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Madhumayi

Madhumayi

@mohinirani3092


आजकल तुम मुझे
बेहद याद आते हो..
यूँ तो हमारी शामें अक्सर
गुज़रती हैं साथ में
फिर भी ख़्वाबों में
तुम सताते हो
हर सिम्त रोशन हो
आफ़ताब से
शब-ए-महताब से
तुम ही नज़र आते हो
नाउम्मीदी जब भी
घेरती है दिल को
उम्मीद बनकर तुम ही
मुस्कराते हो
हर घड़ी तुम्हारी
ज़रूरत सी महसूस होती है
लम्हा -लम्हा मुझे
तड़पाते हो
आजकल तुम मुझे
बेहद याद आते हो....।

-मधुमयी

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दिल भी हद में न रहा, जां से गुज़रने न दिया,
ये तेरा इश्क़ था, जिसने मुझे मरने न दिया..।
-मधुमयी

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साथी कर चैन औ सब्र-ओ-क़रार की बातें,
आज की रात सिर्फ़ प्यार,प्यार की बातें।
तज़किरा कुछ मेरी रवानी का,
तेरे हद-ओ-हिसार की बातें।
तुझको छूना फ़क़त नज़र भर कर,
और तेरे निखार की बातें।
आसमाँ, चाँद ,ज़मीं और शबनम,
गुल, गुलिस्तां ,बहार की बातें।
हो रुबाई ग़ज़ल का ज़िक्र ज़रा,
कोई अफ़साना नज़्म और अशआर की बातें।
-मधुमयी

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पुरुष होना आसान नहीं
विशाल वृक्ष बन छाया देना है परिवार को
मजबूत स्तम्भ बनना है समाज का
अपनी पीड़ा को पत्थर कर
प्रेम से सींचना है जीवन को
आश्रय और सम्मान देना स्त्रियों को
निर्भय समाज की स्थापना करना
तभी सार्थक है पुरुष होना..💞

-मधुमयी

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तुझपे हम दिल तो क्या, जां भी हार जाएंगे
तू मेरा इश्क़ है, मद्दे-मुक़ाबिल तो नहीं...।

मद्दे-मुक़ाबिल-प्रतिद्वंद्वी

-मधुमयी

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इश्क़ की किताब के पहले पन्ने पर थी
आहट तुम्हारे आने की
आख़िरी पन्ने पर अफ़साना
तुम्हारे जाने का
और बीच में थी सिर्फ़
मोहब्बत.. मोहब्बत..
इबादत..इबादत..।
-मधुमयी

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मैं वो रौशनी हूँ जो..
अंधेरा चीर कर सहर में रही
तूफान सी तेज़ी है मुझमें
मैं समन्दर की हर लहर में रही
झिलमिलाती हूँ चराग़ों सी
मैं आब -सी गुहर में रही
इंसानियत की लौ अभी है मुझमें
मैं ज़िंदा बशर सी रही
तारीकियों को कैसे मान लूँ मुक़द्दर
कैसे हार जाऊं हालात से
ये वो मंज़िल नहीं है जिसके लिए
मैं तमाम उम्र सफ़र में रही...
-मधुमयी

गुहर-मोती
बशर-इंसान

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जाने क्या सोचकर
रुके थे क़दम
फिर जाने क्या सोचकर
वापस चल दिये
उसकी दहलीज़ से
कुछ रिश्ता था ऐसा
कि जान वही छोड़ दी
फ़क़त जिस्म लेकर चल दिये।
-मधुमयी

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मुझे ज़रूरत ही नहीं आफ़ताब की
रौशनी के लिए
मेरे लिए काफ़ी है रात , चाँद, चिराग़
और तुम..
-मधुमयी