Pakdova - 1 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - 1

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पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - 1

सूरज ढल रहा था।ढलते सूरज की तिरक्षी किरणें नदी के बहते पानी मे पड़ रही थी।अनुपम नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठा बहते हुए पानी को देख रहा था।जब भी उसका मन करता वह यहां आकर बैठ जाता था।
अचानक उसे नदी के पानी मे उल्टी सीधी आकृतियां नजर आयी थी।उन आकृतियों को देखकर अनुपम को ऐसा लगा मानो कोई उसके पीछे खड़ा हो।मन मे आयी बात की सत्यता जानने के लिए उसने गर्दन घुमाकर देखा।तो वह चोंक पड़ा।उसके पीछे चार नकाबपोश हथियार बन्द लोग खड़े थे।
"कौन हो तुम लोग?"
अनुपम की बात को अनसुना करते हुए उन लोगो ने अनुपम को दबोच लिया।उसके हाथ पैर बांधकर उसके मुंह पर टेप चिपका दिया।अनुपम ने बहुत हाथ पैर मारे पर व्यर्थ।
उन लोगो ने अनुपम को जीप में डाला।
उसकी समझ मे कुछ नही आ रहा था।कौन है ये लोग?उसे क्यो बंधक बनाया है?उसकी तो गांव में किसी से दुश्मनी भी नही है।फिर उसे इस तरह ये लोग जबरदस्ती क्यो उठाकर ले जा रहे है।
और अनुपम को दूर एक अनजान जगह ले जाया गया था।उस जगह पहले से ही काफी लोग मौजूद थे।उसे जीप से उतारकर हथियार बन्द नकाबपोश एक कमरे में ले गए थे।उस कमरे में पहले से ही एक आदमी मौजूद था।वह उनसे बोला,"इसे खोल दो"।
उन लोगो ने अनुपम के हाथ पैर खोल दिये थे।
"हमे अफसोस है तुम्हे इस तरह यहाँ जबरदस्ती लाना पड़ा"।कमरे में मौजूद आदमी जो शक्ल सूरत से ही गुंडा लगता था।उससे बोला था।
"कौन हो तुम लोग?मुझे इस तरह जबरदस्ती क्यो लेकर आये हो?"बन्धन मुक्त होते ही अनुपम उस आदमी से बोला था।
"कुछ देर धीरज रखो।सब समझ मे आ जायेगा।"वह आदमी बोला।
हथियार बनध आदमी कमरे से बाहर चले गए।कुछ देर बाद एक आदमी कपड़े लेकर कमरे में आया था।वह कपड़े अनुपम की तरफ बढ़ाते हुए बोला,"इन्हें पहन लो"।
"क्यो?"
"तुम दूल्हे हो।दूल्हा नए कपड़ो में ही अच्छा लगता है।"
"तुम क्या कह रहे हो।मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा।"
"आज तुम्हारी शादी है।इसलिए तुम्हे नए कपड़े पहनाए जा रहे है।""
"मेरी शादी है?"अनुपम आश्चर्य से बोला।
"हां।आज तुम्हारी शादी है।"उस आदमी ने अपनी बात फिर दोहराई थी।
"कौन करा रहा है मेरी शादी।"
"हम" कमरे में बैठा वह आदमी बोला था।
"मेरी शादी कराने वाले तुम कौन हो?"अनुपम बोला
"तुम्हारी शादी हम ही कराएंगे"वह आदमी फिर बोला था।
""तुम कराओगे मेरी शादी,"अनुपम व्यंग्य से बोला,"देखता हूँ तुम मेरी शादी कैसे कराते हो?"
"तो देखते रहो।हम कैसे तुम्हारी शादी करवाते है,"उस आदमी ने ताली बजाकर चारो हथियारबन्ध लोगो को कमरे में बुलाया था।
"यस बोस"
"यह शराफत से नही मानेगा।इसे जबरदस्ती दूल्हा बनाकर मंडप में ले जाओ।"
बोस का आदेश मिलते ही चारो ने अनुपम को पकड़ लिया।उन चारों के आगे अनुपम की एक भी नही चली।उन चारी ने जबरदस्ती अनुपम को नए कपड़े पहना दिए।उसे दूल्हे के वेश में वे चारो मंडप में ले गए।वहां पर पहले से ही कुछ आदमी और औरतें मौजूद थी।मंडप के नीचे बैठी औरते मंगल गीत गा रही थी।मंडप के नीचे लाल जोड़े में दुल्हन बनी एक युवती बैठी थी।पंडित मंत्रोच्चार कर रहा था