Nishbd ke Shabd - 12 in Hindi Adventure Stories by Sharovan books and stories PDF | नि:शब्द के शब्द - 12

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नि:शब्द के शब्द - 12

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक / बारहवां भाग

रोनित, मोहित और मोहिनी


अस्पताल का वातावरण.

कलवरी मेडीकल होस्पीटल के एक प्राइवेट कमरे में मोहिनी, घायल अवस्था में लेटी हुई छत को जैसे बे-मकसद ही निहार रही थी. अस्पताल के इस खामोश और शांत कमरे में मोहिनी के अतिरिक्त यदि कोई था तो वह थी स्वास्थ्य मशीनों की विभिन्न प्रकार की आवाजों के साथ उन पर नीले रंग के चमचमाते हुए डिजीटल नंबर और अजीब-सी ध्वनियाँ. उसके बदन की पीठ, सीधे हाथ और दोनों पैरों में जो चोटें आई थीं उसके हिसाब से उन्हें ठीक होने में कम-से-कम पन्द्रह से बीस दिन तो लगना बहुत ही स्वाभाविक थे. जिस युवक की कार से उसकी दुर्घटना हुई थी, उसका नाम रोनित दातान था. वह अपनी एक प्राइवेट फैक्ट्री का मालिक था और उसकी फैक्ट्री में स्त्रियों के वस्त्र बनाये जाते थे. इतना ही नहीं, रोनित स्वभाव से एक छोटा-मोटा लेखक भी था और उसकी यदाकदा कुछेक रचनाएँ पत्रिकाओं आदि में प्रकाशित भी होती रहती थीं.

वह अभी कुछ देर पूर्व ही मोहिनी से मिलकर अपनी फैक्ट्री के कार्यालय चला गया था. मोहिनी, रोनित की कार से किन हालात में टकरा गई थी. वह किस प्रकार चकलाघर से बचकर भाग आई थी. उसके जीवन की क्या व्यथा थी और उसके साथ क्या-से-क्या हो रहा था? किन परिस्थितियों में उसका विवाह मोहित से होते-होते रह गया था. क्यों उसकी निर्मम हत्या करके उसे ईसाई गोरों के कब्रिस्थान में दफना दिया गया था? किस प्रकार से वह आत्माओं के संसार में रही थी और समय-असमय वह किस तरह से मोहित से भी मिलती रही थी. मोहित के घरवाले ही उसकी जान के दुश्मन हो गये थे. . .और वह किस प्रकार से आत्माओं के संसार से इकरा के शरीर में पहुंचाई गई थी? अपनी यह समस्त व्यथा मोहिनी ने रोनित को बता दी थी. रोनित ने उसकी कुछ बातों पर विश्वास किया था और बहुत-सी वे बातें जिनका सम्बन्ध उसका मरने के बाद आत्माओं के संसार, मनुष्य के पुत्र और उसका शान्ति का राज्य आदि से था; ऐसी बातों को उसने उसकी किसी मानसिक तकलीफ जानकर, उसका सम्पूर्ण मेडीकल मुआयना किसी मानसिक रोगों के डॉक्टर से करवाने को कह दिया था.

वैसे भी मोहिनी अब तक इस बात से बहुत परेशान और हताश हो चुकी थी कि, संसार के अधिकाँश लोग उसकी आत्मिक दुनियां की किसी भी कहानी पर विश्वास नहीं कर पाते थे. ज्यादातर लोग उसकी इस बात को उसकी मानसिक बीमारी बताते थे अथवा उसके ऊपर किसी अन्य दुष्ट आत्मा, प्रेत, पिशाच और किसी अतिवाहिकीय रूप का अधिकार बताकर संतुष्ट हो जाते थे.

रोनित, चूँकि अपने शहर का एक प्रतिष्ठित और सम्मानीय युवक था. शहर के जाने-माने और पुलिस विभाग के लोग उसकी इज्ज़त तथा सम्मान किया करते थे. इसलिए उसने मोहिनी की बात का सच पता लगाने के लिए 'मदार गेट' की गन्दी बस्ती में जो घटना मोहिनी के साथ हो चुकी थी और उस अनजान आदमी का कत्ल इकरा की आत्मा के द्वारा हो चुका था; इन सारी बातों की एक खुफिया जानकारी ली तो मोहिनी के द्वारा समस्त बातें सच निकलीं. रोनित ने खुफिया जानकारी इसलिए करवाई थी ताकि, उस अनजान आदमी की हत्या का इलज़ाम मोहिनी पर न लग सके. सो जब यह सारी बातें और मोहिनी के साथ हुई अप्रत्याशित घटना सही निकली तो रोनित के भी कान खड़े हो गये. 'लड़की सच बोलती है,' यह जानकर भी रोनित उसके आत्माओं के संसार वाली बातों को भी सच मानने के लिए अपने मन से तैयार न हो सका था. मगर स्वभाव से एक लेखक होने के नाते मोहिनी की कहानी अत्यधिक रोमांचित और रहस्यमय थी; केवल यही एक बात रोनित के लिए मोहिनी में आकर्षण का कारण बन चुकी थी. वह सोच बैठा था कि, समय मिलते ही वह मोहिनी की इस रोमांच और रहस्य से भरी कहानी पर जल्दी ही पूरा उपन्यास लिखेगा. यूँ, भी लेखक जैसे लोग सदा ही किसी नी 'थीम' नई घटना और नई पृष्ठभूमि की तलाश में सदैव ही रहा करते हैं.

इस प्रकार से मोहिनी का, हामिद का घर छोड़ने के बाद जहां कोई भी ठिकाना और सहारा नहीं बचा था, वहीं उसकी किस्मत ने उसे जब तक वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाती है, तब तक का सहारा और ठिकाना दे दिया था. फिर रोनित ने भी उसे कहीं भी न जाने के लिए कह दिया था.

तब कई दिनों के बाद जब एक दिन रोनित अस्पताल मोहिनी को देखने आया तो उसने एक अच्छी खबर देकर मोहिनी को 'सरप्राइज़' देना चाह. वह बोला कि,

'मोहिनी जी, आपके लिए एक बहुत ही शुभ और अच्छी सूचना है.'

'?'- मोहिनी ने आश्चर्य से रोनित की तरफ देखा तो वह बोला कि,

'कल आपको अस्पताल से छुट्टी मिल जायेगी.'

'?'- मोहिनी ने सुना तो वह शीघ्र ही उदास हो गई.

'लगता है कि, आपको मेरी बात सुनकर कोई ज्यादा खुशी नहीं हुई है?'

'नहीं, यह बात बिलकुल भी नहीं है. बीमारी से ठीक होने पर, अस्पताल जैसी जगह से बाहर निकलने की खबर सुनकर किस मरीज़ को खुशी नहीं होगी?'

'तो फिर, आपकी यूँ अचानक से आई हुई उदासी और ये लटके हुए चेहरे का अर्थ. . .?'

'सोचती हूँ कि, कल तक दोबारा जीवित होकर जिस आदमी की बीबी बनकर उसके घर आई थी, वहां कोई ठिकाना तो था. वहां से निकली तो चकलाघर भेज दे गई थी. उस चकलाघर में भी मेरे ऊपर छत तो थी ही.चकलाघर से जान बचाकर भागी तो यहाँ अस्पताल में हूँ. लेकिन, यहाँ के बाद अब कहाँ जाऊंगी, किस-किस से अपनी जान और आबरू बचाती फिरुंगी?'

'मुझे मालुम था कि, आप यही सब कहेंगी. लेकिन, मैंने इस समस्या का भी पहले ही से इंतजाम कर लिया है?'

'?'- मोहिनी ने रोनित की तरफ देखा तो उसने कहा कि,

'मेरी फैक्ट्री में कई असिस्टेंट की जगाहें रिक्त हैं. आप चाहें तो उनमें से किसी एक स्थान पर आप नौकरी कर सकती हैं. बदले में आपको इस काम के लिए रहने को स्थान, और तनख्वाह तो मिलेगी ही, साथ में आने-जाने के लिए एक स्कूटी भी मेरी तरफ से आपको दी जायेगी.'

'सच !' मोहिनी मुस्कराते हुए बोली तो रोनित भी बोला,

'सौ फीसदी सच.'

'?'- मोहिनी खामोश हो गई. वह सोचने लगी कि, इतने दिनों से अस्पताल में पड़े हुए वह जो 'शान्ति के राज्य' के राजा, 'मनुष्य के पुत्र' से मन-ही-मन अपने भावी जीवन की सुरक्षा और ठिकाने को लेकर जो याचना कर रही थी, कहीं यह सब उसी का तो चमत्कार नहीं है?

'अब क्या सोचने लगीं?' रोनित ने उसे ख्यालों और विचारों में उलझा पाया तो कह दिया.

'सोच रही थी कि, आप कितने अधिक दयावान हैं?'

'नहीं, मैं कुछ भी नहीं हूँ. यह सब ऊपर वाले और इस धरती, आकाश, वनस्पति तथा दुनिया बनाने वाली उस शक्ति का काम और दया है जिसे संसार वाले ईश्वर, परमेश्वर, अल्लाह, भगवान और ईसा के नाम से बुलाते हैं. अब इनमें से असली कौन है? यह तो ऊपरवाला ही बेहतर जानता है.'

'आप बिलकुल सच कहते हैं. मैंने इस सच्चाई को अपनी आँखों से देखा है, लेकिन कोई मुझ पर विश्वास ही नहीं करता है. सभी लोग मुझ पर ही दोष लगाते हैं और कहते हैं कि, मुझ पर किसी प्रेतात्मा, जिन्न, दुष्ट आत्मा, पिशाच और भटकी हुई रूहों का प्रकोप है?'

'लोगों को जो कहना है, उन्हें कहने दीजिये. आप बिलकुल ठीक हैं. आपके मानसिक रोग के डॉक्टर की रिपोर्ट में भी आप बिलकुल सामान्य स्त्री हैं.'

'?'- मोहिनी ने इस खुशी में अपनी आँखें बंद कर लीं और मन ही मन 'मनुष्य के पुत्र' को धन्यवाद देने लगी.

अरे हां. एक बात और है. . .'

'वह क्या?'

'आपकी जिस लड़के से शादी होनेवाली थी, उसका नाम क्या मोहित था?'

'हां?'

'एक लड़का मोहित नाम का मेरी फैक्ट्री में भी है और उसका बीस प्रतिशत का 'शेयर' भी है. वह जब भी 'कारपोरेट' की 'मीटिंग्स' वगैरह होती हैं, यहाँ आता है. अब जब वह अगली 'मीटिंग' में आयेगा तो मैं उससे आपका ज़िक्र जरुर करूंगा. हो सकता है कि, कहीं वह आप वाला मोहित न हो?"

'?'- मोहित की आँखों में अचानक ही एक चमक आ गई.

'अच्छा, अब मैं चलता हूँ. कल गाडी आपको लेने आयेगी और फिर वह आपको आपके काम और रहने के स्थान आदि के बारे में न केवल बतायेगी बल्कि, आपको वहां तक छोड़ भी आयेगी. जब आप सामान्य हो जायेंगी, तभी मैं आपको, आपके गाँव के घर भी ले चलूँगा और आपके मोहित से भी मिलवा दूंगा.'

इतना सब कहकर रोनित कमरे से बाहर निकल गया.

'?'- मोहिनी काफी देर तक उसके वापस लौटने के पगों की आवाजें सुनती रही. सुनती रही और सोचती रही कि, इस संसार में जहां एक ओर दुष्ट और गंदे लोग हैं, वहीं दूसरी तरफ किसकदर इंसानियत से भरे लोग भी हैं; यह उसने अपनी आँखों से देख भी लिया है.

* * *

समय का पंछी अपनी ही गति और वेग के साथ उड़ता रहा. मोहिनी, रोनित की फैक्ट्री में बड़े ही निश्चिन्त रूप से अपना कार्य करती रही. वहां का काम और काम करने का तरीका भी उसने बहुत शीघ्र ही सीख और अपना लिया. हरेक काम की बारीकी, तकनीकी और काम के महत्व को समझ भी लिया. इसीलिये, फैक्ट्री क्या, उसके कार्यालय के समस्त लोग भी उसकी सादगी और स्वभाव को पसंद करने लगे थे. इसलिए वह अपने थोड़े से समय में ही उन सबके मध्य सुप्रसिद्ध भी हो गई.

फिर भी इतना सब होने के पश्चात भी कोई नहीं जानता था कि, उसका पैत्रिक गाँव, कस्बा या शहर कौन सा है. वह किस स्थान की रहनेवाली है? उसके मन-बाप, भाई-बहन कहाँ हैं? उसके इस दुनिया में दोबारा आने या फिर यूँ कहिये कि, पुन: जन्म लेने की जो कहानी जुड़ी हुई थी, उसको किसी के भी साथ बांटने के लिए रोनित ने उसे स्पष्ट मना कर रखा था. क्योंकि, रोनित खुद भी जानता था कि, उसकी इस प्रकार की कहानी को सुनकर कोई भी विश्वास नहीं करेगा. जो भी उसकी कहानी को सुनेगा सब ही उसे मानसिक रोगी अथवा पागल की ही संज्ञा देंगे. इसलिए मोहिनी कौन थी? कहाँ से आई थी? किस प्रकार उसे संसार में मरने के पश्चात दोबारा भेजा गया था. इस बात को केवल मोहिनी ही जानती थी. इसके अलावा रोनित अगर जानता भी था तो विश्वास नहीं करता था.

अब तक रोनित ने मोहिनी के बारे में जितना भी कुछ पता लगाया था, वह सबकुछ अक्षरत: सच था. रोनित ने पता लगवाकर जान लिया था कि, मोहिनी का विवाह मोहित नाम के किसी बड़ी जाति के लड़के से होना तय हो गया था. मगर विवाह से पूर्व ही उसकी हत्या हो जाती है. मोहित को भी जेल होती है. मगर सबूतों आदि के अभाव में केस समाप्त हो चुका था और मोहित अपना गाँव छोड़कर रोनित के ही शहर में किसी के साथ कोई व्यापार करने लगा था. इस प्रकार से मोहित के द्वारा बताई गई समस्त बातों की सच्चाई के आधार पर रोनित भी अब मोहिनी पर विश्वास करने लगा था. वह जान गया था कि, मोहिनी की बातों में सच्चाई है और उसे कोई भी मानसिक बीमारी आदि नहीं है.

सो, मोहिनी के दिन इसी प्रकार से आस और उम्मीद में व्यतीत हो रहे थे. वह सोचती थी कि, एक-न-एक दिन जब भी वह अपने परिवार से मिलेगी तो सब कुछ सुगठित हो जाएगा. उसे देखकर उसके परिवार वाले विश्वास कर लेंगे. मोहित फिर एक बार उसको अपना लेगा.

रोजाना दिन निकलता. सूर्य उदय होता. दिन भर वह धरती को अपना चक्कर काटते हुए देखता रहता, फिर संध्या को थक-हारकर छिप जाता. रोनित तो अक्सर ही उससे कार्यालय में मिल जाता था. वह उसका हालचाल पूछता और फिर कार्यालय का एक चक्कर लगाकर चला भी जाता था.

तब इन्हीं दिनों की धूप-छाँव में एक दिन मोहिनी अपने कमरे के बाहर बैठी हुई कोई पुस्तक पढ़ रही थी. सुबह के कोई नौ बज रहे होंगे. रविवार का दिन था और मोहिनी का अवकाश भी था. फैक्ट्री बंद थी. आकाश में सूर्य की रश्मियों में अब गर्मी झलकने लगी थी. तभी अचानक से उसके कमरे के सामने ही बनी हुई पार्किंग में एक कार आकर रुकी. महरून रंग की. मोहिनी ने तुरंत ही उस कार को पहचान लिया. इसी कार से तो उसकी कई महीनों पहले दुर्घटना हुई थी. यह कर उसके बॉस रोनित की थी. कार को देखते ही मोहिनी अपने स्थान से तुरंत उठकर खड़ी हो गई. वह मैक्सी पहने हुए थे. तुरंत ही, शीघ्रता के साथ उसने पहले अपने लम्बे बालों को हाथ से संवारा, अस्त-व्यस्त मैक्सी को चारों तरफ से ठीक किया. हांलाकि, वह अपने बॉस के यूँ अचानक से आगमन के लिए तैयार नहीं थी. फिर भी वह काफी कुछ संवर गई थी.

तभी उसकी आशा के अनकूल रोनित किसी युवक के साथ बाहर निकला. रोनित को तो उसने देखते ही पहचान लिया मगर दूसरे किसी लम्बे, छबीले, आकर्षक व्यक्तित्व के युवक को वह बड़ी देर तक देखती ही रह गई. इतनी-सी देर में वह युवक और रोनित उसके सामने आकर खड़े हो चुके थे. औपचारिक्ता के नाते मोहिनी ने पहले तो अपने बॉस को नमस्ते की और उसके बाद वह उसके साथ आये हुए युवक को बड़े ही ध्यान के साथ, गम्भीर होकर एक टक देखती ही रह गई. फिर जब उससे नहीं रहा गया तो वह अपनी आँखों में ढेर सारे आंसुओं की बरसात लिए हुए उस युवक के सीने से लगकर फूट-फूटकर रो पड़ी और सिसकियों के मध्य कहने लगी कि,

'कहाँ जाकर खो गये थे, मेरे मोहित? तुम क्या जानो कि, मैं कहाँ-कहाँ मारी-मारी भटकती फिर रही थी?'

'?'- मोहित भी आश्चर्य के साथ कभी अपने से चिपकी मोहिनी तो कभी अपने साथ में खड़े रोनित को देखता था और घोर आश्चर्य के साथ जैसे किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुका था.

मोहिनी के दर्द भरे आंसुओं और उसके मुख से निकलने वाली क्षोभ और विछोह की सिसकियों के सहारे उन तीनों के मध्य का समस्त वातावरण अब बोझिल हो चुका था.

-क्रमश: