“गाड़ी आज ज़रा बाज़ार की तरफ से लेना, कुछ बरतन खरीदने हैं, बाहर का खाना मैं ज्यादा दिन नहीं खा सकता,” ड्राइवर ने सुनते ही गाड़ी का स्टियरिंग बाज़ार की तरफ घुमा दिया।
मैं इस शहर में अकेला और नया था। एक कॉलेज में काउंसलर की पोस्ट पर नियुक्ति हुई थी। बेटी की शिक्षा के लिए उसे और पत्नी को परिवार के साथ उसी शहर में ही छोड़ आया था। बाजार में खरीदारी करते हुए मैंने एक जवान औरत को देखा; मैले-कुचैले कपड़े पहने, धीमी चाल से एक तरफ जाते हुए। ड्राइवर ने मुझे बताया कि यहीं घूमती रहती है, ये पगली।
जब हम वापस जा रहे थे, जाने कैसे और कहाँ से एक मोड़ पर अचानक वह सामने आ गई और गाड़ी से टकरा गई। और फिर जब वह उठी ही नहीं तो ड्राइवर के साथ ही मेरे भी हाथ पैर फूल गए।
ड्राइवर तो लोकल था, उसने तुरंत इकट्ठा हुई भीड़ को समझाया और उस औरत को पास ही स्थित एक लेडी-डॉक्टर के क्लीनिक पर ले गए।
लेडी-डॉक्टर ने चैकअप किया और बताया कि— “इसे गाड़ी से तो चोट नहीं लगी लेकिन यह गर्भवती है, शायद कमजोरी के कारण ही उसे चक्कर आ रहे थे, और यह गाड़ी के सामने अचानक से घबरा कर अचेत हो गई थी”।
“अब एक काउंसलर की समझ और मेरी मानवीय जिम्मेदारी कह रही है कि पगली अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की देखभाल कैसे करेगी? इसे किसी का सहारा तो चाहिए,” मैंने अपनी राय दी।
"देखिए इसका एबॉर्शन कर देना चाहिए, मैं दो गवाहों के हस्ताक्षर लेकर एबार्शन कर सकती हूँ," मुझे इसमें डॉक्टर का स्वार्थ और असंवेदनशीलता दिखी।
“आपने चैक किया गर्भ कितने माह का है?” मैंने उसका ध्यान इसके रिस्क की ओर लाना चाहा।
“जी देखा, लगभग साढ़े चार माह का लगता है। ऐसे में रिस्की तो है, पर किया जा सकता है,”।
मुझे यह उचित नहीं लगा तो मैंने अपने कॉलेज के मैनेजर से बात की। उनको मैंने सिर्फ और सिर्फ सही सलाह की उम्मीद में फोन किया था लेकिन उन्होंने मुझे तुरंत कुछ धन देकर निकल लेने की सलाह दे डाली। लेडी-डॉक्टर जो चाहे करती रहे।
अब मैंने डॉक्टर को अपना परिचय दिया— “मेरे ख्याल से तो सबसे पहले मामला पुलिस में जाना चाहिए, रेप का मामला दर्ज होना चाहिए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यह पगली कुछ बता पाने की स्थिति में है? क्योंकि इसने मुँह खोला तो कइयों की गरदन पर तलवार टँग जाएगी। ड्राइवर ने बताया था कि यहीं घूमती रहती है, ये पगली, तो बाजारों के सीसीटीवी फुटेज से बहुत कुछ मालूम हो सकता है, जो बस पुलिस ही कर सकती है”।
लेडी-डॉक्टर चुप रही तो मुझे लगा कि पुलिस में जाने का काम अकेले ही करना होगा। सोच विचार कर मैंने उनसे पगली की जाँच वगैरा का विवरण ले लिया और ड्राइवर को पुलिस स्टेशन की ओर चलने के लिए कह दिया।
लेकिन मुझे यह देख कर सुखद आश्चर्य हुआ कि लेडी-डॉक्टर भी अपनी असिस्टैंट को क्लीनिक का काम संभालने के लिए कह कर मेरा साथ देने गाड़ी में आ गईं। शायद उनके अंदर की औरत और कर्तव्यनिष्ठा, पगली से हुए अन्याय और मेरी दृढ़ता देखकर जाग गई थी।
—Dr📗Ashokalra
Meerut