कोइयाँ के फूल

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कोइयाँ के फूल ताल में खिले हैं कोइयाँ के फूल आना तुम साथ-साथ खेलेंगे, साथ-साथ उछलेंगे-कूदेंगे, नीले पानी में आसमान देखेंगे। आना तुम साथ-साथ खेलेंगे। बेर्रा निकालेंगे फोड़ेंगे-खाएँगे, तलडुब्बी का पानी में भागना निहारेंगे। आना तुम.......। शैवालों ने जाल बिछा खूब उलझाया है। गिरई के सपनों में क्या कोई आया है?

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कोइयाँ के फूल - 1

कविताएं/गीत/मुक्तक1कोइयाँ के फूलताल में खिले हैंकोइयाँ के फूलआना तुम साथ-साथ खेलेंगे,साथ-साथ उछलेंगे-कूदेंगे,नीले पानी में आसमान देखेंगे।आना तुम साथ-साथ खेलेंगे।बेर्रा का पानी मेंभागना निहारेंगे।आना तुम.......।शैवालों ने जाल बिछाखूब उलझाया है।गिरई के सपनों मेंक्या कोई आया है?उसका भी हाल-चाल पूछेंगे-आना तुम.....।माई खिलाएगी चूरा-दहीअमचुर करोनी भीथोड़ी-सी राब औरबासी कचौड़ी भीतेरे साथ खाएँगे-खेलेंगेआना तुम....।चिड़ियों से सीखेंगेफुर्र-फुर्र उड़नातिनकों को जोड़करघोंसला बनानाजादुई दुनिया को हँसना सिखाएँगे।आना तुम.......।हंसों की जोड़ी भी कभी-कभी आती हैआदमी के शोर से दूर रह जाती हैचुपचाप रहती हैउनकी चुप्पी का अर्थहम-तुम मिलकर खोजेंगे।आना तुम........ताल के किनारे ही झूमता है हरसिंगारतारों से ...Read More

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कोइयाँ के फूल - 2

कविताएँ/गीत/मुक्तक11कहकर गया थाकहकर गया थालौटकर आऊँगाकजरी तीज का दिन था।गाँव के उस पारकजरी गाने वालेगा रहे थे कजरी-लछिमन कहाँजानकी विकट अँधेरिया नाँय।जाते समयबार-बार कहा था उसनेलौटकर आऊँगाघर बनाऊँगा।बहुत दिन बीतेमैं गिनती रही दिनवह नहीं लौटाकजरी तीज परकजरी गाने वाले भीअब नहीं दिखते।क्या हुआ उन्हें?कौन-सा अजगरनिगल गया उन्हें भी?अब न वह कजरी की थापन कजरी की धुनक्या हुआ? सोख लिया किसने ?कितने दिन बीत गएहर कजरीतीज कोकसक उठता है मन।क्यों ऐसा होता है?कोई कहकर जाता हैजल्दी आऊँगापर लौट नहीं पाता।जब वह गया थाबच्चा केवल छह माह का था।अब ...Read More

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कोइयाँ के फूल - 3

ग़ज़ल खण्ड1हाशिये पर जो यहाँ औंधे पड़े हैं।घर उन्हीं के बारहा क्योंकर जले हैं?हर किसी की ज़िन्दगी उत्सव न अपना पी तुम्हें लगते भले हैं।चित्र छोड़े आँसुओं ने गाल पर जो,अर्थ उनके खोज लेना पट खुले हैं।झाड़ियाँ मग में कँटीली, तमस गहराऔर राहें छेंकते विषधर डटे हैं।सेज फूलों की मयस्सर कब उन्हें जोरास्ते ही खोजते आगे बढ़े हैं।2कभी यूँ ही चुप रहने को मन करे।दुखों को चुप-चुप सहने को मन करे।भँवर में कश्ती है यह जानता हूँ,भँवर से किन्तु निकलने को मन करे।कपोलों पर बैठे रक्त ...Read More