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TEJKARANJAIN

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@tejkaranjain2808


गाँधी एक व्यक्ति नहीं,विचारधाराओं का समुद्र हैं

*भारतीय संस्कृति के अनुसार यदि किसी गृहस्थ के निवास पर रोग, शोक के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से अतिथि के रूप में 7 दिन से अधिक निवास किया हो और गृहस्थ ने अतिथि का आदर सत्कार हृदय से किया हो तो उस परिवार की रक्षा, सुरक्षा औऱ विकास में यथा संभव सहभागिता का निर्वहन अतिथि का दायित्व बन जाता है. यह कर्म आंशिक रूप से किराये के घर में रहने पर भी प्रभावशील होता है.*

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आपकी शुभकामना के प्रभाव से प्राप्त

कल्पना के पंख

गुड़िया सी मैं,
गुड्डा संग गुड़िया का
विवाह मैंने खूब रचाया था
हंसता खेलता बचपन बिताया था...
कल्पना के पंख लिए
सितारों से आसमान सजाया था
बाजो ने मेरे पंख नोचे
विश्वास मेरा डगमगया था...
परिधि,मर्यादा के कारागार में
संयम-समर्पण को अपनाया था
अपने ही पंखों को मैंने
अपने हाथों जलाया था...
प्रतिदिन जलती मेरी चिता से
आग ताप रहे थे मेरे अपने
निश दिन चढ़ी मेरी बली
मैंने अपना ही मांस पकाया था...
हिमालय सा अटल मेरा
हिम्मत, हैसियत और हौसला था
फस जाना भी तय था मेरा
अपनों ने ही तो जाल बिछाया था
अब न झूकूंगी, अब न मरूंगी,
अब न जलूंगी, अब न कटुगी,
सारे कर्ज-फ़र्ज़ निभाऊंगी,
नहीं करूंगी अब समझौता,
नए पंख अपने, मैं अब लगाऊंगी

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प्रेरक कथा - निस्वार्थी कैदी.
संकलनकर्ता- तेजकरण जैन,
कारागार में फांसी की सजा पाने वाला कैदी बहुत अधिक भगवान का नाम लेता था. जब भी कभी वहां का जेलर अधिकारी निरीक्षण करने आता था तो उसे ध्यान में संलग्न देखता था. एक दिन अधिकारी आया तो वह चैन की नींद ले रहा था. जेलर ने उसे जगा कर पूछा - आज नींद कैसे ले रहा है, तु तो रोजाना ईश्वर के स्मरण भक्ति लीन रहता था.
कैदी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया - घर से मुझे आज एक पत्र मिला है जिसमें लिखा है फांसी की सजा 7 वर्ष के कारावास में परिवर्तित कर दी गई है. मैं अब भगवान को और तकलीफ नहीं देना चाहता हूँ. मैं अन्य स्वार्थी लोगों की भांति अधिक स्वार्थ का भाव नहीं रखता हूँ.

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सावधान,,,