त्रिशा...

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यह शब्द सुना तो बहुत था, बचपन में इस पर निबंध भी बहुत लिखे थे पर मेरे लिए यह शब्द तब तक अस्तित्व में नहीं था जब तक की मुझे मेरी सहेली ने इसका असल अर्थ समझाया नहीं था। मेरे पिताजी श्रीमान कल्पेश सिंह भदौरिया एक व्यापारी है, जिनकी खुद की एक बहुत बड़ी सी साड़ियों और लहंगों की दुकान है कानपुर में।‌समाज में बड़ा ही नाम और सम्मान कमाया है उन्होनें। मेरी माताजी श्रीमती कल्पना कल्पेश सिंह भदौरिया एक गृहणी है। और मैं हूं इन दोनों की एकमात्र संतान, इनकी एकलौती बेटी त्रिशा और यह है मेरी कहानी। वैसे तो‌ मैं एकलौती हूं पर मेरा एक गोद लिया हुआ भाई भी है‌। जिसका नाम है तन्मय। तन्मय यूं तो मेरे सगे मामा का बेटा है किंतु उसके जन्म के समय पर ही मम्मी पापा ने उसे गोद ले लिया था। और तब से वह हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है। तन्मय यह बात जानता है और अब समझता भी है और उसे कोई परेशानी भी नहीं है इस बात को स्वीकार करने में।

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"आत्मनिर्भर"यह शब्द सुना तो बहुत था, बचपन में इस पर निबंध भी बहुत लिखे थे पर मेरे लिए यह तब तक अस्तित्व में नहीं था जब तक की मुझे मेरी सहेली ने इसका असल अर्थ समझाया नहीं था।मेरे पिताजी श्रीमान कल्पेश सिंह भदौरिया एक व्यापारी है, जिनकी खुद की एक बहुत बड़ी सी साड़ियों और लहंगों की दुकान है कानपुर में।‌समाज में बड़ा ही नाम और सम्मान कमाया है उन्होनें। मेरी माताजी श्रीमती कल्पना कल्पेश सिंह भदौरिया एक गृहणी है।और मैं हूं इन दोनों की एकमात्र संतान, इनकी एकलौती बेटी त्रिशा और यह है मेरी कहानी। वैसे तो‌ मैं ...Read More