Me and chef - 44 in Hindi Drama by Veena books and stories PDF | मे और महाराज - (जाल_५) 44

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मे और महाराज - (जाल_५) 44

उसके अगले ही दिन सिराज को अपने पिता से महल आने का न्यौता आया। सिराज जैसे ही महल के लिए रवाना हुआ। एक पालखी राजकुमारी शायरा के महल के बाहर आकर रुकी। राजकुमारी शायरा महल के बाहर आई। " यहां कोई पहरेदार क्यों नहीं है मौली ?" उसने मौली से पूछा।

" आपके कहे मुताबिक समायरा ने राजकुमार सिराज से बात कर यहां का पहरा रद्द करवा दिया था। बेफिक्र रहींए राजकुमारी।" मौली ने शायरा को तसल्ली दी।

" क्या आज हम सच में राजकुमार अमन से मिल पाएंगे ?" शायरा ने पूछा।

" जाइए राजकुमारी। पालखी इंतजार कर रही है। जाकर राजकुमार से अपने दिल की बात कह दीजिए। " मौली ने मुस्कुराते हुए अपनी राजकुमारी को विदा किया। " हे भगवान मेरी राजकुमारी की हर दुआ कुबूल करना।"

सिराज जैसे ही महल पहुंचा राजकुमार अमन और वीर दोनों पहले ही वहां पर मौजूद थे।

" भाई।" वीर ने सिराज को सर झुका कर सलाम किया।

" क्या तुम भी पिताजी के बुलाने पर यहां आए हो वीर ?" सिराज ने अपने छोटे भाई से पूछा।

" जी भाई।" तभी एक नौकर चाय के तीन प्याले लेकर वहां आया।

" महाराज ने राजकुमारों के लिए भेजा है।" उसने सर झुकाते हुए तीनों को सलाम किया। तीनों भाइयों ने एक-एक प्याली उठाई और चाय पी। कुछ ही देर बाद महाराज राजकुमारों से मिलने कक्ष में आए। उनके साथ एक नौकर 4 चाय की प्यालीया लेकर आया था ।

" पिता श्री।" तीनों राजकुमारों ने अपने पिता को सर झुका कर सलाम किया।

" मेरे अचानक बुलाने से आपको यहां आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना ?" महाराज ने पूछा।

" नहीं पिताश्री।" राजकुमार अमन ने कहा।

" आप के लिए हम हमेशा तैयार है पिताश्री।" राजकुमार सिराज और वीर ने कहा।

" कुछ समय पहले जो चाय आपने पी। कैसी लगी आपको ?" महाराज ने पूछा।

" सुगंधित, काफी तरोताजा महसूस करवाने वाली थी पिताश्री।" राजकुमार अमन ने जवाब दिया।

" काफी अच्छी थी पिताश्री।" वीर ने सर झुकाते हुए कहा।

" उस चाय को दुखभरी कहते हैं। जानना चाहेंगे कि ऐसा क्यों है ?" महाराज ने पूछा।

" जरूर पिता श्री।" सिराजने कहा।

" वह चाय एक खास तरीके के जहर से बनी हुई थी। वह जहर आपके दिल पर किसी बोझ का एहसास करवाता है। और धीरे धीरे आप को खत्म कर देता है।" महाराज की बातो से राजकुमारों के चेहरे के हाव-भाव बदल गए। " लेकिन फिकर मत कीजिए। आप लोगों ने सुना ही होगा ना जहर-जहर को काटता है। उसी तरह से यहां रखी हुई यह चाय खास तरीके के जहर से बनी हुई है। इसे ह्रदय द्रावि कहते हैं। यह उस जहर का तोड़ है। यह जहर उस जहर से मिलकर शरीर को स्वस्थ बनाता है। अगर यह ह्रदय द्रावि चाय आप अकेले पीते हैं। तो दिल टूटने के दर्द से आप की मौत होती है। इसलिए अगर आपको बचना हो तो आपको इन दोनों चाय को हमेशा एक साथ ही पीना होगा।" महाराज ने जैसे ही अपनी बात खत्म की वीर ने तुरंत चाय की प्याली उठा ली।
वीर के पीछे पीछे राजकुमार अमन ने भी चाय की प्याली उठाई। आखिरकार महाराज के बाद सिराज ने अपना हाथ चाय की प्याली की तरफ बढ़ाया। सब ने चाय पी लेकिन सिराज अभी भी उसके बारे में सोच रहा था।

सिराज की दुविधा भाप महाराज ने पूछा। " क्या हुआ बेटा आप चाय क्यों नहीं पी रहे ?"

सिराज ने वह चाय जमीन पर फेंक दी। महाराज अपने बेटे की हरकत समझ नहीं पाए। "मुझे माफ कर दीजिए पिताश्री। मैंने आपकी कही बातों के बारे में सोचा। पिछले दिनों जब राजकुमारी शायरा बीमार पड़ी थी। हम दिल टूटने के दर्द से इस तरीके से गुजरे की अब फिर उस दर्द को अपनाने की हमारी हिम्मत नहीं होती। इससे तो अच्छा होगा कि हम एक महाराज की जिम्मेदारियों के बोझ तले अपनी सांसे रोक दें।"

सिराज की बातें सुन महाराज खुश हो गए।

" भाई हमें पता है आप भाभी की वजह से चिंतित है। लेकिन इस तरीके से अपने आप को तकलीफ मत दिजिए। पिताश्री जल्द से जल्द राजवैद्यजी को बुलाएं।" वीर ने अपने पिताश्री से सर झुका कर विनती की।

" इसकी कोई जरूरत नहीं है।" महाराज ने वीर को सर उठाने के लिए कहा। " चाय में जहर नहीं था। हम कठोर महाराज सहि। लेकिन इतने भी बेदर्द नहीं कि खुद जहर देकर अपने बेटों को मार डालें।"

राजकुमार अमन और वीर आश्चर्यचकित रह गए। " क्या पिताश्री आप हमसे मजाक कर रहे थे ?" वीर ने पूछा।

" बिल्कुल नहीं। तुम सिराज के साथ इतने दिन रहते हो वीर। तुम्हें सिराज से कुछ सीखना चाहिए । वह जिस तरह से हर वक्त अपनी प्रजा के बारे में सोचता है । एक महान राजा बन्ने का रास्ता वह अच्छी तरीके से जानता है। मुझे लगता है मुझे तो तुम्हारा शुक्रिया अदा करना चाहिए कि तुमने साथ रहकर भी सिराज को अपने जैसा नहीं बना दिया।" महाराज ने हंसते हुए कहा।

" नहीं पिताश्री‌। भाई यकीनन 1 दिन बहुत महान महाराज बनेंगे। मैं तो बस उनके साथ राज्य चलाने में उनकी मदद करना चाहता हूं।" वीर ने कहा।

" कैसी बातें कर रहे हो वीर ?" सिराज ने उसे रोका।

" मतलब तुमने पहले से ही तय कर रखा है की सिराज अगला महाराज बनेगा ?" महाराज ने गुस्से से कहा।

" यकीनन पिताश्री। वीर को किसी ने पहले से ही पढ़ा रखा है, कि उसे क्या करना है। बस गलती से उसने ही आपके सामने बोल दिया।" राजकुमार अमन ने आग में घी डालने का काम बखूबी किया।

" हमारा फैसला अब तक हुआ नहीं है वीर।" महाराज।

" मेरी लापरवाही के लिए माफ कर दीजिए पिताश्री। मेरे हिसाब से जितना भी वक्त मैंने राजकुमार सिराज के साथ बिताया है। उन्हें हर वक्त बस राज्य की चिंता में देखा है। मुझे उनमें आप की छवि नजर आती है। इसीलिए मेरी जुबान फिसल गई। मैं अगली बार अपनी बातों का ध्यान रखूंगा।" वीर ने अपने पिता से माफी मांगी।

" मुझे माफ कर दीजिए पिताश्री।" सिराज ने कहा।

" तुम क्यों माफी मांग रहे हो सिराज ? तुम्हारा तो यही मकसद था ना वीर को पढ़ाने के पीछे।" राजकुमार अमन ने कहा।

" मैंने जो कुछ भी सीखा है वह आपसे और बड़े राजकुमार अमन से सीखा है पिताश्री। मेरे लिए आप दोनों सदैव एक आदर्श उदाहरण थे और रहेंगे। बस इसीलिए।" अमन ने सिराज को अपनी बात पूरी करने का मौका नहीं दिया।

" अगर हम अच्छा उदाहरण है तो तुम इस राजगद्दी की दौड़ से पिछे क्यों नहीं हट जाते ?" अमन ने कहा।

" अपनी हदें मत भूलिए बड़े राजकुमार।" महाराज ने राजकुमार अमन को चुप कराया।

" हमें माफ कर दीजिए पिताश्री। लेकिन हमने कई बार देखा है सिराज हमेशा हमें नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते हैं।" अमन ने अपने पिता से शिकायत की।

" अगर मुझसे कोई गलती हुई हो तो माफ कर दीजिएगा बड़े भाई । लेकिन मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं था। और आप से बड़ा तो मैं कभी नहीं हो सकता। कुछ दिनों पहले का उदाहरण ही ले लीजिए। मेरे सामने मेरी बीवी पर जानलेवा हमला हुआ और आज तक मैं उस हमलावर को पकड़ नहीं पाया। आप से बड़ा में कैसे बन सकता हूं। इस राजनीति के खेल में आप मुझसे कहीं ज्यादा आगे हैं।" सिराज ने सर झुकाते हुए कहा।

भाइयों की बहस आगे बढ़े उससे पहले उनके पिता ने वहां से विदा ले ली और उन्हें इंतजार करने के लिए कहा।

" और राजकुमार सिराज राजकुमारी कैसी है ?" अमन ने एक कपटी मुस्कान के साथ पूछा।

" आपको उनकी फिक्र करने की जरूरत नहीं है।" सिराज ने मुंह घुमाते हुए जवाब दिया।

" आप यहां है। वह अकेली महल में। हमें फिक्र करनी पड़ती है।" राजकुमार अमन के चेहरे की मुस्कान बता रही थी की बात जितनी सरल दिख रही है उतनी है नहीं।

सिराज ने तुरंत रिहान को बुलाया और महल में राजकुमारी शायरा का हाल चाल पूछने के लिए कहा। उसे एक अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी।

रिहान जल्द से जल्द महल पहुंचा। उसे वहां खड़ी मौली मिली।

" राजकुमारी शायरा कहां है ?" रिहान ने मौली से पूछा।

" क्यों ? क्या हुआ ? इस तरीके से क्यों पूछ रहे हो ?" मौली ने सवाल किए।

" राजकुमार अमन ने राजकुमार सिराज से कुछ कहा है। जिसकी वजह से उन्हें राजकुमारी की फिक्र हो रही है। जल्दी बताओ मुझे राजकुमारी कहां है ?" रिहान ने उसे मामला बताया।

" राजकुमार अमन महल में है। वह महल कब पहुंचे ?" मौली ने अचंभित होते हुए पूछा।

" वह हमारे जाने से पहले ही महल में मौजूद थे।" रिहान से जवाब पाकर मौली के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई।

" हे भगवान। जाओ राजकुमार को बताओ मेरी राजकुमारी खतरे में है।" मौली ने रिहान से मदद की दरख्वास्त की।

" तुम्हारा मतलब राजकुमारी महल में नहीं है ?" रिहान का सवाल सुन मौली ने ना में अपना सर हिलाया।

कुछ ही देर बाद रिहान संदेशा लेकर राजमहल पहुंचा।

" राजकुमारी शायरा महल में नहीं है मेरे महाराज।" रिहान ने राजकुमार सिराज के कानों में कहां।

" हमारे साथ चलो।" सिराज ने दो कदम आगे बढ़ाएं ही थे के पीछे से महाराज के सेवक ने आवाज लगाई।
" राजकुमार सिराज को अध्ययन कक्ष में पेश होने का आदेश मिला है।"


कितनी अजीब दुविधा थी एक तरफ उसकी गद्दी थी और एक तरफ उसका प्यार ? आज अगर वह अपनी गद्दी चुनता है तो अपनी सदी का एक महान महाराज साबित होगा। लेकिन क्या सत्ता चुनने के बाद उसे अपने प्यार के बगैर चैन मिलेगा ? किसे चुनेगा सिराज ? कल की आई उस लड़की को जिसकी हंसी उसे सुकून पहुंचाती है। या इस महल की उस शानदार राजगद्दी को जिसके सपने उसने बचपन से देखे हैं । जिसके लिए उसने अपने आपको तैयार किया है ?