दर्पण

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अध्याय 1 — दर्पण का पहला दर्शन संग्राम टूर्स अँड ट्रॅव्हल्स… नाम तो छोटा था, मगर मेरे लिए ये मेरे सपनों की शुरुआत थी। अभी कुछ ही हफ्ते हुए थे जब मैंने अपनी नई चार पहिया गाड़ी निकाली थी — चमचमाती सफेद रंग की “Ertiga”, जिसकी खुशबू अभी तक नई जैसी थी। मेरी दुनिया अब इसी गाड़ी के चारों तरफ घूमती थी। सुबह से रात तक — कभी ओला, कभी उबर, कभी रैपिडो — जो भी राइड मिल जाए, मैं ले लेता। भाड़ा ठीक मिलता था, पेट्रोल के बाद कुछ पैसे बच भी जाते। माँ कहती,

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दर्पण - भाग 1

दर्पण भाग 1️ लेखक: राज फुलवरे---अध्याय 1 — दर्पण का पहला दर्शनसंग्राम टूर्स अँड ट्रॅव्हल्स…नाम तो छोटा था, मगर लिए ये मेरे सपनों की शुरुआत थी।अभी कुछ ही हफ्ते हुए थे जब मैंने अपनी नई चार पहिया गाड़ी निकाली थी — चमचमाती सफेद रंग की “Ertiga”, जिसकी खुशबू अभी तक नई जैसी थी।मेरी दुनिया अब इसी गाड़ी के चारों तरफ घूमती थी।सुबह से रात तक — कभी ओला, कभी उबर, कभी रैपिडो — जो भी राइड मिल जाए, मैं ले लेता।भाड़ा ठीक मिलता था, पेट्रोल के बाद कुछ पैसे बच भी जाते।माँ कहती,> “बेटा, हर मेहनती को एक ...Read More

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दर्पण - भाग 2

दर्पण भाग 2लेखक राज फुलवरेकल्पना की अधूरी कहानीहवा का झोंका मेरी गर्दन को छूकर जैसे भीतर तक उतर गया मिरर में कल्पना का चेहरा साफ दिख रहा था—पीला, उदास, और गहरे दर्द से भरा।गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी थी।मंदिर के घंटों की आवाज़ हवा के शोर में घुलती जा रही थी।मेरी साँसें भारी थीं, और दिल बेकाबू धड़क रहा था।मैंने हिम्मत जुटाकर पूछा—संग्राम:“कल्पना… तुम कौन हो? ये सब मुझे ही क्यों दिख रहा है?”कल्पना की आँखें नम हो गईं।उसने धीरे से कहा—कल्पना:“क्योंकि… सिर्फ तू ही है जो मुझे देख सकता है।और सिर्फ तू ही है… जो मुझे न्याय दिला ...Read More

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दर्पण - भाग 3

⭐दर्पण भाग 3लेखक राज फुलवरेन्याय हो चुका था।संकल्पना जेल में थी।कल्पना को मोक्ष मिल चुका था।पर संग्राम की कहानी ख़त्म नहीं होती—क्योंकि कुछ आत्माएँ शांति की नहीं…बल्कि बचाई जाने की पुकार करती हैं।---एक. संग्राम की नई रात — फिर से लौटती धड़कनेंफैसले वाली रात संग्राम अपने कमरे में अकेला बैठा था।खिड़की आधी खुली थी, हवा कमरे में हल्की सरसराहट भर रही थी।पर उसके भीतर एक अजीब-सी बेचैनी थी।अचानक…कार के मिरर पर हल्की धुंध उभरने लगी।संग्राम चौककर खड़ा हो गया।उसने धीरे से कहा—संग्राम:“कल्पना…? क्या तुम हो?”लेकिन मिरर में उठता धुआँ कल्पना का नहीं था।इस बार उस धुंध में एक नया ...Read More

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दर्पण - भाग 4

दर्पण भाग 4लेखक राज फुलोरेरात की खामोशी में हवेली के पीछे एक तूफ़ान उठ रहा था।संग्राम को आखिर पता गया था कि जो कुछ भी गाँव में हो रहा है — उसके पीछे सिर्फ एक ही आदमी है:हरिओम ठाकुर।और उसी रात संग्राम को अनामिका ने बुलाया।वह पुरानी बंसी वाले पीपल के पेड़ के नीचे खड़ी थी।चेहरा शांत, पर आँखों में सदियों का दर्द।“संग्राम… आज सब खत्म होगा,”उसने धीमे से कहा।संग्राम ने पूछा,“तुम सच में कौन हो, अनामिका?”कुछ पल खामोशी रही…फिर उसने सिर झुका दिया।“मैं वही हूँ… जिसे ठाकुर ने मारकर आत्मा बना दिया।मैं न जी पाई… न मर पाई।”संग्राम ...Read More