Dani ki kahani - 33 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 33

Featured Books
  • જીવન પથ - ભાગ 33

    જીવન પથ-રાકેશ ઠક્કરભાગ-૩૩        ‘જીતવાથી તમે સારી વ્યક્તિ ન...

  • MH 370 - 19

    19. કો પાયલોટની કાયમી ઉડાનહવે રાત પડી ચૂકી હતી. તેઓ ચાંદની ર...

  • સ્નેહ સંબંધ - 6

    આગળ ના ભાગ માં આપણે જોયુ કે...સાગર અને  વિરેન બંન્ને શ્રેયા,...

  • હું અને મારા અહસાસ - 129

    ઝાકળ મેં જીવનના વૃક્ષને આશાના ઝાકળથી શણગાર્યું છે. મેં મારા...

  • મારી કવિતા ની સફર - 3

    મારી કવિતા ની સફર 1. અમદાવાદ પ્લેન દુર્ઘટનામાં મૃત આત્માઓ મા...

Categories
Share

दानी की कहानी - 33

दानी की कहानी---खुल जा सिमसिम

------------------------

अलंकार कितना सुंदर नाम है। दानी ने ही तो रखा था लेकिन सारे बच्चे उसे अल्लू अल्लू कहते। कभी-कभी तो अल्लू से वह उल्लू हो जाता | वह चिढ़ जाता और कई दिनों तक खेलने न आता।

"अलंकार ठीक तो है न? जाओ उसके घर देखकर आओ।" दानी आदेश देतीं और फिर खुलती उनकी पोल.और दानी का सुनना पड़ता व्याख्यान |

दानी के परिवार के बच्चों के लिए ही वह केवल दानी नहीं थीं दानी वह सबके लिए थीं यानि पूरे मुहल्ले के लिए | किसी के घर में नवजात शिशु का आगमन होता दानी के पास फ़ोन आने शुरू हो जाते, या घर में से कोई उनके पास आ धमकता | कोई-कोई तो राशि को लेकर भी इतने चिंतित हो जाते कि दानी को नवजात का नाम तलाशने में कई दिन लग जाते |

"इतने अंधविश्वासी मत बनो,हमारे यहाँ मैंने किसी का नाम राशि पर नहीं रखा |" दानी समझाने की कोशिश करतीं |लेकिन वही बात है न, जितने दिमाग़, उतनी सोच !

ख़ैर दानी सबके छोटे-मोटे कामों में उलझी ही रहती थीं | शाम को तो सारे बच्चों का झुंड उनके बगीचे में होता ही | दानी से कहानी, चुटकुले सुनने के लिए बच्चे इतने उतावले रहते कि अपनी माओं की हालत ख़राब कर देते | कोई परेशानी भी होती तो बच्चों के साथ उनके परिवार के लोग भी दानी के पास आ पहुँचते |

अलंकार दानी का दिया हुआ नाम और बच्चों के लिए हो गया था मज़ाक !

उस दिन जब कई दिनों तक दानी ने उसको खेलने के लिए आते नहीं देखा उनका माथा ठनक गया | वही हुआ जो दानी सोच रही थीं | किसी बच्चे ने अलंकार को उल्लू कह दिया था | स्वाभाविक था उसको बुरा लगना |

"तुम्हें दानी बुला रही हैं ---" दानी के कहने पर बच्चों का झुण्ड पहुंचा उसे बुलाने |

पहले तो उसने आने में आनाकानी की फिर अपनी मम्मी के कहने से उसे दानी के पास आना पड़ा |

"बेटा ! तुम्हारे बीच जो कुछ भी हुआ हो, ठीक है पर दानी के बुलाने पर तो तुम्हें जाना ही चाहिए |"

उसकी मम्मी ने समझाकर उसे दानी के पास भेज दिया |

"क्या हुआ था बेटा ? तुम कई दिनों से दिखाई नहीं दिए ?"

"आपने कैसा नाम रखा है ? सब मुझे छेड़ते हैं ---|" अलंकार के शब्दों में उदास भरी हुई थी | उसने धीरे से शिकायती स्वर में दानी से कहा |

"जहाँ कोई छेड़ेगा या तुमसे मज़ाक करेगा, तुम पीछे हट जाओगे ?"

"दानी ! मुश्किल होता है न ?" उसने रुआँसे स्वर में कहा |

"तुमने ही बताया था कि कई छात्रों ने गणित यह कह कर छोड़ दिया कि उन्हें गणित समझ नहीं आता ।"

" दानी ! आप भी ----इससे भला इस बात का क्या मतलब ? " अलंकार के मुख से मुश्किल से ये शब्द निकले |

"सब बातें एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं बेटा ---" दानी का समझाने का तरीका भी तो इतना अलग कि आसानी से बात ही समझ में न आए |

"वो कैसे ?" सारे बच्चे दानी के पास खिसक आए |

"जब हम किसी को चिढ़ाते हैं, वो हमारे कितने भी प्यारे दोस्त क्यों न हों, धीरे धीरे दोस्ती में रुचि खो देते हैं। किसी भी चीज को जब हम छोड़ते हैं यह कह कर कि बस,अब उससे दोस्ती रखनी कठिन है जैसे तुम कहते हो कि इन दोस्तों से अब दोस्ती नहीं रखनी है तो तुम अपने विकास को रोक रहे हो । याद रखो, मुश्किल काम का मतलब है कि कुछ नया करने की कोशिश या बीती हुई बातों को भूलकर आगे बढ़ने के कदम । एक बार फिर से दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाने का मतलब है कि हम फिर से अपने रिश्ते को मज़बूत कर रहे हैं | इसलिए जो हो गया उस पर धूल डालो और आगे बढ़ो | "

"अब नए मार्ग में कठिनाइयाँ तो आएंगी ही। हार मान लेना कोई समझदारी भरा फैसला नहीं है। क्योंकि बुद्धिमान इन्हीं कठिनाइयों से सीखेंगे ओर हर बार जो भी उन्होंने बेहतर होने के लिए सीखा है, उसे लागू करेंगे। बस, आओ तुम सब भी वायदा करो कि न तुम अपने दोस्त को चिढ़ाओगे और कभी अगर किसी दोस्त के मुँह से निकल भी गया तो न ही तुम इतना बड़ा मुँह फुलाकर बुरा मानोगे |"दानी ने मुँह फुलाया और सारे बच्चे खिलखिला पड़े |

"ये हुई न बात ---" दानी ने बच्चों से कहा और नारंग ड्राइवर को बच्चों के लिए आइसक्रीम लेने भेज दिया |

बच्चों को तो मज़ा आ गया | दानी उनके लिए 'खुल जा सिम सिम थीं ', जब भी कोई ज़रुरत होती या बच्चों में गड़बड़ी हो जाती पहले दानी उनकी सुलह करवातीं फिर बच्चों को ट्रीट भी मिलती | इसीलिए बच्चों ने दानी का नाम खुल जा सिमसिम रख दिया था |

दानी भी पक्की थीं, हर बार बच्चों की सुलह करवातीं फिर मीठा मुँह करवातीं और फिर कहतीं कि अब अगर किसी ने गड़बड़ की तो अबकी बार कोई ट्रीट नहीं मिलेगी, 'कोई खुल जा सिमसिम नहीं ---'लेकिन फिर वही सब दोहराया जाता रहता और दानी हर जन्मते बच्चे का नाम रखतीं और बड़ा होते हुए वह बच्चा भी दानी के बच्चों में शामिल हो जाता |

 

डॉ प्रणव भारती