Gadhey he gadhey in Hindi Comedy stories by Dr Narendra Shukl books and stories PDF | गधे ही गधे

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गधे ही गधे

गधे ही गधे

एक चैराहे पर खड़े चार गधे एक दूसरे के सामने अपना - अपना दुखड़ा रो रहे थे । काने गधे ने चितकबरे गधे से कहा - यार, पिकू, मेरा मालिक मुझे बड़ा पीटता है । दिन भर काम करवाता है चैन से खाने भी नही देता । चितकबरे गधे ने रोते हुये कहा - मेरा मालिक भी मुझे चैन से नही सोने देता हमेशा गालिया देता रहता है । सामने बस स्टैड के बाजू वाली गली मे एक कजरारे नयनो वाली सावली कितु सुघड़ गधी देखते हुये मिकू ने कहा - दोस्तो मेरा भी कुछ यही हाल है । चैथा गधा, जिसका नाम, राजू था, ने अपनी पूछ से अपनी पीठ सहलाने हुये कहा - यार, हमसे अच्छा तो गली का शेरू है । भौकता भी है और दाव लगने पर काट भी खाता है । गली की सारी सुदर औरते बड़े प्यार से उसे अपने हाथो से खाना खिलाती है ।... पार्क के मच्छर तक हमसे अच्छे है । एक बार इसान को पा जाते है तो बिना बिना काटे नही छोड़ते । कुनैन तक की गोली खानी पड़ती है । सात दिनो तक उठना - बैठना भारू हो जाता है । चितकबरे गधे ने राय दी - क्यो न हम अपनी यूनियन बना ले । सब एक साथ रहेगे तो कोई हमारा बाल भी बाका नही कर पायेगा । बस स्टैड के बाजू वाली गली की सुदर - सलोनी गधी को उसका आशिक ले जा चुका था । मिकू ने चलते हुये कहा - क्यो नही, हम कल इसी जगह मिलेगे और आगे की रणनीति पर विचार करेगे । चारो गधो ने एक ही स्वर मे मिकू के प्रस्ताव का समर्थन किया और अपने - अपने घर चले गये ।

अगले दिन मिकू सावली - सुदर व सलौनी गधी को भगा ले गया और बाकी गधे गधे रह गये ।

गधो को मूर्खता का पर्याय समझा जाता है पर, मेरी नज़र मे गधा अत्यत मासूम, सवेदन व सहनशील प्राणी है । हमेशा अपने मालिक की सेवा मे लगा रहता है । कभी प्रतिकार नही करता । हम अपने आपको शेर, चीता, बाज़, आदि कहलवाना पसद करते है । लोमड़ी व बगुला भक्त तक कहे जाने मे हमे गुरेज़ नही लेकिन, गधा कहे जाने पर हम मरने - मारने पर उतारू हो जाते है । एक रामलीला मे मदोदरी के महल के पर्सनल बोडिगार्ड को जुआ खेलने के जुर्म मे अचानक पुलिस पकड़ कर ले गई । रामलीला मे अफड़ा - तफड़ी मचती देखकर आयोजक ने घर के माली को दारू की एक बोतल का लालच देकर टैपरेरी बोडिगार्ड नियुक्त कर लिया लेकिन मच पर जाते ही वह अपने डाॅयलाग भूल गया और मच पर पर्दे के पीछे से बार - बार इशारा करने पर भी वह डायलाग न बोल पाया । अब रावण, जो स्वय रामलीला का आयोजक भी था, की स्थिति खिसियानी बिल्ली खबा नोचेे जैसी हो गई । वह बड़े गुस्से से माली की ओर बढ़ा और तलवार खीचते हुए दहाड़ा - अबे गदहे हम पूछते है कि मदोदरी कहा है और तू साले मुह मे दही जमाये बैठा है । माली तिलमिला गया । आगे बढ़ते हुये बोला - हमका गदहा कहात हो... न तुम कही के गर्वनर हो..। जाओ नाही बताइत ..। रावण ने फिर आखे दिखाई, लेकिन इस बार माली से न रहा गया । वही से पेट मे भाला कोचते हुये गुर्राया - आख दिखावत ही..। ससुरउ आँख दिखावत ही । ज्यादा बोलबो तो ई अखिया निकाल के हाथ मा पकड़ा देअब । खड़े - खड़े सूरदास बना दिअब । जान्यो कि नाही ।.. आख दिखावत ही..। देय का एको रूपया नाही । आख दिखावत ही..। हमका गदहा कहात ही । जाओ नाही बताइत कर लियो जो करना है । आयोजक चुपचाप टेट मे चला गया । वकील अक्सर अपने कलाइ्रट को गधा बने रहने की सलाह देते है । उनके अनुसार कानून से बचे रहने का यही सबसे उत्तम तरीका है ।

एक काव्य सम्मेलन मे एक उभरता हुआ कवि एक मझे हुये कवि की कविता इस अदाज़ से सुना रहा था जैसे वह स्वय कविता का रचयिता हो । उभरता हुआ कवि एक सच्चा कवि था । उसने कसम खाई हुई थी कि न तो वह स्वय की कोई कविता रचेगा और न ही उसे किसी मच से सुनायेगा । पड़ोसियो के घर मे लगी अगूर की बेल को अपने घर मे दो बल्लिया गाड़ कर छवा लेने की कला मे उसका कोई सानी नही था... वैसे भी हाथ न आने पर अगूर खटटे हो जाते है । इस उभरते हुये कवि के काम मे इतनी सफाई व पवित्रता थी की कोई उसकी कविता को चुरा नही सकता था अलबत्ता कभी - कभी तो मूल कवियो को यह शक हो जाता था कि उक्त कविता उन्होने लिखी भी है या नही । सभा मे मूल कवि तालिया बजाते हुये कहते - वाह, क्या खूब कहा है - इधर भी गधे है, उधर भी गधे है ।

जिधर देखता हू, गधे ही गधे है ।

मच के दायी ओर की चैथी कुर्सी पर बैठे डॉक्टर वर्मा से न रहा गया वही से पाव बढ़ाकर लड़गी मारी - अबे गधा किसे कहता है मै एम.बी.बी.एस हू.... यू इडियट ! तेरे जैसे लोगो का मै रोज़ इलाज़ करता हॅू । डॉक्टर वर्मा अग्रेजी को हिदी से अधिक महत्तव देते थे उनका मानना था कि अग्रेजी बोलने वाला साहब और बाकी सब उसके मातहत होते है । वह कभी भी किसी को भी गाली दे सकता है । आस - पास बैठे कविता के मर्मज्ञो द्वारा चुप रहने का सकेत देखकर इस बार आवाज़ का वॅाल्यूम कुछ कम करते हुये उन्होने थोड़ा नरमी से कहा - लगता है आखो मे मोतिया उतर आया है । मेरे क्लिनिक पर मोतिया का शर्तिया इलाज़ कैप लगा है आ जाना आई विल्ल मेक यू हैप्पी । डॉक्टर वर्मा एक नया मरीज़ पाकर बेहद खुश थे जब से ननकू ऑपरेशन काड केस मे लोकतत्र के चैथे स्तभ कहे जाने वाले मीडिया द्वारा ब्रेकिग न्यूज़ के रुप मे हर दस मिनट पर जनमानस के समक्ष उजागर हुआ है तब से डॉक्टर साहब खुद लकवे के शिकार है । कैची पकड़ते हुये उनके हाथ कापने लगे है । दरअसल पथरी का ऑपरेशन करते हुये मरीज़ ननकू के पेट मे उनकी कैची रह गई थी और पेट पुनः खोलते हुये वे अपना तौलिया भूल गये थे । बहरहाल, लड़गी इतनी जोर की थी कि एक पल के लिये उभरता हुआ कवि लड़खड़ा गया लेकिन दूसरे ही पल सभलता हुआ फिर बोला -

इधर भी गधे है, उधर भी गधे है

जिधर देखता हू, गधे ही गधे है ।

अबकि मच के बायी ओर बैठी मशहूर मोडल पूनम के बगल मे बैठे शहर के मशहूर उद्योगपति, जिनका कालिया रेसीडेस सोसाइटी के बगल मे, बहुजन हिताय दीन बधू विद्यालय के साथ लगती दीवार के साथ कायदे से शराब का एक ठेका भी है, दात किटकिटाते, कितु गोष्ठी की मर्यादाओ को ध्यान मे रखते हुये उभरते हुए कवि को डाटा - व्हाट नोननसेस । दाये बैठी महिलाओ को अपनी ओर घूरते हुये देखकर वे मुस्कराते हुये बोले - आई थिक ही इज मोर डकी । मिस्टर कालिया हैडसम थे लेकिन शादी अभी नही हुई थी । पार्टियो मे वे हाट बैचलर माने जाते थे । पिछली पकित मे बैठी महिलाये खुश थी । महिलाओ को गधा नही कहा जाता ।

एक अधेड़ माडर्न कवयित्री ने अपनी बिखरी जुल्फ़ो की लटो को कान पर चढ़ाते हुये उभरते हुये कवि की प्रशसा मे तालिया बजाई - वाह क्या खूब कहा... कमाल कर दिया वाह गधे ही गधे है । बाजू वाली सीट पर बैठी मोहल्ला किटटी पार्टी की आर्गेनाइज़र स्वीटी ने मार्डन कवयित्री से पूछा - उर्मि ! क्या सभी मर्द गधे होते है । - उर्मि ने काउटर प्रश्न किया - क्या तेरा लकी गधा नही है । स्वीटी ने अपने शाइनिग लाल होठ सिकोड़ते हुये कहा - हू है तो... पर थोड़ा - थोड़ा । कभी - कभी दुलत्ती मार देता है, कहता है सर्दी मे ठडे पानी से मै बरतन साफ नही करुगा । किचन मे हीटर लगवाओ । पास बैठी काता ने कहा - मेरा पति घोड़ा है । सरपट भागता है । वह स्वीटी से आगे निकल जाना चाहती थी । पतियो की इस रेस मे अमेरिका रिर्टन, हाल मे ही मिसिज़ बनी डेज़ी ने कहा - माई हसबेड इज़ माई लिटिल पपी यू नो आलॅवेज़, मेरे पीछे - पीछे घूमता है । माई लिटिल बेबी । आजकल पति कब बेबी हो जाये और बेबी कब कुत्ता हो जाये, कहा नही जा सकता ।... खैर, प्यार मे सब कुछ जायज़ है । अपनी प्रशसा सुनकर उभरता हुआ कवि और जोर से रेका - जवानी का आलम गधो के लिये है । अपना सब कुछ लुटता देखकर पास बैठे सत्तर साल के काने काका ने अपने जबड़ो मे दात खोसते हुये कहा - भैया.. हमहू जवान है । लड़ाय के देख लियो । नचाय के देख लियोे..। सुबह - शाम दिन मे दो बार दड पेलते है.. आजकल के इन मरियल छोकरो की तरह नही कि दस कदम पैदल चले नही कि मिरगी आने लगी । उभरते हुये कवि को भरी जवानी मे बुढ़ापा दिखाई देने लगा । उसने सिर घूमाकर एक पल काने काका की ओर देखा और दूसरे ही पल सिर झटक कर आगे बढ गया - तू पिलाये जा साकी तू पिलाये जा डटके मटके के मटके... मटके के मटके.. । सामने बैठे सरदार जी से न रहा गया । जेब से पउआ निकालकर पीते हुये मच पर चढ़ गये और उभरते हुये कवि से माइक छीन कर गाने लगे - पिलाये जा डटके मटके के मटके. मटके के मटके.. । इससे पहले कि आयोजक उन्हे मच से उतारते उन्होने उभरते हुये कवि के कान पकड़कर उसके गालो पर ताबड़ तोड़ चार - पांच चुम्मे जड़ दिये - ओह मुडिया कमाल कर छडिया... जे मटिकिया च विस्की दी था दारु पा लैदा ता होर नज़ारे आणे सी । मच पर बैठे चीफ गैस्ट ने माथे पर हाथ रखते हुये कहा - व्हाॅट रबिश ! गदा कही का । इतना भी नही जानता कि विस्की को ही दारु कहते है । मै और डॉक्टर प्रोफेसर जे. पी . चोपड़ा मच के सामने बीचो - बीच सबसे पीछे बैठे थे । लिहाज़ा उभरते हुए कवि के रेडार मे नही आ रहे थे । वैसे भी मच पर चढ़ा कवि इधर - उधर ही देखता है । मैने अपने साथ बैठे डॉक्टर प्रोफेसर जे. पी. चोपड़ा के कान मे कहा - डॉक्टर प्रोफेसर चोपड़ा जी कितना कच्चा गधा है दो ही घूट मे झूम रहा है । यहा पूरी बोतल पीने पर भी गले मे तरावट नही आती । डॉक्टर प्रोफेसर चोपड़ा हिदी के रिटायर्ड प्रोफेसर थे । हिदी के डॉक्टर ही सचमुच के डॉक्टर होते है । यह उन्हे पता था । डॉक्टर बनने के बाद, शुरुआती दिनो मे वे बड़ी शान से अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाते थे और अगर कोई परिचित उन्हे डॉक्टर न कहता तो वे उससे सदा के लिये सबध विच्छेद कर लेते थे । लेकिन प्रोफेसर बनने के बाद मामला थोड़ा पेचिदा हो गया । अब उन्हे यह समझ नही आ रहा था कि वे अपने आप को डॉक्टर कहे या प्रोफेसर । इसी उधेड़ - बुन मे वे रिटायर हो गये । सारी उमर वे हिदी के शिक्षक रहे, लेकिन राप्ट्र भाषा घोषित होने के लगभग 64 साल के बाद भी जिस प्रकार लोग आज भी हिदी को अछूत समझते है उसी प्रकार पड़ोसियो व सगे - सबधियो द्वारा हीन समझे जाने के कारण उन्होने रिटायर होने के बाद अपने घर के बाहर मुगल समा्रठ शहाजहा की तरह सगमरमर के पत्थर पर खुदवा लिया - डॉक्टर प्रोफेसर जे. पी. चोपड़ा लेकिन, उनकी बीवी मुमताज न होकर ललिता निकली। वह आयकर विभाग मे सुपरीटेडेट थी और सुपरीटेडेटी के सारे गुर जानती थी इसलिये असैसी के आते ही वे डॉक्टर साहब को तरकारी लाने बाज़ार भेज देती थी । डॉक्टर साहब को तरकारी लाते - लाते आत्मज्ञान प्राप्त हो गया था ओर वे बातो ही बातो मे डॉक्टर चोपड़ा से डॉक्टर प्रोफेसर जे. पी. चोपड़ा हो गये । अब पहले की तरह कोई उन्हे केवल डॉक्टर कहता तो वे आजकल की प्रेमिकाओ की तरह ब्रेकअप के लिये धमकी देने लगते । वे चाहते थे कि लोग उन्हे डॉक्टर प्रोफेसर कहे ताकि वे नील अमास्ट्राग हो जाये । जे. पी . से अब उन्हे इतना लगाव नही रह गया था । खैर, इससे पहले कि वे कुछ जवाब दे ते उनका मोबाइल बज उठा । आजकल हम पतलून के बटन बद करना बेशक भूल जाये लेकिन मोबाइल हाथ मे लेना नही भूलते । जमाना प्रगतिशील है । हम सब वी. आई. पी हो चले है । सोते - जागते, उठते - बैठते हमे कोई न कोई काम हो सकता है । डॉक्टर प्रोफेसर चोपड़ा ने फोन पर हाथ रखते हुये मुस्कराते हुये कहा - माफ करना, ज़रा वाइफ का फोन है । मैने अपना मुह दूसरी ओर घुमा लिया लेकिन, जहा किसी दूसरे की वाइफ का मामला हो मेरे कानो व आँखो की कपैस्टी बढ़ जाती है । डॉक्टर प्रोफेसर चोपड़ा ने मोबाइल कान पर लगाते हुये कहा - हलो ! कि पये करदे हो । उधर से आवाज़ आई - मेरी जूती कित्थे रखी है । तुहानू किनी बारी किहा है दस के जाया करो । तुहाडे कन्न ते जू तक नही रेगदी । खसमा नू खाणिया..तुहाडा मै की करा । डॉक्टर प्रोफेसर चोपड़ा ने सहमते हुये बडे प्यार से कहा - डार्लिग कि पई कहिदे हो । मै कल ही तुहाडी जुत्ती लिया दिती सी । पलग दे निच्चे देखो सा । उधर से आवाज़ आई - खसमा नू खाणिया दृ राशन लियाए हो ? डॉक्टर प्रोफेसर चोपड़ा ने कहा - परची मेरी जेब च है । आदे होये लिआवागा । तू एवे ही औखी होई जादी है । मिसरी पा मुह च.. । उन्होने फोन काट दिया । मैने पूछा - प्रोफेसर साहब, भाभी जी क्या कह रही थी । वे बोले - कुछ नही, हाल - चाल पूछ रही थी । सुबह से ही खासी है । मैने मन मे बिना किसी श्रद्धा के कहा - मुझे गधा समझ रहा है । बच्चू मै तेरा बाप हू । प्रकट मे मुस्कराते हुये कहा - क्यो, आपको क्या हुआ ? वे जबरदस्ती खाॅसते हुये बोले - । सुबह से ही खासी है । मैने कहा - चलो आपकी बारी आने वाली है । उन्होने कविता निकालने के लिये जेब टटोली लेकिन, कोट की जेबो से उनकी उगलियाॅ बाहर आ गई । मैने कहा - प्रोफेसर साहब, पतलून की जेब देख लो । शायद, वहा रखी हो । उन्होने पतलून की जेब मे हाथ डाला । राशन की पर्ची निकली लेकिन कविता नही निकली । वे बोले - लगता है वाइफ ने कागज़ बदल लिया है । डॉक्टर प्रोफेसर चोपड़ा कविता ढूढ़ ही रहे थे कि मोबाइल फिर बज उठा । मैने कहा -- प्रोफेसर साहब, भाभी जी ने फिर याद किया है । कमाल है इस उम्र मे भी इतना ख्याल रखती है । डॉक्टर प्रोफेसर चोपड़ा ने मोबाइल कान पर लगाते हुये कहा - हलो । उधर से आवाज़ आई -तुसी कित्थे हो ?

वे बोले - डॉक्टर कोल हा.. खासी वद गई है । दवाई लै रिहा हा । मै मुस्कराया । उन्होने फोन पर हाथ रख कर आख मारते हुये कहा - कहना पड़ता है । बहुत प्यार करती है न ! ज़रा सी बीमारी देखकर घबरा जाती है । उधर से वाइफ की आवाज़ आई - सारा दिन दवाइया खादे रिहा करो । खसमा नू खाणिया.. पता नही किहड़िया - किहड़िया बिमारिया लगीया होइया ने । तूसी कद तक आणा है । मै बाला नू मेहदी लाई होई है । घर दा सारा कम्म पिया है । सफाई वाली नू वी अज ही मरणा सी ।.. तुसी सुणदे हो... आदे होए कल्लू हलवाई दी दुकान तो अददा किल्लो गुलाब जामुन वी लैदे आयो... मुह सुकदा पिया है । जल्दी आओ.. खसमा नू खाणिया.. खोते वाग इदर - उदर घुम्मी जादे हो ।

इधर प्रोफेसर साहब बुदबुदाये -.. मैनू खोता समजदी है.. न.. मै खोता हा.. । मैने मन मे कहा - मुझे तो रत्ती भर भी सदेह नही है। प्रकट मे कहा - प्रोफेसर साहब, भाभी जी क्या कह रही थी । प्रोफेसर साहब फिर बुदबुदाये -.... मैनू खोता समझ रही है ।... मै सारे घर दा ठेका लिता होया है ।.. सारा दिन खोतिया वाग कम्म करदा रवा..। हू..जा नही करदा मै। मैने कहा -.. क्या बात है प्रोफेसर साहब ! अपने आप से ही बाते कर रहे है। भाभी जी ठीक तो है ! वे नीद से जाग गये थे - कुछ नही.. तुम्हारी भाभी सीढ़ियो से गिर गयी है.. अभी घर जाना होगा । मैने कहा - ज्.यादा चोट तो नही लगी । उन्होने उठते हुये कहा - अरे नही.. । घर चल कर देखता हॅू। मैने चुटकी ली - उधर, कल्लू हलवाई की दुकान की ओर से जाना शार्टकट है जल्दी पहुचोगे । वे चले गये । इधर उभरते हुये कवि की कविता पर सभा मे उपस्थित सभी विद्वानो ने वैल्डन गधे कह कर उभरते हुये कवि को प्रसिद्ध होने का अवसर दिया और मै सोचने लगा सरकार महगाई के डोज़ पर डोज़ दिये जाती है और हम टुकुर- टुकुर देखते रह जाते है । आज हम आपसी रजिश मे कभी जमीन के एक टुकड़े के लिये तो कभी बाप - दादाओ की सपति के बटवारे के नाम पर अपने ही भाइयो का कत्ल कर रहे है । कहीे होली के नाम पर सैकड़ो लीटर पानी बहाया जा रहा है । कही पानी के अभाव मे लोग गदे नालो का पानी पीने के लिये मजबूर है । कही गदे खाने के रूप मे बच्चो को बीमारियाॅ परोसी जा रही है । कही अधविश्वास के चलते औरते ठगी जा रही है । कही सीमेट मे अधिक रेत मिलाने से सरकारी इमारते गिर रही है । नव - निर्मित पुल टूट रहे है । कही लोग पाई - पाई को मोहताज़ है तो कही विदेशो मे अकाउट खुलवाये जा रहे है । कही लूटखोरी है कही सूदखोरी है । कही ट्रफिक नियमो को मनवाने के लिये, घूस के अभाव मे, बिना हैल्मैट के बाइक सवार छात्रो का वायरलैस मार कर सिर फोड़ा जा रहा है । हम पर कभी आलू- प्याज़ टमाटर लाद दिया जाता है तो कभी डीज़ल - पैट्रोल के दाम बढ़ाकर, वाहन होते हुये भी, खाली सिलेडर लाद कर चरने पर पर मज़बूर कर दिया जाता है । हम सब कुछ सहते हुये भी हर पाच साल के बाद मालिक के रूप मे उन्हे ही चुनते है..। हम सुबह न्यूज़ पढ़ते है और शाम को बीवी के साथ फिल्म देखने चल देते है । कही कोई सवेदना नही..। कोई प्रतिकार नही ।.. क्या हम असली गधे नही है.. और अचानक.. एक झन्नाटेदार झापड़ के साथ सुनाई पड़ा -... इडियट.. गधा कही का । मैने देखा.. दरअसल.. भावनावश.. मेरा दाया पैर अगली सीट पर बैठी एक नई - नवेली हिन्दी कवयित्री के बाये पैर से उलझ गये था ।

- डा नरेद्र शुक्ल

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