारे दुःख में भागीदार बनी रही. तुम्हारे पास छुप-छुपकर मिलने आती रही. तुम तो जानते ही हो कि, मुझे तुम्हारे चाचा ने तुम्हारे पिता की साज़िश के तहत मेरा गला, मेरी ही साड़ी से घोंटकर कार में मुझे मार डाला था. मारने के बाद उन्होंने मेरी लाश को ईसाई अंग्रेज गोरों के कब्रिस्थान की एक सौ वर्षों से भी अधिक पुरानी कब्र में दबा दिया था. फिर जब यह बात मैंने तुम्हें बताई तो तुम मेरी लाश देखने के लिए उसी कब्रिस्थान में खोदने भी गये थे, मगर किसी कार को अपनी तरफ आते देखकर डर कर जब भागे थे, तब भी मैंने तुम्हें बचाया था. उस कार के ड्राईवर की आँखों के सामने आकर उसे कुछ देखने नहीं दिया था, और फिर वह कार अपनी स्पीड में आगे निकल गई थी और तुम तब बच गये थे. यह जो कुछ मैं तुम्हें बता रही हूँ क्या सब गलत है? मुझे तो लगता है कि, अब इतनी जल्दी तुम मुझे भूले ही नहीं बल्कि देख कर पहचानना तो अलग, नकारने भी लगे हो? क्या कोई दूसरी 'मोहिनी' मुझसे भी सुंदर तुमने ढूंढ ली है?'

'?'- मोहित सुनकर दंग रह गया. वह कुछ कहता, इससे पहले ही रोनित ने मोहित से पूछा. वह बोला कि,

'मिस्टर मोहित ! मैं यह क्या सुन रहा हूँ? मोहिनी ने जो कुछ तुम्हारे अतीत की पिछली बातें तुमको याद दिलाने के लिए अभी कही हैं, क्या वे सच हैं?'

'?'- मोहित फिर भी चुप बना रहा तो रोनित ने दोबारा पूछा. उसने कहा कि,

'बताइए न. यह लड़की जो कुछ कह रही है, क्या वह सब सच है'

'जी हां. इसीलिये तो मैं नि:शब्द हूँ.'

'ठीक है. फिर भी अपने नि:शब्द को शब्द दीजिये, ताकि मोहिनी जी के दुःख को बांटा जा सके.'

रोनित ने कहा और फिर वह मोहिनी से सम्बोधित हुआ. वह बोला कि,

'मोहिनी जी, आपकी कहानी तो बहुत रोमांच देनेवाली है. लेकिन मुझे एक बात समझ में नहीं आती है कि, अगर आप इसी मोहित की मोहिनी हैं तो ये मोहित आपको पहचानने से इनकार क्यों कर रहा है?'

'मैं बताती हूँ.' इतना कहकर मोहिनी ने अपनी बात की. वह बोली कि,

'मुझे जब मोहित के चाचा ने मार दिया और मेरा शरीर भी कब्र में दबने के बाद नष्ट हो गया तो मेरी आत्मा को अपनी उम्र पूरी होने तक यूँ ही आत्माओं के संसार में रहते हुए भटकना था. लेकिन, मुझे भटकते हुए मोहित का दुःख देखा नहीं जाता था. इसलिए मैंने आसमान के राजा से विनती की कि, वह मुझे फिर से संसार में भेज दे. 'मनुष्य का पुत्र' जो आसमानी संसार का राजा है, अत्यंत दयालु है. उसने मेरी विनती को ग्रहण किया और मुझे कोई अच्छा-सा शरीर, मिलने पर संसार में भेजने का वायदा भी किया. तब एक दिन उसने मुझे एक मुस्लिम लड़की इकरा हामिद गुलामुद्दीन के शरीर में भेज दिया. इसलिए आत्मिक रूप से मैं मोहिनी हूँ और शारीरिक रूप से इकरा हूँ.' यही कारण है कि, मोहित मुझे पहचान नहीं पा रहा है.'

'?'- रोनित के साथ-साथ मोहित भी आश्चर्य के कारण कुछ भी नहीं कह पा रहा था.

फिर कुछेक पलों की खामोशी के बाद रोनित ने ही बात आगे बढ़ाई. वह बोला कि,

'कोई अन्य पहचान मोहित के बारे में अगर आपको मालुम हो तो बताइए.

'कुछ भी पूछ लीजिये. मुझे सब मालुम है.' मोहिनी ने कहा.

'मेरा मतलब है कि, अभी तक जो भी कुछ आपने बताया है, वह तो कोई भी बता सकता है. कोई ऐसी पहचान बताइए जिसे केवल आप और मोहित ही जानते हैं, कोई तीसरा नहीं.'

'मोहित की गर्दन के पीछे एक बड़ा-सा काला दाग वह है जो इन्हें भी नहीं मालुम होगा.'

'मोहित जी ज़रा अपनी गर्दन तो दिखाइये.'

'?'- मोहित ने चुपचाप अपनी गर्दन दिखाई तो वहां बालों के अंदर एक बड़े-से काले दाग को देखकर रोनित आश्चर्य से अवाक रह गया. उसने तुरंत ही सेल फोन से फोटो लेकर मोहित को दिखाई तो वह भी आश्चर्य से गड़ गया. जब वे दोनों आगे कुछ और नहीं कह सके तो मोहिनी ने दूसरी पहचान बताई. उसने कहा कि,

'इनका दाहिना पैर देखिये. उस पैर की बीच की अंगुली पर नाख़ून नहीं है. इन्होंने कॉलेज में ही मुझे कभी बताया था कि, नंगे पैर फुटबॉल खेलने के कारण इनके चोट लगी थी और तब बीच की अंगुली का नाखून ऐसा उखड़ा था कि, वह फिर कभी भी नहीं निकल सका था.'

'?'- मोहित जी ज़रा अपना दाहिने पैर का जूता उतारिये.'

'उतारने से कोई भी फायदा नहीं. यह सही कहती है. सचमुच मेरे इस पैर की बीच की अंगुली में नाख़ून नहीं है.' मोहित ने कहा तो रोनित ने अब आश्चर्य नहीं किया. उसे विश्वास हो गया कि, मोहिनी को मोहित के बारे में हरेक वह बात पता है जो इस प्रकार के केस में उसे मालुम होनी चाहिए. मोहिनी की बातों में सच्चाई है, मगर फिर भी मोहित उसे पहचान कर भी इनकार क्यों कर रहा है? अवश्य ही कुछ-न-कुछ, कहीं तो गड़बड़ है. यही सोचता हुआ रोनित मोहित से बोला कि,

'तुम्हारे पास मोहिनी की कोई तो फोटो होगी? अगर है तो मुझे तो दिखाओ?'

'है नहीं, हमेशा अपने दिल से लगाकर रखता आया हूँ.' यह कहकर मोहित ने अपना बटुआ निकाला और उसमें से मोहिनी की तस्वीर निकालकर उसने रोनित को दी. तब रोनित ने वह फोटो देखी और बाद में उसने मोहिनी को देखा तो वह जैसे निराश हो गया. सचमुच वह फोटो मोहिनी के चेहरे से नहीं मिलती थी. रोनित ने चुपचाप वह फोटो मोहिनी को दी तो उसे देखकर मोहिनी जैसे चिल्ला-सी पड़ी. बोली,

'यह मैं ही हूँ. अब भी कोई संदेह है क्या?'

'क्या संदेह है और क्या नहीं? यह आप अपने बॉस रोनित साहब से ही पूछें तो बेहतर होगा. भले ही आपने मेरी शिनाख्त के तौर पर सारी बातें सच-सच बता दी हैं, मगर फिर भी उनके आधार पर मैं यह मानने के लिए तैयार नहीं हूँ कि, मेरी मोहिनी मरकर भी दोबारा वापस आ चुकी है.'

'?'- क्या हो चुका है तुम्हें? इतना क्यों सताते हो मुझे? सोच लो कि, मैं सात समुन्द्र नहीं बल्कि, सात आसमान पार करके तुम्हारे पास फिर से आई हूँ. अगर फिर भी तुमने मुझे नहीं अपनाया तो मैं यहाँ फिर-से मर भी नहीं सकूंगी. यूँ, ही तड़पती रहूंगी, सारी ज़िन्दगी भर?' आँखों में आंसू भरकर मोहिनी फिर एक बार मोहित के सीने से लगकर रो पड़ी.

'?'- उसे यूँ रोते हुए रोनित ने मोहिनी को संभाला. वह उसे मोहित से अलग करते हुए बोला कि,

'मोहिनी जी, आपकी यह समस्या अत्यधिक जटिल हो चुकी है. इसको समझने में और दूसरों को समझाने में वर्षों भी लग सकते हैं. हिम्मत से, संयम से और समझदारी से काम लीजिये. यूँ, बार-बार रोने से काम नहीं चल सकेगा. अभी मोहित को जाने दो. मैं उसे समझाने की कोशिश करूंगा.'

'?'- तब मोहिनी चुप हो गई तो रोनित ने मोहित से कहा कि, मोहित जी आप अभी जाइए. मैं इनसे बात करता हूँ. आप ड्राईवर के द्वारा कार वापस भिजवा देना.'

तब मोहित रोनित की कार लेकर चला गया. चला गया तो रोनित ने पहले तो मोहिनी को वहीं कुर्सी पर बैठाया और फिर खुद भी दूसरी कुर्सी लेकर उसी के पास बैठ गया. बड़ी देर तक दोनों चुप बने रहे. दोनों के बीच में काफी देर तक खामोशी किसी तीसरे वजूद के समान उपस्थित बनी रही.

तब थोड़ी देर के बाद रोनित ने बात आरम्भ की. वह बोला कि,

'मोहिनी जी, आपकी समस्या, आपकी कहानी और आपकी आपबीती अगर केवल और केवल इस संसार तक ही सीमित होती तो जरुर ही सुलझ जाती. मगर आपकी इस समस्या में उन आसमानी बातों का भी समावेश हो चुका है, जिसकी केवल आप ही आँखों देखी गवाह हैं. हम सब ही किसी-न-किसी ईश्वर, भगवान, खुदा और देवताओं की आस्था से जुडे हुए हैं. इंसान इस संसार में कैसे आता है और कैसे चला भी जाता है; हम सब इस बात को जानते और समझते भी हैं. सबसे बड़ी समस्या है कि, मनुष्य मरने के बाद कहाँ जाता है? आत्माएं होती हैं और वे भटकती भी हैं, लेकिन अपना जीवन इस धरती पर समाप्त करने के बाद, अपना दुनियाबी शरीर नष्ट होने के बाद ये भटकती हुई आत्माएं कौन से संसार में रहा करती हैं? क्या करा करती हैं? क्या मनुष्य के मरने के बाद भी कोई दोबारा जीवित होकर वापस आ सकता है? इस बात की गवाही केवल आप दे रही हैं, क्योंकि आप ही वापस आई हैं? दूसरे अर्थों में अगर कहा जाए तो आप अपने इस केस में खुद ही आरोपी हैं और खुद ही सबूत भी हैं. इसलिए मेरी समझ में नहीं आ पा रहा है कि, आपकी इस समस्या का कोई हल निकल भी पायेगा? अगर आप बुरा न मानें तो मैं एक सलाह दूँ आपको?'

'?'- मोहिनी ने एक संशय से रोनित को देखा तो वह आगे बोला कि,

'छोड़िये इस दुनियादारी को. भूल जाइए मोहित को. आप सुंदर हैं, समझदार है, नौकरी भी कर रही हैं, यह संसार बहुत बड़ा है. जिस ईश्वर ने आपको दोबारा इकरा हामिद के बदन का इस्तेमाल करके इस संसार में भेजा है, उसे जरुर मालुम होगा कि, दूसरे बदन के रूप में मोहित तो क्या आपके अपने घर के लोग भी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए आपका यही ईश्वर, आपको इस मोहित से भी अच्छा वर जरुर ही देगा. कम-से-कम मेरा तो यही विश्वास है.'

'?'- मोहिनी रोनित की इस बात पर केवल इतना ही बोली कि,

'ऐसा ही कुछ उस आसमानी 'शान्ति के राजा' जिसके महल की दीवारों पर लिखा हुआ था- 'मनुष्य का पुत्र'; ने भी मुझको इस संसार में दोबारा भेजने से पहले कहा था.'

'मैं जान सकता हूँ कि, उस राजा ने क्या कहा था?'

'यही कि, मैं तुमको फिर से भेज तो दूँ, लेकिन तुमको बाद में मुसीबतें बहुत उठानी होंगी.'

'और आप अपनी आँखों से देख भी रही हैं कि, किस प्रकार दुनियाबी मुसीबतों के साथ-साथ उनसे भी लड़ रही हैं, जिनके बारे में आप कभी सोच भी नहीं सकती थीं?'

'हां, ये तो है. उस राजा की सारी बातें सच थीं और सच हो भी रही हैं.'

'वैसे आप हताश और निराश न हों. मैं मोहित से फिर बात करूंगा, उसे समझाऊंगा. फिर अभी तो आपके घर, राजा के गाँव' भी तो जाना है. देखते हैं कि, आपके मां-बाप, भाई-बहन भी आपको यूँ दोबारा देखकर आपके साथ कैसा व्यवहार करते हैं?

यह सब बातें करने के बाद रोनित मोहित के पास से चला गया. रोनित के चले जाने के पश्चात मोहिनी अपने कमरे में आई और बिस्तर पर ओंधी गिरकर फूट-फूटकर रो पड़ी. रो पड़ी, इसलिए कि, क्या उसने सोचा था और क्या हो चुका था? क्या उम्मीदें लेकर वह मोहित से दोबारा मिलने पर लिये बैठी थी, मगर मोहित के एक ही अलगाव जैसे व्यवहार ने उसकी समस्त आशाओं पर पानी फेर दिया था. इस प्रकार कि, जितनी ऊंचाई पर बड़े ही अंह के साथ वह उड़ती फिर रही थी, उसे क्या मालुम था कि, वहां पर बैठने का कोई भी स्थान नहीं होता है. मनुष्य इतनी ऊंचाई से पंख कतर जाने के बाद केवल मीचे ही गिरता है. वह भी गिर पड़ी थी, अपनी सारी उम्मीदों के मिट जाने के बाद. भला होता कि, वह इस दुनिया में फिर से कभी वापस ही नहीं आती? कितना अच्छा होता कि, मोहित ने उसे इसी संसार में जब वह जीवित थी, तभी ठुकरा दिया होता? यह धोखा तो उसका पहले वाले से भी और अधिक कष्टकर, और भी अधिक मंहगा पड़ा है. अब इस अपने नये रूप में वह जीवित होकर भी ना तो इकरा ही रही है और ना ही मोहिनी. कैसे वह अपने रहे-बचे दिन, इस मायावी संसार में पूरे करेगी?

- क्रमश: