दो दिलों का मिलन

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शांतिपूर्ण बाग के बीच में लगे हुए झूलों पर हवा का हल्का-हल्का झोंका आ रहा था। आस-पास के पेड़-पौधे अपनी हरी-हरी पत्तियों को झटकते हुए इस खुशनुमा मौसम का स्वागत कर रहे थे। बाग में दूर-दूर तक न कोई शोर था, न कोई हलचल। बस हर जगह एक अजीब सी शांति और सुकून फैला हुआ था। बाग के एक कोने में, जहां कुछ फूलों से सजी एक छोटी सी बेंच रखी थी, मुस्कान बैठी हुई थी। उसकी आँखें किताब में डूबी हुई थीं, लेकिन कभी-कभी वह आसमान को निहारती, मानो कोई गहरी सोच में खोई हो।

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दो दिलों का मिलन - भाग 1

शांतिपूर्ण बाग के बीच में लगे हुए झूलों पर हवा का हल्का-हल्का झोंका आ रहा था। आस-पास के पेड़-पौधे हरी-हरी पत्तियों को झटकते हुए इस खुशनुमा मौसम का स्वागत कर रहे थे। बाग में दूर-दूर तक न कोई शोर था, न कोई हलचल। बस हर जगह एक अजीब सी शांति और सुकून फैला हुआ था। बाग के एक कोने में, जहां कुछ फूलों से सजी एक छोटी सी बेंच रखी थी, मुस्कान बैठी हुई थी। उसकी आँखें किताब में डूबी हुई थीं, लेकिन कभी-कभी वह आसमान को निहारती, मानो कोई गहरी सोच में खोई हो।लोकेश, बाग में टहलने आया ...Read More

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दो दिलों का मिलन - भाग 2

"लोकेश और मुस्कान" - दूसरा भागकुछ दिनों बाद, लोकेश और मुस्कान का यह संयोगिक मिलन यादों में बैठ गया दोनों ने एक-दूसरे से मिलकर एक अलग ही प्रकार का संतोष और शांति महसूस की थी। बाग में वे पहली बार मिले थे, लेकिन उस दिन के बाद उनकी मुलाकातें अक्सर उसी बाग में होनी लगीं। वह बाग अब दोनों के लिए एक खास जगह बन चुका था—एक ऐसी जगह, जहाँ वे अपनी ज़िंदगी के संघर्षों और उलझनों को भूलकर एक दूसरे से मिलते थे।लोकेश को यह सब बहुत ताजगी देता था। वह अपने रोज़ के तनाव से कुछ पल ...Read More

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दो दिलों का मिलन - भाग 3

समय बीतता गया, और लोकेश और मुस्कान की मुलाकातें बढ़ती गईं। बाग अब सिर्फ एक स्थान नहीं था, बल्कि ऐसी जगह बन गई थी, जहाँ उनके रिश्ते ने धीरे-धीरे अपनी जड़ें मजबूत करना शुरू किया था। दोनों एक-दूसरे से और भी करीब होते जा रहे थे, और उनकी बातचीत अब सिर्फ समस्याओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे अपने सपनों, इच्छाओं और भविष्य के बारे में भी बात करने लगे थे।एक शाम, जब सूरज धीरे-धीरे अस्त हो रहा था और बाग में हल्का सा सर्द मौसम था, लोकेश और मुस्कान बेंच पर बैठे हुए थे। उनके चारों ओर बाग ...Read More