भव सागर के,
किनारे पर पहुंचने का आस हो या न हो
मगर डूबने पर भी मन उदास न हो
संघर्ष में हीं अगर जीवन व्यतीत हो
लक्ष्य तक गर पहुंचना हीं नामुमकिन हो
राग द्वेष और क्लेश से मन व्यथित हो
सिंचित पुण्य भी गर कम पङ जाए।
तब भी है प्रभु,
अपनी कृपा का नहीं
मेरे कर्म का फल देना मुझे।
- Anant Dhish Aman