Aadhar - 24 in Hindi Motivational Stories by Krishna Kant Srivastava books and stories PDF | आधार - 24 - भगवत कृपा, जीवन की दिव्य शक्ति है।

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आधार - 24 - भगवत कृपा, जीवन की दिव्य शक्ति है।

भगवत कृपा,
जीवन की दिव्य शक्ति है।
कभी आप रास्ते में पड़े पत्थर से टकराकर लड़खड़ाते हैं फिर संभल जाते हैं और चोट खाने से बच जाते हैं। कभी आपके नजदीक से एक तेज रफ्तार कार गुजर जाती है और आप उस कार की चपेट में आने से बाल-बाल बच जाते हैं। आप पैदल रास्ते में हैं और अचानक तेज आंधी शुरू हो जाती है आप देखते हैं कि आपके ठीक पीछे एक विशालकाय पेड़ आंधी की चपेट में आकर जमींदोज हो जाता है। ऐसी सभी परिस्थितियों के बीतने पर आप अपने भाग्य को सराहते हैं कि क्षण भर की देरी से आपकी जान खतरे में पड़ सकती थी। आप ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद भी देते हैं कि उसने आपको एक बड़े खतरे से बचा लिया।
कभी ऐसा भी होता है कि आप और आपके साथी एक ही कक्षा में साथ-साथ परीक्षा दे रहे हैं आपका साथी तो परीक्षा में सफल हो जाता है परंतु आप मामूली नंबरों से परीक्षा में असफल हो जाते हैं। एक और उदाहरण लीजिए, आप अपने साथी के साथ साईकिल पर कहीं जा रहे हैं। पत्थर से टकरा कर आप दोनों सड़क पर गिर जाते हैं। आपके साथी को तो कोई नुकसान नहीं होता परंतु आपके पैरों में खरोच लग जाती है। इसी प्रकार कभी, आप अपने साथी के साथ सड़क पर चल रहे हैं और सड़क किनारे खेल रहे बच्चों की गेंद उछलकर आपको लग जाती है, और आपका साथी साफ बच जाता है। इन जैसी अनेकों परिस्थितियों के होने पर हम ईश्वर को कोसते हैं कि उसने हमारे ही साथ ऐसा बुरा व्यवहार क्यों किया।
इन उदाहरणों से इतना तो अवश्य साफ हो जाता है कि कोई अदृश्य शक्ति तो है जो विपरीत परिस्थितियों में हमें संभालती और कभी-कभी दंडस्वरूप कष्ट भी देती है। इस अदृश्य शक्ति को हम ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु अथवा भगवान कोई भी संज्ञा दे सकते हैं। इन्हें हम किसी भी नाम से पुकारे परंतु इतना तो अवश्य मानते हैं कि एक अदृश्य शक्ति है जो इस पृथ्वी पर होने वाली सभी गतिविधियों पर अपना नियंत्रण रखती है। वह शक्ति ही हमें दुर्भाग्य से बचाती और सौभाग्य से मिलाती है। हम प्रतिदिन दुर्भाग्य व सौभाग्य का खेल खेलते हैं परंतु कभी यह नहीं सोचते कि ऐसा क्यों होता है।
विचार करें कि अच्छे खासे स्वस्थ शरीर से ऐसी कौन सी शक्ति निकल जाती है जो व्यक्ति का शरीर क्षण भर में ही सभी भौतिक गतिविधियां करना बंद कर देता है और उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। यह अदृश्य शक्ति एक विशाल ऊर्जा भंडार का अंश मात्र है। ऊर्जा का यह विशाल भंडार एक पुंज के रूप में प्रकृति में सर्वदा विद्यमान रहता है। जिसकी छोटी सी मात्रा हमारे शरीर को ही नहीं अपितु संसार के सभी जीव जंतुओं को कार्यशील रखने के लिए परम आवश्यक होती है। संसार के सभी प्राणी अपने भीतर इस ऊर्जा को समाहित किए हुए हैं। यह ऊर्जा, उस विशाल ऊर्जा पुंज का एक छोटा हिस्सा मात्र है। यदि इस विशाल ऊर्जा पुंज को हम भगवान की संज्ञा देते हैं, तो ऐसा माना जा सकता है कि सभी प्राणियों में भगवान का एक अंश, आत्मा के रूप में, विराजमान रहता है। यदि सभी प्राणियों में भगवान का एक अंश विराजमान है तो सभी प्राणी भगवान तुल्य माने जा सकते हैं।
हमारे शरीर को गतिशील बनाए रखने के लिए प्रयुक्त आवश्यक ऊर्जा, ईश्वर द्वारा प्रदत्त की गई ऊर्जा का एक स्वरुप है, जीवन के दुर्भाग्य व सौभाग्य की गणना ईश्वर द्वारा की जाती है, तब यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि हमें भगवत कृपा की महती आवश्यकता है। परंतु ईश्वर द्वारा निर्मित इस संसार के सभी प्राणियों की सकारात्मक यानी सौभाग्य और नकारात्मक यानी दुर्भाग्य की गणना एक स्वचालित कंप्यूटरीकृत जैसी प्रणाली द्वारा की जाती है। जिसकी गणना में किसी प्राणी विशेष के लिए पक्षपात की संभावना नहीं होती है। हमारे अपने कर्मों द्वारा अर्जित की गई सकरात्मक ऊर्जा के परिणाम स्वरुप सौभाग्य व नकारात्मक ऊर्जा के परिणाम स्वरुप दुर्भाग्य की प्राप्ति होती है। अर्थात जीवन में सौभाग्य के क्षणों को प्राप्त करने के लिए मनुष्य का सकारात्मक दिशा में कार्यशील होना परम आवश्यक हो जाता है।
जीवन की सकारात्मकता व नकारात्मकता को पाप और पुण्य के रुप में देखा जा सकता है। व्यक्ति के अपने पापों के कारण उसे दुर्भाग्य की और पुण्य के बदले सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
यदि जीवन की सकारात्मकता व नकारात्मकता के प्रभाव को वैज्ञानिकता के आधार पर समझने का प्रयत्न किया जाए, तो हम पाते हैं कि व्यक्ति द्वारा किए गए सभी सकारात्मक कार्यों के परिणाम स्वरुप व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मकता का एक मजबूत आवरण तैयार हो जाता है जो व्यक्ति को नकारात्मक कार्यों के प्रभाव से बचाता रहता है। यही कारण है कि समाज की उन्नति के लिए प्रयत्नशील व्यक्ति धीरे-धीरे अपने प्रयासों में निरंतर सफलता प्राप्त करता चला जाता है, और नकारात्मकता से ओतप्रोत असामाजिक तत्व उनके रास्ते में तनिक भी रुकावट उत्पन्न नहीं कर पाते हैं। इसी प्रकार रुकावट उत्पन्न करने के प्रयासों में लिप्त नकारात्मक प्रकृति के व्यक्ति अपने इर्द-गिर्द नकारात्मकता का मजबूत आवरण तैयार कर लेते हैं। जिसके परिणाम स्वरुप उनके जीवन में नकारात्मकता की अधिकता हो जाती है। जिसके प्रभाव से उनका चारित्रिक व शारीरिक झरण प्रारंभ हो जाता है। धीरे-धीरे ऐसे व्यक्तियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है।
अच्छे व बुरे कर्मों की प्रेरणा व्यक्ति को उसके मस्तिष्क से प्राप्त होती है। मस्तिष्क को ऊर्जा, व्यक्ति के शरीर में उपस्थित आत्मिक ऊर्जा से प्राप्त होती है। यदि आत्मिक ऊर्जा सात्विक विचारों व कार्यों को प्रेरित करती है तो व्यक्ति सात्विक कार्यों के लिए प्रयासरत हो जाता है। इसके विपरीत यदि आत्मिक ऊर्जा, व्यक्ति को वैश्विक कार्यों के लिए प्रेरित करती है तो मनुष्य बुरे कार्यों की ओर मुड़ जाता है। अर्थात व्यक्ति को सात्विक या वैश्विक ऊर्जा की प्राप्ति भगवत कृपा के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। इस कारण व्यक्ति को ऐसी भगवत कृपा प्राप्त करने के लिए सदा प्रयत्नशील बने रहना चाहिए जो व्यक्ति को समाजोपयोगी कार्य करने के लिए प्रेरित करती रहे।
ऊर्जा प्राप्ति का एकमात्र स्रोत वह विशाल पुंज है जो सृष्टि में सदा सर्वदा उपस्थित रहता है। सर्वविदित है कि जीवन में कुछ पाने के लिए भौतिक विज्ञान के आकर्षण के नियम का अनुपालन आवश्यक है। यदि हम विशाल किरण पुंज से उर्जा आकर्षित करना चाहते हैं तो हमें उस विशाल ऊर्जा स्रोत से एकीकृत करने का प्रयास करना होगा। जिसके लिए प्रबुद्धजन ध्यान की क्रिया को सर्वदा उपयुक्त क्रिया मानते हैं। ध्यान का अर्थ मात्र मानसिक एकाग्रता नहीं होता है। श्रेष्ठ व उच्चतर विचारों को अपने हृदय पटल पर आत्मसात करने की विधा ध्यान कहलाती है। आधुनिक जीवन शैली के परिणाम स्वरुप सामान्य जन यदि इस क्रिया में सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं तो ऐसे व्यक्तियों को सकारात्मक कार्यों के द्वारा भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो सकती है। व्यक्तियों को समाज में परोपकार कर सकारात्मक ऊर्जा का संचयन कर लेना चाहिए। केवल एक आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण कर हम समाज से स्वीकारात्मक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
अर्थात यह सिद्ध होता है कि भगवत कृपा, जो मनुष्य के जीवन की दिव्य शक्ति है, की प्राप्ति कर्म योग का पालन कर प्राप्त की जा सकती है। परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि वह हम जैसे सामान्यजन को अपनी कृपा से अनुग्रहित कर हमारा मार्ग प्रशस्त करें।

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