...कि अचानक पास ही चल रहे टेलिविजन पर एक सरकारी अधिकारी की मौत की खबर सुनी, किसी माफियों का काम लगता है। मगर मुझे तो मालूम था कि पीछे कौन- सा माफिया है? ओर ये सोचते- सोचते मै अपने आप को बीस साल पहले ले गया। एक ओर यादो में जहाँ ऐसे सरकारी तंत्र का सामना मुझे भी करना पडा था...
---------------- ---------------- ---------------- ----------------
उन दिनों मै रातखेडी जिले में पत्रकार था। वो दिन याद है मुझे की चारो ओर मेरे शोर ही शोर था। उस शोर के बीच से मैने जब रातखेडी के विधायक श्रीमान दौलतदास जी से किसानो कि आय दोगनी करने का प्रश्न पुछा कि कैसे वे व उनकी सरकार किसानो कि आय को दोगुनी कर रही है?
तो वे एक कंठस्थ हो चुके वाक्य को समान रूप से कहकर चले गए कि "इस बार कि पैदावार काफी अच्छी हुई है। ओर हमें उम्मीद है कि ये इस साल संभव हो जाएगा।..." और कुछ वाक्य ओर कहे थे, वे तो आप आज भी खबरो में पढ सकते है। खैर किसान को आश्वासन देकर मंत्री जी जय-जयकार करा प्रेसवार्ता से निकल तो गए। मगर मेरे असंतुष्ट मन को ओर विचलित कर गए। ओर मेरे ही सामान मेरे मित्र व कह सकते है इस कहानी के मुख्य पात्र विद्यासागर जी के मन को भी।
विद्यासागर जी बडे ही हट्टे-कट्टे व कदकाठी से बलिष्ठ व गुणो में ईमानदारी इतनी की एक रूपये तक का हिसाब रखते थे। वे किसान विभाग में सरकारी कर्मचारी थे। व ये सवाल हमेशा उनको भी सताता रहता था कि किसानो कि आय दोगनी करे तो करे कैसे। बाकि उन्होने रातखेडी के खेतो का काफी करीब से अध्ययन किया हुआ था। उनको रातखेडी के खेतो की ऊपज का वो दौर भी पता था, जब गाँव के खेतो में बीज डालकर नियमित रूप से सींच देने से ही, खेत-खलयान लहलहा उठते थे। परन्तु बिते गत १० वर्षो में, उन्होने फसलों का वजन कर्ज के मुकाबले कम होता महसूस किया। हम दोनो काॅलेज में साथ पढे थे, तो अक्सर चाय पर मिलकर चर्चा करते रहते थे कि कैसे किसानो की आय दोगुनी होगी। इसके पीछे के कारणो कि जाँच तो हम दोनों ही पिछले कई सालों से करने कि कोशिश कर रहे थे। ओर इसके चलते हमने कई किसानो की जमीन की न केवल जाँच करवाई, उसके अलावा हमने एक छोटे भू-खंड पर जैविक खेती के परिणाम देखे। हमें दोनो की लागत में तो ज्यादा अंतर नही लगा परन्तु जमीन की उर्वकता यानी अन्न उगाने की क्षमता १००% विपरीत थी। जहाँ जैविक खेती मिट्टी का ऊपजाऊ शक्ति को बरकरार व बढाने में सहायक थी। उसके ठीक ही विपरीत हालात कीटनाश्को से देखने को मिला। ५०% भूमि अपनी क्षमता से आधी भी ऊपज नही दे पा रही थी।
मगर फिर भी कीटनाश्को के पाँच नये कारखाने पिछले गत वर्षो की आती-जाती सरकारो नें तेजी से लगवा दिए। मुनाफा ज्यादातर मुझे लगे विधायक जी का होता है। ओर सारा धंधा चलता माफिया के नाम पर था। अब बाहरी कंपनियों का तो क्या ही है। वे तो अपने देश के लिए कमा-खा रहे है। मगर माफिया का जमीन कर व रंगदारी, विधायक जी के राज में ज्यादा ही हँस खेल रहा था। खैर अब ये वजह तो पूरा प्रशासन जानते हुए भी अंजान था। मगर विद्यासागर जी व मेरी गंभीरता को देखते हुए, बात विधायक जी तक पहुँचनी स्वभाविक थी। विधायक जी ने हमें अपने यहाँ बुलवाने का प्रबंध किया। वैसे हम दो आदमियों की कीमत क्या ही होगी? तो पता लगा बीस लाख। अब मै फिर मुनाफे की ओर चला गया कि क्या वाकई में ये इतना बडा गोरख धंधा चल रहा है। मैने आने वाले खतरे को भापते हुए। विद्यासागर को इससे पिछे हटने पर मनाने लगा। क्योकिं सच कहे तो पैसे के आगे जान बडी सस्ती है, इन लोगो के लिए।
मैने विद्यासागर से बात कि - "देखो भाई! हम ये पैसे ले या ना ले, सच को दबाने में इन्हे कितना समय लगेगा। ओर तुम ही बताओ पैसे के आगे सच कितनी बार जीता है। मेरी मानो तो तबादला करा लो, मै भी मेरे ससुराल के पास में एक घर ले रहा हूँ। वैसे भी तुम्हारी भाभी व भतीजी को यहाँ की हवा पानी भाती नही है। मै वहीं अपनी एक छोटी प्रेस ऐंजसी चला लूँगा। ओर जिंदा रहे तभी तो इसको छोटे-२ स्तर पर करके, थोडा बदलाव तो ला ही सकते है।"
विद्यासागर ने मेरी बातो के डर को समझते हुए कहा कि - " क्या सच्चाई की इतनी दयनीय स्थिती आ गई है। पर तू ही बता क्या तेरा ईमान कही सुकून पायेगा। मै अपने प्रयास लगातार करता रहूँगा। मै विधायक के खिलाफ जा रहा हूँ। तुम साथ दोगे की नही।"
उसके ये बाते सुनकर मेरा मन ओर विचलित हो चला । मैने बेबाक हो तेज आवाज में कहा कि - " तू अपने फैसले पर अडिग रह और मै अपने पर। ओर सुन ले जिन किसानो की लडाई की तू बात कर रहा है, उसमें किसान भी तेरा साथ नही देंगे। तुम इस बात को समझो, क्योकिं विधायक की समझदारी के सामने ये बरसो से पढाई लिखाई से वंचित किसान अपनी ऐडी तक नही हिलाने वाले। और तेरी एक की मौत से नही जागेगा किसान, डर कर ओर गहरे कुए में चला जाएगा। समझा या मै बेफिजुल समझा रहा हूँ तुझे। कही ओर चला जा।"
विद्यासागर वहाँ से बिना कुछ कहे चला गया, वो सच के लिए मर सकता था, पर समझौता कभी नही करता। आखिर उसकी कौन-सा कोई घरस्थी थी, घरस्थी होती तो चार जिम्मेदारियों को समझता। उस दिन से लेकर आज का दिन आ गया, ना तो कोई खबर मिली। और ना ये पता है कि जिंदा है या मर गया। बस जहन में मलाल है कि उसको समझा ना सका। खैर आज मै अपने जमनापुर के १० किसानों की जमीनो पर जैविक खेती के बेहतरीन परिणाम लाने में सफल हो पाया हूँ। या सच कहूँ तो दोगुनी आय के स्वपन में एक छोटा तराना जोड पाया हूँ।
ये सब आपसे साझाकर ही रहा था कि मेरे पत्नी के भाई यानी मेरे साले मजबूरदास की काॅल आ गई। अपनी जीजी से मिलने को आ रहा था। मैने अपनी पत्नी को कहा तेरा भाई आ रहा है, कुछ पकवान बना लो। वैसे तो हमारे साले साहब की भी सरकार के तंत्र के साथ बडी रोचक कहानी है, इतने में वो आए मै आपको बता देता हूँ कि आखिर वो कैसे इन सरकारी झमेलो में आ गए?...