बदमाश शैतान बिल्ला
आज सुबह मम्मी ने मुझे याद दिलाया कि मैं अपने दोस्त के लिए एक कटोरा दूध में एक रोटी डाल कर रख दूं किचन में रोटी तैयार है। वो तुम्हारी राह देख रहा है। असल में वो दोस्त था एक बड़ा सा कंजी आंखों वाला भूरा बिल्ला । जो रोज सुबह आता था।
कुछ दिन पहले तक मम्मी अखबार और दूध के लिए बाहर दरवाजे पर एक डलिया टांग देतीं थीं । रोज सुबह अखबार वाले भैया अखबार उस डलिया में डाल जाते , दूध वाले भैया दूध की तीन थैली उसी डलिया में डाल जाते यह सिलसिला कुछ दिनो तक चलता रहा पर एक दिन दूध वाले भैया दूध डलिया में डाल कर गए थोड़ी देर में पापा ने दूध की डलिया अंदर ले जाने के लिए उठाई तो देखा कि उन दूध की थैलियों मे से एक थैली फटी हुई थी पापा ने अंदर आकर मम्मी को बताया और कहा "मैं दूध वाले को फोन करके एक थैली दूध और मंगवा लेता हूँ" इस पर मम्मी ने कहा "ठीक है ।"
पापा ने दूध वाले को फोन करके एक थैली दूध और मंगवा ली अगले दिन भी ऐसा ही हुआ अब दूध वाले से ये कहा गया कि "दूध की थैलियाँ फूटी आ रहीं हैं जरा ध्यान दो।"
दूध वाले ने कहा "ये शिकायत रोजना आपके ही घर से आ रही है। बाकी कहीं से ऐसा नहीं हो रहा है।"
ऐसा लगातार कुछ दिन और चला। दूध वाला बड़बड़ाते हुए थैली दे ही जाता।
फिर एक दिन पापा को सुबह जल्दी कहीं जाना पड़ा तो उस दिन मम्मी बाहर दूध लेने निकलीं। उस दिन थोड़ी सी जल्दी भी थी। तो मम्मी ने पाया कि एक बड़ा सा कंजी आंखों वाला भूरा बिल्ला डलिया में पंजे के नाखून मार कर मजे में दूध चाट रहा है। मम्मी को बहुत गुस्सा आया। उनकी आंखों के सामने रोज का नजारा घूम गया। उन्होंने उसी दिन शाम को अगले दिन की दूध की थैली की जगह ढक्कन वाली बाल्टी टाँग दी अगले दिन पापा ने देखा कि दूध की डलिया हट गई है और उसकी जगह ढक्कन वाली बाल्टी ने ले ली।
पापा ने मम्मी से पूछा कि "दूध की डलिया कहाँ हैं"
मम्मी ने कहा "कल मैंने देखा कि एक बड़ा सा कंजी आंखों वाला भूरा बिल्ला डलिया में पंजे के नाखून मार कर मजे में दूध चाट रहा है। और मुझे लगता है कि इतने दिनों से जो दूध की एक थैली फटी हुई मिल रही है उसका कारण भी वो बिल्ला ही है इसलिए मैंने दूध के लिए डलिया हटाकर ढक्कन वाली बाल्टी टाँग दी ।"
अगले दिन से हम तीनों बहुत खुश थे क्योंकि अब दूध की थैलियाँ सही सलामत थीं।
हम लोग जितने खुश थे उतना ही दुखी बदमाश शैतान बिल्ला था क्योंकि अब उसे दूध की एक भी बूंद नहीं मिल रही थी अब वो बस सुबह शाम आ आकर घंटे भर दूध की बाल्टी का ढक्कन खोलकर दूध पीने की कोशिश करता पर वो ढक्कन नहीं खोल पाता तो हारकर बिल्ला वहाँ से चला जाता। अब यह रोज की बात हो गई पर एक दिन मुझे उस पर बहुत दया आई और उसे सुबह शाम एक कटोरा दूध देना शुरू कर दिया शुरू शुरू में वो बिल्ला डरा और बाद में गुस्सा दिखाकर दूध का कटोरा उलट दिया क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये दूध उसके लिए था। क्योंकि दूध पीने के चक्कर में पिट चुका था। फिर उसने सूंघकर थोड़ा सा पिया और चला गया। उस दिन मुझे अच्छा लगा। अगले दिन उसने पहले थोड़ा पिया और इधर उधर देखा और फिर पूरा दूध चट कर गया और जीभ से अपना म़ुह पोंछते हुए और मुझे देखता हुआ चला गया। मैं खुशी से उछल पड़ी। अब मेरा रोज का नियम हो गया। कभी कभार उस दूध में ब्रेड, रोटी के कुछ टुकड़े डाल देती जिसे वो बड़े मजे खाता है अब वो बदमाश शैतान बिल्ला बहुत खुश था ।
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