बूला बकलोल: लॉक डाउन
"बूला जी, सुने हैं लॉक डाउन तोड़े थे आज आप? मैने लिलियाते स्वर में बूला जी के सामने सवाल फेंका ।
"अबे मूड भनभनाया है, दिमाग का हल उतार कर खूंटी पर टांग देओ ।" बूला जी चिरियाए ।
"क्या हुआ बूला जी, वैसे आज न चाय मांगे, न बिस्किट, न पानी ।" मैंने चिरौरी की ।
"अबे ज़हर दे देओ, खाकर अबहिं यहीं मजार बनवा लेंगे, मज़ार की मजार और घर हमारे कब्जे में ...." बूला जी कुछ कुछ फॉर्म में आते लग रहे थे ।
"वैसे बूला जी, बता काहे नहीं रहे कि लॉक डाउन में क्या हुआ?" मैने रवीश कुमार की तरह दनदनाता सवाल उठाया । पर डर भी लग रहा था कहीं बूला जी हमें देश द्रोही न करार दे दें ।
पर बूला जी बिना कुछ बोले गुस्से में सोफे से खड़े हो गए । पर हम भी बिना बकलोली सुने उनको जाने कहाँ देने वाले थे, तो कमर से पकड़ कर उनको बैठा दिया । बूला जी चीख पड़े ।
"क्या हुआ?" मैं भी उसी इंटेंसिटी से चीखा ।
"कुछ नहीं" बूला जी संभलते हुए बोले ।
"ओहो तो डंडे खाकर आये हो !" मैंने सहलाती आवाज़ में बोला ।
बूला जी ने सर झुका कर गर्दन हां में हिला दी ।
"कितने.......?" मेरी उंगलियां भी सवाल के साथ राइम कर रहीं थीं ।
"तीन........" बूला जी ने फरमाया ।
"तीन! बस फिर तो बचे ही समझो, नहीं तो वो यादव जी का लौंडा, 12 खा के आया था ।" मैंने उनको सांत्वना देने के लिहाज से बोला ।
"हां, वो एक डंडा उठाये, जो मारना शुरू किए तो 45 के बाद टूट गया....... " बूला जी इतना ही बोल सके थे कि हमारी हँसी छूट गयी । मैं जैसे ही लोट पोट होते हुए ज़मीन पर गिरा, बूला जी नाराज़ होकर उठ कर निकल लिए ।
दो घंटे हो चुके हैं और मेरी हँसी है कि थमने का नाम न ले रही ।
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