लो बरस ही पडा आसमां इक मुद्दत के बाद
मिलने अपनी ज़मी से पूरी शिद्दत के साथ,
मुन्तजिर ज़मी रही तो मुन्तजिर आंखें कहीं
बेजुबां जज्बात और अन्कहे अल्फाज भी।
भीगी भीगी ज़मी सोंधि सोंधि महकने लगी
दास्ताँ ए इश्क़ फिजाओं मे बिखरने लगी,
आज भीगा सब जो सुखा हुआ था
बह गया सब जो रूका हुआ था ।
-दीपा चौहान