JANVI - राख से उठती लौ

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प्रस्तावना"वो कहते हैं न, कि लड़कियां कमजोर होती हैं...पर मैंने तो देखा है-एक लड़की अपने टूटने की आवाज़ भी अंदर ही दबा लेती है,और जब दुनिया उसे गिरा देती है,तब वो जमीन से नहीं अपनी जिद से उठती है।"कुछ कहानियां किताबों में नहीं लिखी जातीं, वें वक्त के थपेड़ों में गढ़ी जाती हैं, और जब कोई लड़की इन थपेड़ों से निकलकर चुपचाप खड़ी हो जाती है, तो उसकी खामोशी सबसे ऊँची आवाज़ बन जाती है।यह कहानी है जानवी की -जो एक छोटे से गांव की बेहद शांत, समझदार, और पढ़ाई में डूबी रहने वाली लड़की थी।

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JANVI - राख से उठती लौ - प्रस्तावना

प्रस्तावना वो कहते हैं न, कि लड़कियां कमजोर होती हैं...पर मैंने तो देखा है-एक लड़की अपने टूटने की आवाज़ अंदर ही दबा लेती है,और जब दुनिया उसे गिरा देती है,तब वो जमीन से नहीं अपनी जिद से उठती है। कुछ कहानियां किताबों में नहीं लिखी जातीं, वें वक्त के थपेड़ों में गढ़ी जाती हैं, और जब कोई लड़की इन थपेड़ों से निकलकर चुपचाप खड़ी हो जाती है, तो उसकी खामोशी सबसे ऊँची आवाज़ बन जाती है।यह कहानी है जानवी की -जो एक छोटे से गांव की बेहद शांत, समझदार, और पढ़ाई में डूबी रहने वाली लड़की थी। वह बड़ी तो हुई ...Read More

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JANVI - राख से उठती लौ - 1

सपनों की शुरुआत(जहाँ आसमान अभी दूर था, लेकिन आंखों में उसका अक्स था...)कानपुर के बाहरी इलाके में बसा एक गांव, जिसका नाम तो था, लेकिन नक्शों में अक्सर छूट जाया करता था जैसे उसकी गलियों की तरह वहां की लड़कियां भी अकसर अनदेखी रह जाती थीं। उसी गांव की एक मिट्टी की गंध से भरी हवाओं में पली-बढ़ी थी जानवी।जानवी बचपन से ही कुछ अलग थी। जहां लड़कियां गुड़ियों से खेलतीं, वो किताबों में खोई रहती। जब खेतों में शादी-ब्याह के गीत गूंजते, तो वो अपने घर के एक कोने में बैठी 'आर्थिक नीतियों' पर पढ़ती मिलती।पढ़ाई उसके लिए ...Read More