दो कप कॉफी दोनो मेरी!
लेना चाहो अगर एक कप तुम
बदले में देना खुद को पूरा तुम
एक कप है ठंडा एक कप गरम
करना मलाई सी बातें बिना कोई शर्म
अधा कप अब छोडना नहीं
डेढ़ कप कॉफी कोई पिता नहीं
दो कप भले पीती थी आराम से
एक नर्म करता था गले को
दूजा मलाई देता था जुबान को
पर अब जो ये आधा रहेगा
तो बिखरी हुई मलाई के साथ जुड़ेगा
तुम्हारे लब छू ने के निशान
हाथ की गरमाहट का उबाल इ
से आधेपन से भर देगा
बिन कही बातों का डर देगा
इसे अच्छा एक सांस में गटक लेटे
भले ही जुबान अपनी जला देते
पर हलक को तो तर कर लेते
कप को मरोड़ कही पे फेक देते
तो बचती सिर्फ एक कॉफी
सिर्फ मेरी!
पर फिल्हाल भले कप तो दो हे
पर एक पूरी मेरी है और
आधी छोड़ी हुई तुम्हारी !
Yayawargi