Ladies Tailor in Hindi Short Stories by Ashok Kalra books and stories PDF | लेडीज़ टेलर - The Customer

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लेडीज़ टेलर - The Customer

“आपने ‘स्त्री’ देखी है, न-न गलत न समझें, मेरा मतलब नई पिक्चर से है, अभी अभी लगी है न,” उस नये ग्राहक ने मेरे नाप लेने के तरीके पर आश्चर्य जताते हुए पूछा।

“नहीं तो। सुना है डरावनी पिक्चर है, मैं एैसी पिक्चर नहीं देखता,” मैंने कहा।

“आपके लिए तो देखनी बहुत जरूरी है, उसका असली हीरो तो जैसे कि आप ही हैं”।

“अरे! मेरी सूरत पर तो बारह बजे रहते हैं,” उसकी एैसी तारीफ़ पर मैं चौंका। इतनी सुंदर स्त्री द्वारा मेरी तारीफ़ किया जाना, मेरे लिए तो दुनियाँ का आठवां आश्चर्य जैसा लगा!

“सच में, वो तो नकली है, असली तो आप हैं। आपके पास है असली हुनर, आपको अगर मैं जल्दी प्रसिद्ध कर दूँ तो, क्या दोगे?” वह बोली और मेरा फोटो लेने लगी।

“अजी रहने दो, मैं पहले ही पिट चुका हूँ, आप और न पिटवा देना। वैसे मेरा काम ठीक-ठाक चल रहा है, दो रोटी कमा ही रहा हूँ”।

“चलो छोड़ो, आप कुछ मत देना। बस थोड़ा अपने बारे में बता दीजिए, आप पर एक आर्टिकल लिखूंगी, मैं पेशे से रिपोर्टर हूँ,” वह बोली।

“देखिए जी, मैं गरीब आदमी हूँ, अभी शादी भी नहीं हुई है, बस एक लड़की से प्यार है, लेकिन कभी कहने की हिम्मत नहीं हुई। आपके आर्टिकल से कुछ ऊँच-नीच हो गई तो मेरा बापू जान से मार देगा, जी”।

“आप मुझे बताइए कि ये आपने कैसे सीखा? मतलब बिन छुए, आँखों से ही नाप लेना और शानदार फिटिंग,” उसने हँसते हुए अपने मोबाइल में कुछ टच-टुच करके मेरे सामने कर दिया।

“छुटपन से ही बाप की टेलरिंग की दुकान पर जाता था, जी मैं। थोड़ा बड़ा हुआ तो जाने कहां से दिमाग में आया कि लेडीज़ टेलर बनना है। बाप ने भी सोचा एक और काम जुड़ेगा, तो भेज दिया एक जानने वाले लेडीज़ टेलर के पास। धीरे धीरे बढ़िया काम सीख लिया तो बापू ने बराबर वाली दुकान किराए पर दिलवा दी और मेरा काम चालू हो गया लेडीज़ टेलर का”।

“एक दिन एक महिला आईं कपड़े सिलवाने के लिए, मैं उसका नाप लेने लगा। पता नहीं कैसे पैर फिसला, और मैं उसके ऊपर गिरा, फिर वो भी न संभली और हम दोनों जमीन पर गिरे। फिर तो जी उसने शोर मचा दिया। बाजार के और राह चलते लोगों की भीड़ लग गई। बहुत पिटा था उस दिन”।

“किसी ने मुझे नहीं समझा, एक मेरी माँ के सिवा। मैं उसकी गोद में बहुत रोया था, उस रात। बाप ने समझाया कि जैन्ट्स टेलर का ही काम शुरु कर दे। मगर हार कैसे मान लेता जी मैं?”

“फिर एक विचार आया की अगर बिना हाथ लगाए ही किसी का नाप लिया जाए तो! बस फिर मैंने माँ के नाप से ही शुरु किया अभ्यास। दिन-रात एक कर दिए मैंने, फिर बहनों, पड़ौसनों, सारे मुहल्ले की औरतों के नाप लिए और मुफ़्त में सिलाई की। जब लगा कि ठीक करने लगा हूँ तो फिर से काम चालू किया। ईश्वर की कृपा से कोई दिक्कत नहीं हुई। और अब देखिए, तीन कारीगर लगे हैं, एक कटिंग मास्टर है, और बस मैं हूँ आपके सामने”।

“बहुत बढ़िया, बहुत खूब। तो आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे?” उस ग्राहक/ रिपोर्टर ने पूछा।

“आपके हिसाब से किसको देना चाहिए? भई हम तो अनाड़ी हैं इन मामलों में!”

“अपनी माँ को, उसने सुझाया”।

“अजी नहीं, माँ का तो आशीर्वाद है। मैं अपनी सफलता का श्रेय उस ग्राहक को देना चाहूँगा जिसने मुझे पिटवाया था”।

“बहुत बढ़िया और सही। आपका शुक्रिया। कल ‘नया सवेरा’, अखबार में ‘मेरा शहर’ कॉलम जरूर पढ़ना और दुकान के बाहर लाइन लगी मिले तो मेरा शु्क्रिया अदा कर देना, जब ड्रैस लेने आऊँगी”।

—Dr💦Ashokalra

Meerut