मरा नहीं हूँ, और जिंदा भी नहीं हूँ…
मैं वो ख्वाब हूँ जो खुली आँखों में कैद है,
एक आवाज़ हूँ जो किसी के कानों तक नहीं पहुंचती।
मैं धड़कन हूँ, मगर एहसास से खाली,
एक लम्हा जो वक़्त के दरमियान अटका है।
मैं साया हूँ, मगर रोशनी से दूर,
एक रास्ता हूँ, मगर मंज़िल से महरूम।
मैं सांस लेता हूँ, पर जिंदा होने का अहसास नहीं,
शरीर हूँ, मगर रूह से जैसे जुदा हूँ।
शायद मैं एक अधूरी दास्तान हूँ,
जिसका न कोई आग़ाज़ है, न कोई अंजाम।
या फिर मैं वो सवाल हूँ,
जिसका जवाब किसी के पास नहीं…