Aadhi duniya ka pura sach - 17 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आधी दुनिया का पूरा सच - 17

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आधी दुनिया का पूरा सच - 17

आधी दुनिया का पूरा सच

(उपन्यास)

17.

अगले दिन उसने समय पर बिस्तर छोड़ दिया और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर मन्दिर की सफाई में पुजारी जी का हाथ बँटाने लगी। पुजारी जी ने देखा कि रानी का चेहरा निस्तेज तथा आँखों में चिंता का समुद्र उमड़ रहा था। उसकी ऐसी दशा देखकर पुजारी जी ने उसको स्नेहपूर्वक ले जाकर कोठरी में बिस्तर पर लिटा दिया और बोले -

"बिटिया, स्वास्थ्य से अधिक महत्वपूर्ण कोई कार्य नहीं होता ! मन ठीक नहीं है, तो यहाँ आराम कर ! कोई और परेशानी है, तो मुझे बोल ! अपने काका को नहीं बताएगी, तो कैसे काम चलेगा ! तू कहे, तो मैं तुझे अस्पताल में लेकर चलूँ, वहाँ एक-से-एक अच्छे डॉक्टर हैं ! अस्पताल भी यही निकट ही है, कहीं दूर नहीं जाना है ! आजकल अंग्रेजी पढ़े डॉक्टर मशीनों से बीमारी का पता लगाकर ऐसी दवाई देते हैं, जिसे खाते ही मरीज स्वस्थ हो जाए !"

पुजारी जी की संवेदना-सहानुभूति और आत्मीयता देखकर रानी की आँखों में आँसू छलक आये । किसी पराये का इतनि अपनत्व पाकर उसके कंठ से रुलाई फूट पड़ी और उसका रुदन हिचकियों में परिवर्तित हो गया। पुजारी जी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा -

"रो मत बिटिया ! सब कुछ ठीक हो जाएगा ! ऊपर वाले के घर देर है, अंधेर नहीं !"

अपने सिर पर पुजारी जी के स्नेह का स्पर्श अनुभूत करके रानी और अधिक भावुक हो उठी। उसने रोते हुए कहा-

"काका मेरे पेट में परसों से रुक-रुक कर कुछ अजीब-सा हो रहा है ! आपके त्रिफला से कुछ नहीं हुआ !"

"कोई बात नहीं बिटिया ! चल खड़ी हो, मैं तुझे अभी अस्पताल में दिखा लाता हू् ! दोपहर बाद डॉक्टर मैडम वहाँ नहीं मिलेगी !"

पुजारी जी का निर्देश पाते ही रानी अस्पताल जाने के लिए उठ खड़ी हुई।

सुबह का समय होने के कारण सरकारी अस्पताल में लम्बी लाइन लगी हुई थी। पुजारी जी ने रानी को एक और बिठा दिया। पर्ची बनवाने के लिए लाइन में खड़े होकर अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करने लगे । अपनी बारी आने पर पुजारी जी ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पर्ची माँगते हुए बताया कि बेटी के पेट में दर्द है। उसने पुजारी जी को हाथ में पर्ची देकर कमरा संख्या बता दिया।

पुजारी जी रानी को अपने साथ लेकर पर्ची पर लिखे कमरा संख्या में पहुँचे। वहाँ भी मरीजों की लंबी पंक्ति लगी थी। वहाँ भी पुजारी जी ने लाइन में खड़े होकर रानी की बारी आने की प्रतीक्षा की । जब रानी की बारी आयी तब डॉक्टर ने कुछ क्षणों तक सामान्य पूछताछ करने के पश्चात् उसके पेट का निरीक्षण-परीक्षण करके कहा-

"कमरा संख्या 09 में जाइए ! वहाँ लेडी डॉक्टर बैठती हैं ! वही इनकी सही से जाँच करेंगी !"

पुजारी जी रानी को लेकर कमरा संख्या 09 में गये, जहाँ पर महिला रोग विशेषज्ञ बैठी थी । वहाँ पर स्त्रियों की भीड़ से अलग एक कोने में खड़े होकर पुजारी जी और रानी दोनों अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करने लगे। शीघ्र ही रानी की बारी आ गयी । महिला चिकित्सक ने रानी का परीक्षण करने के उपरान्त रानी को बाहर बैठने के लिए कहा और अत्यंत सहज भाव से पुजारी जी से पूछा -

"आप कौन लगते हैं बच्ची के ?"

"काका ! मैं रानी का काका हूँ ?" पुजारी जी ने उत्तर दिया।

"हूँ-ऊँ ! शादी हो गयी है बिटिया की ?"

"नहीं-नहीं ! अभी नहीं ! अभी तो बच्ची है !"

"इसके माता-पिता आपके साथ ही रहते हैं ?"

"नहीं !"

"तो ध्यान से सुनिए ! आपकी बेटी प्रेगनेंट हैं ! माँ बनने वाली है आपकी बेटी !"

महिला चिकित्सक के मुख से अनपेक्षित समाचार सुनकर पुजारी जी के पैरों के नीचे से धरती खिसक गयी । क्षण-भर के लिए वे पाषाण बन गये । उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या बोलें ? क्या करें ? अगले क्षण उनके मुख से अनायास निकला -

"ऐसा कैसे हो सकता है ?"

"यह तो आपकी बेटी ही बेहतर बता सकती है, मैं कैसे बता सकती हूँ !" महिला चिकित्सक ने यह कहते हुए नर्स को अगला मरीज बुलाने के लिए आदेश दिया।

पुजारी जी अचानक आयी विपत्ति की चिन्ता का बोझ लेकर बाहर निकल आये और रानी को साथ लेकर मन्दिर में लौट आये ।

घर आकर रानी ने पुजारी जी से पूछा -

काका, मेरे पेट में क्या हुआ है ? डॉक्टरनी ने क्या बताया है ?"

"अभी कुछ नहीं बताया है ! कल फिर अस्पताल जाना होगा ! शायद कल कुछ पता चल सके !

पुजारी जी ने दृष्टि फेरकर कर रानी के प्रश्नों का अस्पष्ट-सा उत्तर दिया। पुजारी जी के इस प्रकार के उपेक्षापूर्ण उत्तर से रानी की चिन्ता बढ़ गयी । अतः उसने पुन: पूछा-

"काका सच बता दो, मुझे क्या हुआ है ? डॉक्टर ने आपसे कई मिनट तक बात की थी, तो कुछ तो बताया ही होगा ! मेरे पेट में कैंसर तो नहीं है न काका ? मेरी नानी मरी थीं, तो मरने से पहले कहती थीं की मेरे पेट में कुछ-कुछ अजीब-सा होता है। डॉक्टर ने बताया था, उनके पेट में कैंसर है, वही सारी बीमारी की जड़ है !" यह कहकर रानी रोने लगी। पुजारी जी ने उसे समझाया-

"तुम्हें ऐसी कोई बीमारी नहीं है ! जो है, वह ठीक हो जाएगी !"

"काका कैंसर नहीं है, तो क्या है मेरे पेट में ? आप मुझे बताते क्यों नहीं है ?" रानी ने रोते हुए कहा ।

"अरी बिटिया ! जब उसने कुछ बताया ही नहीं, तब मैं तुझे क्या बताऊँ ! कल किसी बड़े अस्पताल में जाकर पहले अच्छी डॉक्टर से तेरी जाँच कराएँगे, फिर इलाज करायेंगे ! तब सब कुछ ठीक हो जाएगा !" पुजारी जी ने रानी को समझाते हुए कहा। सांत्वना देने के पश्चात् कुछ क्षणों तक मौन रहने के उपरान्त पुजारी जी ने रानी से पुनः स्नेहपूर्वक कहा -

"बिटिया, घर छूटने के बाद तेरे साथ कब क्या हुआ ? मुझे एक बार सारी आप-बीती बता दे !"

कहते-कहते पुजारी जी की आँखें भर आयीं। पुजारी जी की गीली आँखें देखकर रानी ने क्षण-भर में समझ लिया कि उसकी बीमारी का संबंध उन क्रूर-अमानवीय यातनाओं से है, जो उसने माता-पिता से दूर होने और पुजारी जी का संरक्षण मिलने के बीच के समयांतराल में भोगी थी। पुजारी जी की आत्मीयता का सम्मान करते हुए रानी ने अपनी उंगली के पौर से उनकी आँखो का पानी पोंछकर अपने निर्मम अतीत का यथातथ्य वर्णन करना आरंभ किया।

रानी यंत्रवत कहती जा रही थी और पुजारी जी सुनकर उसके काले अतीत की कल्पना करके तड़प रहे थे । अगले दिन प्रातः ही पुजारी जी ने रानी को निर्देश दे दिया कि उसकी जाँच कराने के लिए अस्पताल जाना है, वह शीघ्र तैयार हो जाए ! आदेश का पालन करते हुए रानी तुरन्त पुजारी जी के साथ चलने के लिए तैयार हो गयी।

इस बार पुजारी जी रानी को साथ लेकर एक प्राइवेट क्लीनिक में पहुँचे। नाम पंजीकरण कराने के बाद अपना नम्बर आने की प्रतीक्षा में दोनों वेटिंग रूम में पड़ी बेंच पर बैठे गये। उस दिन डॉक्टर के क्लीनिक पर भीड़ अधिक नहीं थी, इसलिए कुछ ही मिनट बैठने के बाद रानी का नाम पुकारा गया।

पुजारी जी शीघ्रता से उठे और रानी को वहीं बैठने के लिए निर्देश देकर स्वयं चिकित्सक कक्ष में चले गये । रानी असमंजस के बादलों में घिरी वहीं बैठी रही। पुजारी जी को अकेले अपने कक्ष में प्रवेश करते हुए देखकर डाक्टर ने पूछा -

"आप किसके साथ हैं ? मरीज कहां है ?"

"डॉक्टर साहिबा, मैं मेरी अभागी बेटी रानी के साथ हूँ ! वह अभी अंदर आ रही है। आपसे मेरी एक प्रार्थना है कि मेरी बेटी रानी का शारीरिक परीक्षण करते हुए उससे कुछ ना पूछें ! परीक्षण के पश्चात् मैं, रानी का काका ही उसके विषय में आपसे बात करूँगाा !" पुजारी जी ने हाथ जोड़कर कहा।

"ठीक है !" डॉक्टर ने पुजारी जी से सहमत होते हुए घंटी बजायी और रानी को पुकारा। पुजारी जी ने भी कक्ष से बाहर झांककर रेणु को अंदर आने का संकेत कर दिया।

रानी ने अंदर प्रवेश किया, तो पुजारी जी के अनुरोध को स्वीकारते हुए डॉक्टर अपने स्थान से उठ खड़ी हुई और रानी को परीक्षण-कक्ष में चलने का संकेत करके आगे बढ़ गयी । परीक्षण-कक्ष में डॉक्टर ने रानी का परीक्षण अत्यंत सहजता और सावधानीपूर्वक किया । डॉक्टर द्वारा परीक्षण होने के पश्चात् डॉक्टर के बिना पूछे ही रानी ने अपनी समस्या बतायी -

"पिछले दो दिन से मेरे पेट में कुछ अजीब-सा हो रहा है ! मेरे पेट में कैंसर है ? "

"नहीं, कैंसर नहीं है !"

"तो फिर क्या है ? मेरे पेट में ऐसे क्यों हो रहा है ? पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ !"

डॉक्टर ने इस बार रानी के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया और उसको उठकर बाहर जाने का आदेश देते हुए परीक्षण-कक्ष से बाहर आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गयी। डॉक्टर के पीछे-पीछे रानी आयी, तो पुजारी जी ने रानी के सिर पर स्नेह-हस्त रखकर कहा -

"बिटिया, तू बाहर प्रतीक्षा कक्ष में बैठ ! मैं डॉक्टर साहिबा से दवाई लिखवाकर लाता हूँ !"

"जी काका !" कहकर रानी चिकित्सक-कक्ष से निकल गयी और बाहर आकर प्रतीक्षा-कक्ष में पड़ी बैंच पर बैठ गयी । रानी के जाने के बाद डॉक्टर ने पुजारी जी से मुखातिब होकर कहा-

लगभग पाँच महीने का गर्भ पल रहा है, आपकी बेटी की कोख में !"

"यह मैं जानता हूँ ! डॉक्टर साहिबा, दुर्भाग्य ही कह सकते हैं कि हमारी बेटी एक नर-पिशाच की हवस का शिकार होकर उसके दुष्कर्म का फल भोगने का को विवश है ! कुँवारी बच्ची है ! बच्ची का हित भी देखना पड़ेगा और समाज भी !" पुजारी जी ने डॉक्टर के चरणों में अपना सिर रख दिया।

"मैं आपकी पीड़ा और आपके कहने का तात्पर्य समझ सकती हूँ ! लेकिन, यह इतना आसान नहीं है, जितना आप समझ रहे हैं !" डॉक्टर ने सपाट शब्दों में कहा, तो पुजारी जी प्रश्ननात्मक मुद्रा में डॉक्टर की ओर देखने लगे।

"इसके दो कारण हैं- पहला, बच्ची के जनन-अंग अभी परिपक्व नहीं हुए हैं ! इससे इसके प्राण भी जा सकते हैं ! दूसरा, बिना पूर्व अनुमति के यह कार्य अवैध है, जोकि हमारे अस्पताल में नहीं होता है !" डॉक्टर ने पुनः भावशून्य मुद्रा में स्पष्ट एवं सपाट शब्दों में कहा।

पुजारी जी ने बेटी के भविष्य और ऐसी स्थिति में बेटी के प्रति समाज की संवेदनहीनता का वास्ता देकर डॉक्टर के समक्ष पुन: गिड़गिड़ाते हुए कहा -

"डॉक्टर साहिबा, मरीज के लिए डॉक्टर भगवान होता है ! एक आप ही हैं, जो मेरी बेटी को उसका जीवन जीने में सहायता कर सकती हैं ! वरना, समाज मेरी बेटी को जीने नहीं देगा !"

पुजारी जी की प्रार्थना सुनकर डॉक्टर के हृदय में रानी के प्रति कुछ संवेदना जगी। उसने कहा -

"देखो, यहाँ तो ऐसा-वैसा कुछ भी करना संभव नहीं होगा ! मैं यह भी आपको स्पष्ट बता देना चाहती हूँ कि ऐसा करने में आपकी बेटी के प्राण भी जा सकते हैं ! फिर भी, मैं आपको एक अन्य लेडी डॉक्टर का कार्ड देती हूँ ! आप इनसे संपर्क कर लीजिए ! हो सकता है, वह इस कार्य को करने के लिए तैयार हो जाएँ !" यह कहकर उसने एक विजिटिंग कार्ड पुजारी जी की ओर बढ़ा दिया। पुजारी जी कार्ड और डॉक्टर द्वारा लिखा हुआ रानी के नाम का पर्चा लेकर धन्यवाद कहकर बाहर निकल आये।

चिकित्सक-कक्ष से बाहर आते ही रानी ने पुजारी जी से पूछा -

"काका ! क्या बताया डॉक्टर ने ?"

"इस डॉक्टर को दिखाने के लिए कहा है ! चलो एक बार वहाँ भी दिखा लेते हैं !" पुजारी जी ने डॉक्टर द्वारा दिया हुआ कार्ड रानी को दिखाते हुए कहा ।

क्रमश..