हिमालय की ढलानों पर रात पूरी तरह उतर चुकी थी। देवदार के घने जंगल के बीच बने छोटे-से कैम्प में एक अलाव जल रहा था, जिसकी लपटें सबके चेहरों पर नारंगी रोशनी बिखेर रही थीं। ठंडी हवा तम्बुओं को हल्के-हल्के हिला रही थी और जंगल की ख़ामोशी सिर्फ़ आग की चटकती आवाज़ से टूट रही थी। बीस साल बाद कॉलेज के छह पुराने दोस्त—विक्रम, राधिका, रोहन, जुही, समीर और रंजीत—फिर वही पुराना गोल घेरा बनाकर बैठे थे, जैसे कभी हॉस्टल की छत पर या लॉन में बैठते थे। जुही ने गर्म चाय का मग थामते हुए काँपती आवाज़ में कहा, “हाय राम, ये ठंड और ये पागलपन किसका आइडिया था? ट्रेकिंग री-यूनियन… सच में!” विक्रम हँस पड़ा। “अरे, गोवा ट्रिप की उम्र अब कहाँ बची है हममें? यहाँ बियाबान में, शहर से कोसों दूर, खुलकर गपशप होगी।”
उस बाथरूम में कोई था - अध्याय 1
हिमालय की ढलानों पर रात पूरी तरह उतर चुकी थी। देवदार के घने जंगल के बीच बने छोटे-से कैम्प एक अलाव जल रहा था, जिसकी लपटें सबके चेहरों पर नारंगी रोशनी बिखेर रही थीं। ठंडी हवा तम्बुओं को हल्के-हल्के हिला रही थी और जंगल की ख़ामोशी सिर्फ़ आग की चटकती आवाज़ से टूट रही थी। बीस साल बाद कॉलेज के छह पुराने दोस्त—विक्रम, राधिका, रोहन, जुही, समीर और रंजीत—फिर वही पुराना गोल घेरा बनाकर बैठे थे, जैसे कभी हॉस्टल की छत पर या लॉन में बैठते थे। जुही ने गर्म चाय का मग थामते हुए काँपती आवाज़ में कहा, ...Read More
उस बाथरूम में कोई था - अध्याय 2
अलाव की गरम लपटें अभी भी हल्की-हल्की तड़क रही थीं, मगर अब किसी की भी नज़रें आग पर नहीं सबका ध्यान बस रंजीत पर टिक गया था—उसकी आँखें जैसे उस अँधेरे जंगल में कहीं अटक गई थीं, कहीं बहुत पीछे, किसी बीते हुए समय में। राधिका ने धीमे स्वर में पूछा, “रंजीत… क्या हुआ था वहाँ?” रंजीत ने एक लंबी साँस ली, जैसे किसी जमे हुए स्मृति-ताले को खोल रहा हो। फिर उसने बोलना शुरू किया— करीब आठ-नौ साल पहले की बात है, जब मुझे सुबह-सुबह फोन आया—मौसा जी नहीं रहे। अचानक। मैं स्तब्ध रह गया। उनकी तबीयत ठीक ...Read More