भर दोपहरी ३ बजे एक तलब जाग्रत हुई थी,
रोम रोम को चाय के सिंचन की जरूरत मानो मेहसूस हुई थी।
उठ खड़ा हुआ और चल दिए पैर,
आंखे मेरी एक जगह पर ठहरी थी,
चाय वाय के कोने के टेबल पर एक दुर्घटना घटित हो रही थी।
चाय में छिपी अदरक इलायची,
मेरे होठों की चुम्मी ले रही थी,
काले कपड़े वाली एक पतली लड़की के साथ,
पहले २ बटन खुले रखें हुए, घुंघराले बाल वाले अजीब शख्स की,
मूरत अलंकृत हो रही थी।
चल खत्म कर किस्सा मोहब्बत का,
और बहस शुरू हो जाती हे,
शब्दों को तलवार बनाकर वो लड़की,
मैदान ए जंग में कूद पड़ जाती हे,
तेरे लिए में लड़ बैठा सब से,
ना किया कभी तुजपे हक,
इंस्टाग्राम के तेरे एक रील को ना लाइक करने पर,
तूने कर दिया इतना बड़ा शक,
म्यान में से तलवार वो खुले बटनवाले ने भी निकाली थी,
चाय की चुस्कियां लेने की तेजी अब मेरी बढ़ने वाली थी।
बहसबाजी के शांत स्वरों में अचानक उबाल छलकाया था,
तुजे में चाहिए के तेरे मां बाप, बड़ा ही पुराना फिल्मी सवाल आया था,
प्यार नाम के हसीन बंधन में,
नसमजी की मिट्टी डाली थी,
मसालेदार वो चाय मेरी अब फिक्की पड़ने वाली थी।
गुस्से की आवाज में अब हलका सा सन्नाटा छाया था,
तो इस रिश्ते को खत्म करते हे,
बिदाई का बखत आया था,
नकली आंसू पोंछ के लड़की अंतिम बिदा ले रही थी,
लड़के की जिंदगी से मानो किस्मत रूठ के रो रही थी।
अचानक से हवा बदली,
सब पन्ने मानो पलटे थे,
देख नजारा हम भी दूसरी चाय पीने को तरसे थे,
अंतिम बिदा ले रही कन्या किसी दूसरे घर को जा रही थी,
बाहर कार में बैठे दूजे सैयांजी के संग गीत फाग के गा रही थी।
हमारी पूरी संवेदना अब उस लड़के के प्रति जा रही थी,
पर हमारे कुंवर थे बड़े ही खोटे सिक्के,
एक बंदी को बिदा किया, दूजी से फोन पे ही चिपके।
देख नजारा इस दुनिया का अंधा भी आज रोया था,
भारी मिलावट से इस रिश्तों में बीमारी का जहर मानो घोला था,
निस्वार्थ प्रेम के संबंधों को इंस्टाग्राम की रील्स से पिरोया नही जा सकता,
हवस से भरे संबंधों में जज़्बात भिगोया नही जा सकता,
खोटे सिक्के भरे पड़े हे बाजारों में,
इनसे सच्चा प्यार खरीदा नही जा सकता,
इनसे सच्चा प्यार खरीदा नही जा सकता।
डॉ. हेरत उदावत