गुरु जी डॉ0 सूर्यपाल सिंह से मैं दो वर्ष से सम्पर्क में हूँ। प्रारम्भ में गुरु जी के बोले शब्दों को लिखने के लिए ही आया था। धीरे-धीरे उनके साहित्य को भी पढ़ने में रुचि जगी। उनके बहुआयामी व्यक्तित्त्व को भी जानने-समझने की कोशिश की। वे साहित्यकार, शिक्षाविद् ही नहीं एक प्रबुद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता भी हैं। उन्होंने चालीस वर्षों तक अध्यापक एवं प्राचार्य के रूप में सेवा की। सन् दो हजार में महाविद्यालय के प्राचार्य पद से पन्द्रह वर्ष सेवा कर सेवानिवृत्त हुए।
नकल से कहीं क्रान्ति नहीं हुई - 1
नकल से कहीं क्रान्ति नहीं हुई डॉ0 सूर्यपाल सिंह साक्षात्कार साक्षात्कर्ता : जीतेश कान्त पाण्डेय निवेदनगुरु जी डॉ0 सूर्यपाल सिंह से मैं दो वर्ष से सम्पर्क में हूँ। प्रारम्भ में गुरु जी के बोले शब्दों को लिखने के लिए ही आया था। धीरे-धीरे उनके साहित्य को भी पढ़ने में रुचि जगी। उनके बहुआयामी व्यक्तित्त्व को भी जानने-समझने की कोशिश की। वे साहित्यकार, शिक्षाविद् ही नहीं एक प्रबुद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता भी हैं। उन्होंने चालीस वर्षों तक ...Read More
नकल से कहीं क्रान्ति नहीं हुई - 2
जीतेशकान्त पाण्डेय- आप बचपन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र करते रहे हैं। वह घटनाएं कौन सी थी?डॉ0 सूर्यपाल पहली घटना माँ के देहान्त की है। 1943 में जब उनका देहान्त हुआ तब मैं पाँच वर्ष का था। मेरी माँ बहुत शक्तिशाली थी। उनका शरीर गठा और लंबा था। वे भरी हुई बैलगाड़ी का पहिया हाथ लगाकर आगे कर देती थी। विवाह के चार-पाँच साल बाद तक कोई संतान न होने पर उन्हें प्रताड़ना भी सहनी पड़ी होगी। महावीर बापी ने उन्हें सूर्य का व्रत रखने की सलाह दी। उन्होंने पूरी निष्ठा से वर्ष भर सूर्य-व्रत का निर्वाह किया। ...Read More