चौबोली रानी

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अमावस्या की तिमिर भरी रात्रि में एक सुंदर बलिष्ठ पुरुष उज्जयिनी की वीथिकाओं में घूम रहा था. प्रहरी सजग, निष्ठापूर्वक अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे थे. उनकी ध्वनि समय-समय पर नीरवता को भंग कर देती थी.वीथिकाओं में लगातार एक ही ध्वनी गूंज रही थी,"प्रजा सुख से सोये, सम्राट विक्रमादित्य के प्रहरी जाग रहे हैं" पुरुष ऊज्जयिनी की वीथिकाओं में घूमता रहा. सहसा उसे नगर के बाहर समीपवर्ती उद्द्यान में जाने की भावना जागी. वह नगर के प्रवेश द्वार पर पहुंचा. उसे प्रहरी का गंभीर स्वर सुनाई दिया - "कौन है, मध्यरात्रि में निरुद्देश्य क्यों घूम रहा है"

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चौबोली रानी - भाग 1

अमावस्या की तिमिर भरी रात्रि में एक सुंदर बलिष्ठ पुरुष उज्जयिनी की वीथिकाओं में घूम रहा था. प्रहरी सजग, अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे थे. उनकी ध्वनि समय-समय पर नीरवता को भंग कर देती थी.वीथिकाओं में लगातार एक ही ध्वनी गूंज रही थी,"प्रजा सुख से सोये, सम्राट विक्रमादित्य के प्रहरी जाग रहे हैं" पुरुष ऊज्जयिनी की वीथिकाओं में घूमता रहा. सहसा उसे नगर के बाहर समीपवर्ती उद्द्यान में जाने की भावना जागी. वह नगर के प्रवेश द्वार पर पहुंचा. उसे प्रहरी का गंभीर स्वर सुनाई दिया - "कौन है, मध्यरात्रि में निरुद्देश्य क्यों घूम रहा है" युवक ...Read More

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चौबोली रानी - भाग 2

कहानी में क़ल आपने पढ़ा मैना अपने तोते को लीलावती की कहानी सुनाने लगी, वह बोली - "दक्षिण भारत कंचनपुर केमहाराज जयसेन की पुत्री राजकुमारी लीलावती उस समय की श्रेष्ठ सुंदरी है. उनकी वह एक ही संतान है. महाराज चाहते थे कि किसी श्रेष्ठ वर के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर अपना शेष जीवन प्रभु की शरण में बिताऊं, किन्तु राजकुमारी लीलावती की प्रतिज्ञा के कारण उसका विवाह होना असंभव था. महाराज जयसेन दिवंगत हो गये. राज्य का संचालन लीलावती करने लगी. उसकी प्रतिज्ञा थी कि जो व्यक्ति एक रात्री में अपनी बुद्धिमत्तापूर्ण बातों के द्वारा उसका मौन ...Read More

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चौबोली रानी - भाग 3

नगर में प्रवेश करने पर राजा विक्रमादित्य ने एक सुंदर भवन देखा. भवन के बाहर सुंदर प्रांगण था. इसी में लगे एक आम्रवृक्ष के नीचे एक तेजस्वी पुरुष को देखा तो वह अपना कुतुहल नहीं रोक सका.सम्राट विक्रमादित्य के पास आया और बोला - "परदेशी प्रतीत होते हो ? कहां से आये हो भाई ? सम्राट विक्रमादित्य ने उत्तर दिया- "मैं उज्जयिनी से आया हूं आनंद को यह जानकर प्रसन्नता हुयी और वह सहज भाव से बोला - क्या उसी उज्जयिनीसे आये हो जहां सम्राट विक्रमादित्य का शासन है ? सम्राट विक्रमादित्य ने उत्तर दिया ...Read More

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चौबोली रानी - भाग 4

विक्रमादित्य बोले - किन्तु क्या ?आनंद बोला - किन्तु तो यूं ही कह दिया. वास्तव में राजकुमारी लीलावती से करना बड़ी टेडी खीर है. तुम्हारी प्रतिभा को बहोत पापड़ बेलने पड़ेंगे. फिर भी मेरी सद्भावनायें तुम्हारे साथ है. तुम्हारी यात्रा सफल हो, शुभमस्तु ते पंथान: ..... विक्रमादित्य बोले - बंधु! मात्र मेरी सफलता की कामना से ही सिद्धि प्राप्त होने वाली नहीं है. मुझे कंचनपुर की राजकुमारी लीलावती के विषय में आवश्यक जानकारी कराने में कुछ सहायता कीजिये. आनंद बोला - अवश्य अतिथि! मुझे जितना ज्ञात है उतना बताने में मैं प्रसन्नता का ...Read More

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चौबोली रानी - भाग 5

रात्रि के प्रथम प्रहर में द्वार खुलने की आवाज सुनाई दी. तत्काल ही नूपुरो की ध्वनी एवं मृदुल नारी की आवाज मुखर होने लगी. माता के मंदिर में राजकुमारी लीलावती प्रवेश कर चुकी थी. संगमंरमर के एक धवल पाषाण खंड पर राजकुमारी लीलावती ने अपनी कंचुकी उतार कर रखी तो प्रजवलित दीपों की आभा फीकी पड़ गयी. ऐसा लग रहा था मानो नील गगन में चंन्द्रोदय होते ही तारों की आभा मंद हो गयी हो. एक दासी ने चामुंडी माता की वेदिका पर रखे दीप को छोड़कर सारे दीप बुझा दिये, किन्तु प्रकाश से देवालय जगमगा रहा था. कंचुकी ...Read More