शाम का समय था, एक जवान लड़की के पीछे दो लड़के भाग रहे थे। कमाल की बात थी, कोई मदद नहीं कर रहा था। एक लड़के के हाथ में प्लास्टिक की बोतल थी, दूसरे के हाथ में चाकू था। लड़की भागते भागते बेदम हो गई तो फुटपाथ के किनारे एक बंद पड़े खोखे के पीछे छुपने की कोशिश करने लगी। एक अधेड़ सज्जन पुरुष, जो दूसरी ओर से आ रहे थे, ने लड़की को ऐसे छुपते देखा। सामने से भागते आ रहे लड़कों पर जब उनकी नज़र पड़ी तो उनकी समझ में कुछ माज़रा आया लेकिन तब तक लड़कों ने लड़की को देख लिया।
एक लड़के ने लड़की का हाथ पकड़ लिया, लड़की में प्रतिरोध के लिए भी शक्ति न बची थी उसकी टांगे कांपने लगीं और वह जमीन पर बैठ गई।
“हमसे दोस्ती नहीं करती न तू, तेरे दोस्त भी नफरत करेंगे तुझसे! देख लेगी आज तू अंजाम…” एक लड़का बोला और उसे जबरन खड़ा करके अपनी बाहों में कस लिया।
सज्जन पुरुष ने तुरंत 100 नंबर पर डायल किया किया और उनकी ओर लपके।
“ये क्या हो रहा है? छोड़ो इसे,” सज्जन पुरुष ने कहा और निकट जा पहुँचे।
चाकू लिए लड़के ने चाकू लहराया, “पीछे रहो वरना इससे पहले तुम मरोगे। भागो, ये क्या लगती है तुम्हारी? जान दोगे क्या इसके लिये?”
“बेटी है मेरी ये, छोड़ो इसे,” सज्जन पुरुष रुके नहीं और हिम्मत से आगे बढ़े।
अब तक वहाँ पर दो-चार लोग और जुट गये थे। एक तो वीडियो भी बना रहा था। सज्जन पुरुष लड़की को छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रहे थे।
चाकू वाले ने चाकू से वार किया जिससे सज्जन पुरुष का हाथ कट गया और खून बहने लगा। तब तक वहाँ लग चुकी भीड़ में से आवाजें आईं और एक-दो आदमी आगे बढ़े। ये देख कर दोनों लड़के घबरा गये और वहाँ से भाग गये। प्लास्टिक की बोतल जिसमें शायद तेज़ाब रहा होगा, वहीं छूट गई।
लड़की की साँस में साँस आई। सज्जन पुरुष ने उसे अपना रुमाल दिया और हाथ पर बाँधने को कहा। उन्होंने वीडियो बना रहे लड़के से अपने मोबाइल में वो ‘वीडियो एविडेंस’, भी ले लिया।
“आप अपने पिता जी को थाने आने को बोलो, हम वहीं चलते हैं,” सज्जन पुरुष ने तेज़ाब की बोतल, ‘फ़िजीकल एविडेंस’, को पैर से एक ओर कर दिया।
“मेरे पिता जी नहीं हैं, और माँ मना करती हैं, रिपोर्ट करवाने से। कहती हैं ये और ज्यादा सताएंगे फिर,” वह रोते हुए बोली।
सज्जन पुरुष के चेहरे पर दर्द के भाव उभरे जैसे वो सारा माज़रा पल भर में समझ गये हों—
“इससे ज्यादा और क्या? आप मेरे साथ चलो, माँ को फोन करके थाने बुलवा लो। मेरा खून बह रहा है न, रिपोर्ट के बाद अस्पताल में इलाज आसानी से हो जायेगा, दो-चार टांके तो लगवाने पड़ेंगे ही”।
“आपने उन लड़कों से कहा कि ‘ये मेरी बेटी’ है। जबकि आपने मुझे पहले कभी देखा भी नहीं”।
“ऐसी हालत में कोई भी लड़की होती तो मैं यही करता। मैं अपने सामने एक अपराध होते देखता रहूँ तो मैं भी अपराधी ही तो हुआ”।
“अगर सभी लोग आप जैसे हो जाएं तो हालात कितने बदल जाएं,” लड़की आँखों में ठण्डे आँसू भर अपनी माँ को फोन करने लगी।
वहाँ पुलिस का सायरन बजने से भीड़ छँटने लगी।
—Dr📗Ashokalra
Meerut