Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 12 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 12

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 12

जीवन सूत्र 12

आपके भीतर ही है चेतना,ऊर्जा और दिव्य प्रकाश

भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन में चर्चा जारी है।

जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसको मरा समझता है वे दोनों ही नहीं जानते हैं, क्योंकि यह आत्मा न किसी को मारती है और न मारी जाती है।

आत्मा अपने स्वरूप में परमात्मा की ओर अभिमुख है क्योंकि वह परमात्मा का ही अंश है।आत्मा एक ऊर्जा है।शक्ति है।

आत्मा की विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए भगवान कृष्ण ने गीता में अर्जुन से आगे कहा :-

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।(2/20)।

इसका अर्थ है:-

यह आत्मा कभी किसी काल में भी न जन्म लेता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर गायब हो जाने वाला है।यह आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है,शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।

साक्षात परमात्मा का अंश होने के कारण आत्मा वंदनीय,अनुकरणीय और व्यवहार्य है।हम आत्मा को भूलकर संसार में अनेक जगहों पर परमात्मा की तलाश में भटकते हैं। ईश्वर सृष्टि के कण-कण में हैं।ईश्वर मंदिरों तीर्थों में हैं तो अपनी आत्मा के भीतर भी हैं। लीश्रद्धा और अनुभूति की सामर्थ्य होना चाहिए।जिससे हम ईश्वर को देख व पा सकें।महसूस कर सकें।

समर्थ रामदास, दासबोध ग्रंथ में लिखते हैं:-

जो आत्मा शरीर में रहता है वहीं ईश्वर है और चेतना रूप से विवेक के द्वारा शरीर का काम चलाता है। लोग उस अन्तर्देव को भूल जाते हैं और दौड़-दौड़ कर तीर्थों में जाते हैं।

वास्तव में आत्मा में चेतना है।ऊर्जा है। दिव्य प्रकाश है। आत्मा के विस्तार के बारे में स्वामी विवेकानंद लिखते हैं-

हिंदुओं की यह धारणा है कि आत्मा एक ऐसा वृत्त है, जिसकी परिधि कहीं नहीं है किंतु जिसका केंद्र शरीर में अवस्थित है और मृत्यु का अर्थ है, इसका एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित हो जाना।

मोक्ष की उपलब्धि होने तक यह आत्मा सक्रिय रहती है और अनेक देहों को धारण करती है।हम अपने शरीर में स्थित इस समर्थ शक्तिशाली आत्मा को पहचानने की कोशिश करें।हम यह पाएंगे कि यह हमारी सबसे बड़ी मददगार है और यह हमें अनेक दोषों, त्रुटियों, गलतियों और खतरों से बचाने और हमारे उद्धार का काम कर रही है। इसके लिए हमें धीरे-धीरे प्रयास करना होगा।अर्थात ध्यान की अतल गहराइयों में उतरना और एक- एक कदम आगे बढ़ाना।

आज की सांध्य चर्चा में विवेक ने आचार्य सत्यव्रत से पूछा:-

विवेक: गुरुदेव जब आत्मा जीव का वास्तविक स्वामी है और जब इसे एक दिन इस संसार से प्रस्थान कर ही देना है, फिर जीवन भर अनेक सांसारिक बंधनों में इसके बंधने का क्या कारण है?

आचार्य सत्यव्रत: यह संसार एक तपोभूमि है और मनुष्य को अपने प्रारब्ध को भोगने के लिए और फिर मोक्ष की पात्रता प्राप्त करने के लिए इस संसार में आना होता है।अनेक व्यक्ति साधना के स्तर पर ऊपर उठते हुए इस जन्म में ही मोक्ष की पात्रता प्राप्त कर लेते हैं और इस जीवन की यात्रा पूर्ण होते ही वे उस परमसत्ता से एकीकार हो जाते हैं।

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय