Meeri Char Kavitayain in Hindi Poems by Dr Narendra Shukl books and stories PDF | मेरी चार कविताए

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मेरी चार कविताए

घोटालेवाला

सर्दी की एक सुबह

जब मैं धूप में बैठा ‘क्लासीफाइड‘ में नौकरी तलाश कर रहा था -

अचानक , गली से आती हुई , एक आवाज़ कानों से टकराई ।

रातों -रात अमीर बनाने वाला

स्वर्ग की सैर कराने वाला

लो आ गया , घोटालेवाला घोटालेवाला ।

सब्सिडी ‘कैश‘ कराने को , इनकम टैक्स बचाने को

सस्ती जमीन हथियाने को , शहर में ‘दंगा‘ करानेे को

लो आ गया , घोटालेवाला घोटालेवाला ।

आओ बाबू, आओ लाला

आज ही अपना भाग्य बना लो -

घोटाले करवालो , घोटाले करवालो ।

मैंने , उसे बुलाया और पूछा -

भैया , क्या करवालो

घोटाले करवालो , साहब ।

मैंने पूछा -

भैया , किस - किस तरह के घोेटाले करवाते हो

गैस, चारा, राशन , कोयला और शेयर तो -

स्टाक क्लेरेंस के अन्तर्गत ‘ हैवी डिस्काउंट‘ पर हैं

हम ग्रहाक की इच्छानुसार , हर तरह के , हर किस्म के घोटाले करवाते हैं साहब ।

नौकरी चाहिये , नौकरी दे दूं ।

बीवी चाहिये , बीवी दे दॅूं ।

मैं ‘दस रूपये‘ में ‘एम ए ‘ का सर्टिफिकेट देता हूं हुज़ूर -

‘बीस‘ में ‘ इंजीनिरिंग ‘ का और ‘सा‘ में सीधे डाक्टर बना देता हूं ।

अच्छा , क्या बनना है , आप ही बताइये

‘बी़ ए़‘ के साथ ‘ बी़ एड‘ का सर्टिफिकेट एकदम ‘फ्री‘ पाइये ।

मैं हर तरह , हर किस्म की डिग्री छाप लेता हूं ।

घर बैठे ही क्लैक्टर बना देता हूं ।

मैं काली - कलूटी ‘कमला ‘ को मिस इंडिया‘ बना सकता हूं ।

टूटे घुटनों से ‘ओलैंपिक्स‘ जिता सकता हूं ।

एक बार आज़मा कर देखों , मान जाओगे ।

लो , यह क्या , आप जा रहे हैं -

अजी हुज़ूर , कतराइये नही

घबराइये नहीं , शरमाइये नहीं ।

यहां आइये , यह लीजिये -

एकदम ताज़ा और फ्रैश

मैच फिक्सिंग का घोटाला ।

इससे पुस्तें पल जाती हैं

गालें लाल हो जाती हैं ।

मैं, सी़ बी आई की जांच ‘फ्री‘ करवाता हूं

खुद पैसे खाकर , सो जाता हूं ।

मुझे किसी का डर नहीं

लाल बत्ती गाड़ी में , डंके की चोट पर चलता हूं

हर पार्टी , हर महफिल में धूमकेतू की तरह चमकता हॅं ।

नहीं नहीं , मुझे कुछ नही करवाना -

जाओे बाबा , जाओ ।

जाता हूं , जाता हूं , लेकिन कहे जाता हूं -

बाद मे पछताओगे ।

यह देश ‘वी आई पियों ‘ का है

यहां बेरोजगारी का अडडा है ।

भुखमरी , अशिक्षा का जमघट है ।

यहां , तुम जैसे ‘बाबूओं‘ के लिये कुछ नहीं है ।

और फिर , खाली हाथ , तुम कर भी क्या पाओगे -

यहां नहीं तो वहां , खुद को फांसी पर लटकाते नज़र आओगे ।

यहां नहीं तो वहां , खुद को फांसी पर लटकाते नज़र आओगे । ।

- डा. नरेंद्र शुक्ल

लोकतंत्र

चार नेता नुमा व्यक्ति

उठाए लिये जा रहे थे

उसे -

मुर्गे की तरह

लटठ पर लटकाये हुये ।

मैंने पूछा -

किसे उठाये लिये जा रहे हो ?

लोकतंत्र है साहब

मासूम लोगों को भरमाता था

झूठे सपने दिखाकर ।

आज पा गया अपनी करनी का फल

ससुरा , सड़क के नीचे गटर में पड़ा था ।

देखते नहीं , कितनी खरोंचे उभरी हैं

चेहरे पर ।

देखकर , आंखें सर्द हो गई मेरी

ओठों से , अनायास -

च. . . च ... की ध्वनि हई ।

शायद -

इससे कुछ राहत मिली

परिवारजनों को

चुपचाप कफन उढ़ा दिया ।

अचानक , देखता हूं -

कफन उघाड़

उठ बैठा है ।

मैंने , घुटनों के बल बैठकर

हल्के से उसके माथे को सहलाया -

किसने की है , तुम्हारी यह दशा ?

वह , मूक देखता रहा

मेरी ओर अपलक -

मैंने, हौंसला दिया

उसके कंधों को थपथपाया

वह -

कुछ न कह

पर कटे पक्षी की तरह

तड़फडा़ता रहा ।

पर कटे पक्षी की तरह

तड़फडा़ता रहा ।।

- डा. नरेंद्र शुक्ल

ट्रैफिक पुलिस

एक दिन -

ज्यों ही मुड़े हम दायें से

धर लिये गये बायें से ।

सामने थे , वर्दीधारी भगवान

देखते ही सूख गये प्राण ।

उसने मुझे देखते ही , मूछों के बाल मरोड़ दिये

मैंने दोनों हाथ जोड़ दिये ।

हे भगवान , कुछ करवाओगे

या , यूं ही मरवाओगे ।

इन सफेदपोशों से हम ही नहीं बच पाते

तुम्हें क्या बचा पायेंगे

तुम्हारे साथ हम भी व्यर्थ ही फांसेे जायेंगे ।

उसने कुटिल-मुस्कान से कहा -

हमारे नियमों का उल्लंघन करते हो ?

हरी छोड़ , पीली में मुड़ते हो ।

सोचो , कितना बड़ा अपराध है

हमारे लिये माफ है ।

चालान होगा ।

सुनाई पड़ा -

कल्याण होगा ।

एकांत मे आओ

सुनाई पड़ा -

लाओ ।

फिल्हाल , तो ‘सौ ‘ ही हैं ज़नाब

फिर, छूटने के न देख ख्वाब ।

चार चक्कर लगायेगा

स्वयं जान जायेगा ।

निकाल ओर पैसे

छोड़ देते हैं , ‘वैेसे‘ ।

आकाशवाणी हई -

क्या करते हो ?

घास खोदते हैं , हमने कहा ।

वैसे , ‘आपके‘ ठाकूर साहब हमारे जानकार हैं ।

कहिये , कुछ सिफारिश करूं

या , यूं ही कछ फरमाइश करूं ।

नाम जपते ही जान में जान आई

सोचा , लो तुम्हारी बारी आई ।

नाम के प्रभाव से -

उनके पैर उखड़ गये

तुरंत लुढ़क गये ।

कठोरता छोड़ , कोमलता पर आये ।

और , लगभग पुचकारते हुये कहा -

तुमने अब तक बहुत सहा ।

यूं ही खड़े रहे

व्यर्थ ही अड़े रहे ।

मन ने प्रशन किया -

स्थिति में परिवर्तन तो इस युग में भगवान भी नहीं कर सकता

फिर , एक अधिकारी नाम ने कैसे कर दिखाया ।

तर्कों ने ज़वाब दिया -

भगवान , अज्ञानी व शैतान है

जबकि अधिकारी महान है ।

जबकि अधिकारी महान है ।।

- डा. नरेंद्र शुक्ल

चुनावी मेला

चुनावी मेले में नेता अपनी - अपनी - कपैस्टी से चिल्ला रहे थे -

रंग - बिरंगे वायदों से पब्लिक को लुभा रहे थे ।

पहले स्टॅाल के बाज़ू वाले नेता का स्वर ओज़स्वी था

प्रतिद्वंद्वी नेताओं के स्वरों को बड़ी ‘इज़ली‘ काट रहा था -

आओ देश के नौवजवानों आओ -

नौकरी का आश्वासन तुरंत पाओ ।

पिता जी , माता जी़ आप भी आइये -

वोट के बदले बुढ़ापा पेंशन कार्ड बिल्कल ‘फ्री ‘ पाइये ।

हे अन्न उगाने वालों , हमारे पास आपके लिये भी खजा़ना है -

आने वाले ‘पांच सालों ‘ में नदियों का पानी जोड़ दिया जाना है ।

इसलिये , हमें जिताओं , अपनी फसल का मुंह मांगा दाम पाओ ।

बहनों , भाभियों -

घबराओं नहीं , शर्माओ नहीं , तुम भी आगे आओ -

हम आपके लिये भी कुछ लाये हैं , सोने के दाम घटाये हैं ।

फौरन, यहां ‘पीं‘ बजायें

एक सिल्क की साड़ी के साथ , दो लाख के हार का ‘कूपन‘ बिल्कुल मुफत पायें ।

देश की अर्थव्यवस्था बनाने वाले व्यापारियों -

हमने आपके लिये भी कुछ सोचा है

अगर , इस बार भी साथ दिया तो , तमाम ‘टैक्स‘ दूर भगायेंगे

देश का पैसा देश में ही मिल - बैठ कर खायेंगे ।

रे मजदूर , रे मजदूर -

तू नहीं रहा कभी ‘इन‘ आंखों से दूर

उठा बोतल , झूम ले प्यारे , हमी हैं , पितु- मातु , सखा तुम्हारे ।

जान ले ए दोस्त , अगर अपने भाग्य को है चमकाना

तो ‘डूबती नैया‘ को ही बचाना ।

वायदा करते हैं तुझसे , स्वर्ग को यहीं खींच लायेंगे

आप सभी को ‘ फील -गुड‘ करायेगें ।

पब्लिक को जाता देख उधर -

हाथ में पिस्तौल झुलाता , एक गुंडा नुमा नेता गुरराया इधर

भाइयो और बहनों , उधर देखना भी पाप है

इधर , तुम्हारा बाप है ।

अगर उसकी नैया को बचाओगे , तो अपनी नैया यहीं डुबाओगे ।

पिस्तौल टेबल पर रख , लगभग पुचकारते हुये वह बोला -

सुन मेरे यार , गर बीवी - बच्चों से है प्यार

तो ले, ये पिस्तौल है तैयार , इसी पर ‘पीं‘ बजाना

अपना पयूचर स्वयं बनाना ।

पब्लिक को खिसकता देख , वह बोला -

डरने की क्या बात है ,पुलिस , सी़ बी आई सब साथ है ।

वायदा करते हैं तुझसे , ‘कैश फलोे‘ बढ़ायेंगे ।

चोरी , अपहरण ,डकैती और घोटाला

जैसे भी हो सकेगा , घर का ‘रैवन्यू‘ बढ़ायेंगे ।

चौतरफा हंगामा होने पर भी कुछ न बिगडे़गा हमारा , सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा ।

राजनीतिक फार्मूले की इसे ‘ओवरडोज़‘ से -

चैथे स्टॅाल का नेता ‘बोरी - बिस्तरा‘ लेकर भाग गया

पांचवें को लकवा मार गया ।

छठे स्टॅाल का नेता राजनीति में ‘व्यस्क‘ नहीं था -

रामराज्य , समाज़वाद , व अहिंसा जैसे उल-ज़लूल शब्द बकता था

राजनीति को सच्चााई व ईमानदारी से तौलता था ।

यूं , तो वह भी ‘वायदो‘ का पिटारा लाया था -

मगर , इन गुरूओं के आगे , कछ न बोल पाया

पर कटे पक्षी की तरह तड़फड़ाया और वहीं जमीन पर गिर पड़ा ।

सातवें , स्टॅाल के दारू का धंधा करने वाले नेता ने -

अफीम बेचने वाले , आठवें , स्टॅाल के नेता के कान में कहा -

राम नाम सत्य है ।

राम नाम सत्य है ।।

- डा. नरेंद्र शुक्ल