Nishbd ke Shabd - 10 in Hindi Adventure Stories by Sharovan books and stories PDF | नि:शब्द के शब्द - 10

Featured Books
  • ભાગવત રહસ્ય - 247

    ભાગવત રહસ્ય -૨૪૭   નંદ મહોત્સવ રોજ કરવો જોઈએ.મનથી ભાવના કરવા...

  • काली किताब - 7

    वरुण के हाथ काँप रहे थे, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह धीर...

  • શ્યામ રંગ...લગ્ન ભંગ....21

    ઢળતી સાંજમાં યાદોના ફૂલોથી એક સુંદર ગુલદસ્તાને બન્ને મિત્રો...

  • અભિષેક - ભાગ 9

    અભિષેક પ્રકરણ 9અભિષેક કારતક સુદ એકાદશીના દિવસે ઋષિકેશ અંકલ સ...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 82

    લવ યુ યાર પ્રકરણ-82લવ પોતાની બેગ લઈને ઉપર પોતાના બેડરૂમમાં ગ...

Categories
Share

नि:शब्द के शब्द - 10

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक /दसवां भाग


***

'नि:शब्द के शब्द'- 10

इस रोमांचित, अपराधिक और भटकती हुई रूहों या आत्माओं की कहानी में अब तक आपने पढ़ा है कि; मोहिनी का विवाह जब उसके प्रेमी मोहित से, जातिय समीकरण के विरोध के बावजूद भी मोहित के परिवार वालों ने करना मंजूर कर लिया तो मोहिनी के साथ-साथ उसके सारे परिवार में खुशियों की लहर दौड़ने लगी. मगर वास्तव में मोहित के परिवार वालों ने मोहिनी और उसके परिवार को धोखा दिया था. वे किसी भी कीमत पर मोहित का विवाह एक छोटी जाति की लड़की से नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने धोखे से मोहिनी की हत्या कर दी और उसे अंग्रेजों के कब्रिस्थान में एक सौ वर्ष पुरानी कब्र में दबा दिया.

अपनी उम्र से पहले मोहिनी की भटकती हुई आत्मा आकाश में 'आत्माओं के संसार' में पहुंची, मगर वह मोहित का दुःख बर्दाश्त नहीं कर सकी. वह भटकती हुई वापस संसार में आई और बदले की भावना से उसने मोहित के चाचा को मार डाला और साथ ही उसने मोहित को भी सब कुछ सच-सच बता दिया. बाद में उसने आसमान के राजा से याचना की कि, उसे वापस संसार में भेज दिया जाये. उसकी याचना सुनी गई और उसकी आत्मा को फिर से वापस एक मुस्लिम लड़की इकरा के शरीर में भेज दिया गया. इकरा को उसके पति हामिद ने उसको पीटते समय चक्की के पत्थर के पाट से उसका सिर टकरा-टकराकर मार डाला था. सो इस प्रकार इकरा का मृत शरीर मोहिनी की आत्मा पाकर फिर से जीवित हो गया.

मगर इकरा के पति ने उसे मोहिनी मानने से इनकार कर दिया. तब एक दिन मोहिनी ने अपनी सारी कहानी इकरा के पति हामिद को सुनाई तो वह उसे उसके माता-पिता के घर 'राजा का गाँव' इस शर्त पर ले जाने के लिए तैयार हुआ कि, अगर उसके परिवार वालों ने उसे मोहिनी मान कर विश्वास कर लिया तो व खुद ही उसके रास्ते से हट जाएगा. उसके बाद इस कहानी में क्या हुआ क्या मोहिनी अपने घर पर पहुंची? क्या वह मोहित से भी मिली? क्या उसके परिवार वालों ने उसे मोहिनी मानने के लिये विश्वास कर लिया? यह सब जानने के लिए, अब आगे पढ़िये इस कहानी का बे-हद रोमांचित अगला भाग-

'मैं इकरा हूँ? तेरा ताज़ा खून पीने आई हूँ.'

***

मैं इकरा हूँ?


तेरा ताज़ा खून पीने आई आई हूँ.'




इस्लामिक बस्ती 'पक्का तलावपुरा' के चौकीदार ने रात के बारह घंटे बजाए और उसके बाद वह अपनी भारी, आवाज़ में चिल्लाया,

'जागते रहो. बारह बज गये हैं.'

उसकी आवाज़ रात के अँधेरे का सीना चीरती हुई, पास ही बने रेलवे स्टेशन और उसकी पटरियों पर फिसलती हुई कहीं विलीन हो गई. तभी रेलवे स्टेशन पर वहां के कर्मचारी ने रेलवे की ही पटरी के एक टुकड़े पर मारते हुए तीन घंटे बजाए और वह अंदर चला गया. यह संकेत और सूचना थी कि, कोई मालगाड़ी पन्द्रह मिनट के अंतर पर ही इस रेलवे स्टेशन की पटरियों का सीना रौंदती हुई निकल जायेगी. फिर बाद में हुआ भी यही. आनेवाली रेलवे की मालगाड़ी अपनी दूर से ही बत्ती का प्रकाश और सायरन बजाती हुई आई और धड़-धड़ करती हुई निकल गई. चौकीदार की आवाज़ और रेलवे स्टेशन पर आई हुई मालगाड़ी के शोर से अपने अकेले कमरे में सोती हुई मोहिनी की आँख भी खुल गई. लेटे-लेटे ही उसने कमरे में जलती हुई लालटेन की मद्दिम रोशनी में अंधेरी रात का जायजा लिया. रात के बारह बजकर पैंतालीस मिनट हो चुके थे. हामिद की झोपड़ीनुमा मकान में केवल एक कमरा, एक छोटा-सा आंगन और उसी में किचिन तथा बाथरूम बना दिए गये थे. हामिद किचिन के अंदर अपनी एक छोटी सी चारपाई डालकर सो रहा था और उसके पिता वहीं आंगन के एक कोने में सिमटे हुए अपनी चारपाई पर बेसुध पड़े सो चुके थे.

मोहिनी अभी भी जाग रही थी और जागते हुए वह आनेवाली सुबह में अपने घर जाने की तमाम योजनायें बना चुकी थी. उन योजनाओं और कल्पनाओं में, जैसे कि, जब उसके पारिवारिक लोग उसे यूँ अचानक से देखेगें तो सब कितने खुश होंगे. मां तो उसको गले लगाकर रो पड़ेगी. बहन और भाई भी उससे चिपट जायेंगे- और मोहित? वह तो उसे जीवित पाकर प्रसन्नता में कहीं पागल ही न हो जाए? सो मोहिनी, इसी तरह से अपने सपनों के संसार में खो चुकी थी कि तभी उसे हामिद की डरावनी और दिल दहला देनेवाली आवाज सुनाई दी. वह आवाज़ उसके गले से डरी, सहमी और बड़ी भयानक-सी थी. उससे लग रहा था कि, जैसे कोई उसका गला घोंट रहा हो और वह कुछ भी करने में असमर्थ हो चुका है. मानो कोई उसकी जान लेने पर अमादा हो चुका हो;

'छोड़ दे मुझे. छोडती क्यों नहीं है? क्या मार ही डालेगी मुझे?' हामिद चिल्लाया, तभी हामिद के मुख से किसी स्त्री की आवाज़ सुनाई दी,

'हां, मार डालूँगी तुझे?

'कौन है तू?'

'इतनी जल्दी भूल गया तू? मैं इकरा हूँ. तेरी मौत. तेरा ताज़ा खून पीने आई हूँ.'

'?'- बेचारे हामिद की मारे भय के घिग्गी बंध गई.

'ई...ई...यी.. . हाय रे. . .कोई है, जो मुझे बचाए ...?'

'क्या समझ लिया था तूने अपने आपको? मुझे चक्की पर मेरा सिर पटक-पटक कर मारने के बाद क्या तुझे मैं चैन से रहने दूंगी? अब भुगत और देख कि, तू भी ठीक वैसे ही डकारें ले-लेकर, तड़प- तड़प कर मरेगा जैसे तूने मेरी जान ली थी.'

'मुझे मॉफ कर दे. मुझसे जो कुछ हुआ था, वह सब गुस्से में हो गया था. मैं अपने होश में नहीं था. हामिद की आवाज़ फिर से घिघिराती हुई सुनाई दी.

'लेकिन, मैं होश में हूँ. तुझे तड़पा-तड़पा कर तेरा दम खींच लूंगी मैं.' हामिद के मुख से किसी स्त्री की आवाज़ फिर से सुनाई दी तो मोहिनी अपनी चारपाई पर उठकर बैठ गई और चुपचाप बाहर से आती हुई भयंकर और डरावनी आवाजों को सुनने लगी. ऐसा लगता था कि, मारने वाला और बचने वाला; दोनों ही किसी एक शरीर में बास किये हुए हों.

किसी स्त्री और आदमी के मध्य होती हुई जीवन-मृत्यु की लड़ाई को होता हुआ सुनकर मोहिनी को समझते देर नहीं लगी कि, इकरा की भटकती हुई आत्मा ने आज हामिद को पकड़ लिया है. जरुर वह उसके बदन पर चढ़ बैठी है.

इसी मध्य हामिद के पिता की भी आँख खुल गई. उन्होंने जब हामिद को अपने हाथ-पैर पटकते हुए, जमीन पर तड़पते और दम तोड़ते हुए देखा तो वे चारपाई से तुरंत उठकर उसके नज़दीक आये और हामिद को उठाते हुए घबराकर बोले,

'हामिद ! बेटा हामिद? क्या हुआ तुझे?'

हामिद के मुंह से खून निकल रहा था और वह अपनी अंतिम साँसे ले रहा था.

उसकी यह दशा देखकर उसके पिता तुरंत घड़े से पानी लेकर आये और जैसे ही उन्होंने हामिद के मुंह में पानी डालना चाहा कि तभी किसी ने जैसे उनके पानी के गिलास में लात मार दी हो. पानी का गिलास, दूर छिटक कर दीवार से जा टकराया और फिर अचानक ही हामिद के पिता के मुंह से उसी स्त्री इकरा की आवाज़ जैसे क्रोध में सुनाई दी,

'चल हट बुड्डे. अब तेरी बारी है. हामिद के साथ तू भी जहन्नम में जाएगा. तूने ही तो मेरी अस्मत पर हाथ डाला था. अब मैं तुझे भी नहीं छोडूंगी.'

'?'- दूसरे ही पल हामिद के बूढ़े पिता का भी बदन उसी के पास निर्जीव पड़ा उनके मुख से बाल्टी भरा खून उगल रहा था था.

इकरा की भटकी हुई रूह ने अपना बदला ले लिया था. दोनों बाप-बेटा का वह जैसे खून पी चुकी थी. घर में अब मातम के स्थान पर भरपूर सन्नाटा पसर चुका था. किचिन में पकाने के बर्तन तथा अन्य रसोई का सामान बिखरा पड़ा था. रात अब और गहरी हो चुकी थी. आकाश में रात के सितारे टिमटिमा रहे थे अथवा मुस्करा रहे थे? घर में पड़ी हुई दो लाशों को देखकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता था.

बेचारी, मोहिनी ने डरते, कांपते हुए अपने कमरे की सांकल खोली और जैसे ही वह बाहर आई तो हामिद के निजीव शरीर से टकराकर उसी के ऊपर गिर पड़ी. गिर पड़ी तो भय के मारे उसकी भी जैसे चीख निकल गई. मगर पक्का तलावपुरा बस्ती का जैसे हरेक जन गहरी नींदों में डूब चुका था. हामिद के घर में अब तक क्या से क्या हो चुका था, शायद कोई भी नहीं जानता था. एक प्रकार से हामिद का पूरा खानदान ही इस पापी दुनिया से हमेशा के लिए कूच कर चुका था. तभी बस्ती के चौकीदार ने रात के दो घंटे बजाए और फिर चिल्लाते हुए बोला कि,

'जागते रहो...जागते रहो.'

मोहिनी ने हामिद और उसके पिता की लाशें देखीं तो सारा माजरा वह देखते ही समझ गई. इकरा की रूह ने दोनों को जान से मार डाला था. एक खुद उसकी जान लेने के कारण और दूसरे को उसकी इज्ज़त पर हमला करने के दोष में. एक स्त्री कभी भी दो आदमियों को निहत्थे नहीं मार सकती है, मगर एक रूह या आत्मा, यदि अपनी पर आ गई तो सैकड़ों इंसानों की ज़िन्दगी पलभर में ही ले सकती है. शायद किसी ने सच ही कहा है कि, मरे हुए इंसान की आत्मा की ताकत एक जीवित मनुष्य से ह्जारों बार कहीं अधिक होती है.

मोहिनी जब सब कुछ समझ गई तो वह यह भी जान गई कि, जब सुबह पुलिस आयेगी तो वह उसी पर इन दोनों, बाप-बेटे के खून के कत्ल का इलज़ाम लगा देगी और फिर उसे हमेशा के लिए जेल में ठूंस देगी. इसलिए उसका यहाँ से चुपचाप निकलकर भाग जाना बेहतर होगा. सो उसने जल्दी से हामिद के रखे हुए, जितने भी पैसे एक डिब्बे में रखे हुए थे, उन्हें अपने हाथ में लिए. थोड़ा बहुत जरूरत का सामान एक पोटली में बांधा और फिर घर के पीछे वाले द्वार से निकलकर सीधी भागती हुई रेलवे स्टेशन जा पहुंची. और जो भी ट्रेन पहले आई, उसी में बैठ गई.

दूसरी सुबह जब दिन निकला तो हामिद और उसके पिता की निर्दयता से की गई हत्या की खबर समस्त बस्ती में जंगल में लगी आग के समान हर घर में फैल गई. तुरंत ही पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस का पूरा समूह आया. जांच-पड़ताल की गई. चूँकि, इकरा दफनाने से पूर्व ही जीवित पाई गई थी, इसलिए सारे मुहल्ले से लेकर पुलिस तक को उन दोनों की हत्या का संदेह हामिद की बीबी इकरा पर ही गया था. इस प्रकार से इकरा के नाम में अपने पति और ससुर की हत्या का केस दायर किया गया और उसकी खोज जारी कर दी गई. हामिद और उसके पिता की लाशें, पंचनामित करके पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गईं.

दूसरी तरफ मोहिनी जिस ट्रेन में जाकर बैठ गई थी, वह उसी में बैठे-बैठे गहरी नींद सो गई. अपने यात्रियों को उनके गन्तव्य स्थान तक ले जाती हुई ट्रेन, सारी रात भागती रही. सो ट्रेन भागती रही और मोहिनी बहरे भुत के समान बेसुध सोती रही. ट्रेन कुछेक स्टेशनों पर रुकी और फिर से चल पड़ी. मगर मोहिनी इतने दिनों से थकी हुई गहरी नींद सो रही थी. उसको अकेला और बे-सहारा समझकर एक अन्य अधेड़ उम्र की स्त्री उसकी एक-एक हरकत को बड़ी गम्भीरता के साथ निहार रही थी. वह मोहिनी की दशा को देखकर इतना तो समझ चुकी थी कि, यह लड़की अवश्य ही घर से भागकर आई है. सो जब ट्रेन अपने अंतिम स्टेशन पर जाकर पूर्णत: रुक कर खड़ी हो गई तो उस अधेड़ उम्र की स्त्री ने मोहिनी के सिर पर हाथ रखा तो वह हड़-बड़ाकर कर घबराती हुई उठकर बैठ गई और इधर-उधर देखने लगी.

'बेटी ! कहाँ जाना था तुम्हें? गाड़ी तो आख़िरी स्टेशन पर आकर खड़ी हो चुकी है. गाड़ी अब यहाँ से आगे नहीं जायेगी.'

'?'- मोहिनी ने उस स्त्री को देखा तो वह आश्चर्य से उसका चेहरा ताकने लगी.

'घबराओ नहीं. मुझे अपनी खाला या अम्मी ही समझो.'

'?'- मोहिनी रोने लगी. उसकी समझ में नहीं आया कि वह उस स्त्री को क्या जबाब दे?

'मैं तुम्हारे हालात से वाकिफ तो नहीं हूँ, लेकिन तुम्हारा दर्द जरुर समझ रही हूँ.'

'?'- मोहिनी फिर भी कुछ समझ नहीं सकी.

तभी उस स्त्री ने आगे कहा कि,

'चलो, पहले गाड़ी से नीचे उतरो. केन्टीन में बैठकर पहले कुछ खा-पी लो. जिस्म में ताकत आयेगी तो बहुत कुछ कर भी लोगी. बाद में मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊँगी.'

'मेरा कोई भी घर नहीं है.'

'इसका मतलब आदमी से लड़-झगड़कर आई हो?'

'?'- मोहिनी क्या कहती. चुपचाप उसने हां में अपना सिर हिला दिया.

'क्या नाम है तुम्हारा?'

'मोहिनी.'

'इतना प्यारा नाम और कितनी प्यारी शक्ल है. फिर भी तेरा आदमी तेरी कद्र नहीं कर सका. क्या किया जाए, मर्दों की फितरत ही होती है ऐसी. वे औरत के बदन से मतलब रखते हैं और किसी बात से नहीं.'

'?'- मोहिनी चुपचाप उसकी बातें सुनती रही.

'खैर चलो. तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. मैं नसीमा हूँ. मेरी और भी बेटियाँ हैं जो सब तुम्हारी ही तरह हैं. हम सब मिलकर एक खानदान के तौर पर रहते हैं. चलो चलें.'

मोहिनी उसके साथ-साथ चल दी. वह औरत स्टेशन के बाहर एक ढाबे जैसे बने होटल के अंदर घुस गई. उसके अंदर घुसते ही जितने लोग वहां बैठे थे, वे सब उन दोनों को खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगे थे. तब उस औरत ने अपने साथ लाये हुए बैग में से एक काले रंग का बुर्का निकाला और उसे मोहिनी को देते हुए बोला कि,

'लो, बेटी इसे पहन लो. नहीं तो इस दुनिया के गंदे मर्द तुम्हें जीने नहीं देंगे.'

'?'- बेचारी दुखिया, मोहिनी क्या करती. उसने बगैर कोई आना-कानी किये हुए बुर्का ओढ़ लिया.

करीब आधा घंटे तक नसीमा के साथ मोहिनी ने सुबह का नाश्ता किया. नाश्ते में जब मोहिनी ने अंडे का आमलेट खाने के लिए मना किया तो उसके लिए परांठे मंगवा दिए गये. तब बाद में खा-पीकर और तरो-ताज़ा होकर नसीमा मोहिनी के साथ होटल के बाहर आई और एक तांगेवाले से करीब चार-पांच मिनट तक बात करने बाद वह उसमें जाने के लिए तैयार हुई. उसके बैठते हुए वह मोहिनी से बोली,

'मैं तुम्हें अपने घर 'मदार गेट' ले जा रही हूँ. वहां कुछ दिन आराम करना और अपनी दास्ताँ भी मुझे बताना. तब मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचवा दूंगी.'

उसके बाद तांगा लगभग आधे घंटे तक सड़क पर भागता रहा. फिर उसके बाद शहर आया और बाद में अंदर घनी, टेड़ी-मेंड़ी, घुमावदार कहीं गन्दी, कहीं साफ़ और कहीं बहुत आबादी से भरी हुई गलियों से होता हुआ तांगा एक भीड़-से भरे हुए बाज़ार जैसे इलाके में जाकर एक हवेलीनुमा मकान जो मुगलकालीन कीकड़िया, छोटी-छोटी ईंटों से बना हुआ था, के सामने जाकर खड़ा हो गया. उस मकान की बगल से एक ऊंचा और संकरा जीना ऊपर की तरफ जा रहा था तथा सामने दरवाज़े पर गेहूं के जूट के बोरे का बना हुआ टाट लटक रहा था. इतना ही नहीं उस गली के अन्य दूसरे मकानों की शोभा भी कुछ इसी तरह की नज़र आती थी. अन्य मकानों से तबलों और ढोलक के संगीत के साथ जैसे नृत्यकला का रियाज़ होता प्रतीत होता था. कुल मिलाकर उस समस्त गली में हसीन जिस्मों की रौनक दिखती थी और उन हसीनों के प्यासे पंछी गली के चारों तरफ कोने-कोने में उड़ते-बैठे हुए नज़र आते थे.

नसीमा ने अपना सामान उठाया. टाँगे वाले को सौ-सौ के कई नॉट थमाए और फिर वह ऊपर जीने पर चढ़ने लगी. अंदर वह जैसे ही पहुँची तो उसकी कई-एक जवान लड़कियों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. सभी अन्य लड़कियां उसे तो कम मगर मोहिनी को अधिक गौर से देख रहीं थी. उन लड़कियों का कोतुहूल देख कर नसीमा ने उनसे कहा कि,

'घूरो मत. यह मोहिनी है. आज से यहीं रहेगी. जाओ इसे इसका कमरा दिखा दो.'

तब वे लड़कियां मोहिनी को उसके कमरे में ले गईं. मोहिनी चुपचाप वहां पड़े आलीशान पलंग पर बैठ गई. उसके बैठते ही एक लड़की ने उसे ठंडा पानी का गिलास लाकर दिया तो मोहिनी ने वह गिलास हाथ में ले लिया.

उधर नसीमा, सफर से आने के बाद अपनी बड़ी बहन जो सबकी बड़ी मां के समान थी से मिली तो बड़ी मां ने इशारों में ही अपना हाथ हवा में लहराते हुए उससे पूछा कि,

'कौन है?'

'पता नहीं. अपने आदमी के घर से लड़-झगड़कर आई है. बहुत परेशान लगती है.' नसीमा बोली.

'किसी बड़े घर, नेता, आदि की तो नहीं है. नहीं तो लेने-के-देने पड़ जाएँ?'

'कहा न. अभी कुछ भी नहीं पूछा है उससे. पता लगाऊँगी.'

'तो, जल्दी पता लगा.' यह कहकर बड़ी मां अंदर चली गई.

मोहिनी चुपचाप बैठी हुई थी. नसीमा की लड़कियों ने उसके लिए चाय लाकर दी. साथ ही कुछेक कुकीज़ और नमकीन भी. चाय पीकर और नमकीन आदि खाने के पश्चात मोहिनी बिस्तर पर लेट गई तो फिर से सो गई.

फिर जब उसकी आँख खुली तो काफी रात हो चुकी थी. वह फिर एक बार कई घंटों तक सोती रही थी. उसे संगीत के साथ तबले की धनक पर किसी के नृत्य करने और घुंघरुओं की आवाजें सुनाई दे रही थी. इस संगीत के साथ किसी स्त्री के गाने के बोल, जो गायिका शोभा गुरखू के गीत के बोल थे, स्पष्ट सुनाई दे रहे थे;

'सैंया रूठ गये. मैं मनाती रही, सैयां रूठ गये . . .'

मोहिनी को यह सब देख और सुनकर समझते देर नहीं लगी- वह एक पिंजड़े से छूटकर किसी दूसरे नये जाल में फंस चुकी थी. सोचते ही उसके बदन का रोंयाँ-रोंयाँ तक काँप गया.

-क्रमश: